#गुरुकुल
अनूप! अनूप! कहा मर गए बे?? अरुण भैया दनदनाते हुए रूम में दाखिल हुए ।
क्या हुआ भैया?? इतना जल्दबाजी में क्यों है?? मैंने बर्तन माँजते हुए पूछा।
अरुण भैया ने हैंगर पर टांगे हुए महीनों के गंदे कपड़ो में शुरुआत के कपड़ो में से एक को सूंघे और कहे! शाम को माघ मेले में संगम पर मनोज तिवारी का प्रोग्राम है उसमें चलना है और हा इं. प्रदीप और विवेक भी चल रहे है।
हम कहे !! देखो भैया सबको लेलो इनको न लो ये आफत खरीदते है !!!
हम गौरव और अजीत भैया को ले लेते है इनको न ले चलो मैने कहा!
उसको तो एकदम नही ले जाएंगे!!
उ काहे भैया?? मैने पूछा??
अरे तुमको पता नही उस दिन रूम पे आया था तो हमारा एक पॉव शुद्ध घी दाल में डाल के खा गया और बोला कि चिंता न करो 1 किलो दे देंगे!
जब हम रूम पर गए मांगने तो कहा कि मजाक किये थे यार!!
मुह बनाते हुए अरुण भैया ने कहा।
आप भी तो उस दिन उनका एक डब्बा काजू खा गए थे जब वो मंगलवार व्रत के दिन खीर बना रहे थे ???
अरे यार उस दिन तो हम भी व्रत थे न !! दाँत निपोरते हुए बोले।
और सुनो कौशल भी आ रहा है शाम पसेंजर से दारागंज उतरेगा ।
ठीक है पर अजित भैया को ले लीजिएगा ।
चुप बे ज्यादा बकर बकर करोगे तो तुम भी नही जाओगे!! बता दिए है तो अपना लोल बन्द ही रखो।
मै चुप होके बर्तन माँजने लगा । असल मे विवेक भैया , प्रदीप भैया और अरुण भैया खाना खा के थाली हमारी ओर खिसका देते और कहते शाम तक चमक जाना चाहिए!!
अब गौरव छोटा उसे हम कैसे माँजने दे??
तो हम खुद माँजते थे।
मैंने धीरे से अजित भैया को फोन कर दिया ।
शाम को हम सभी लोग पुराने गंदे कपड़ो में डीओ मार के महका दिये और चल दिये प्रोग्राम में।
सीट मिली चार तो सीनियर के नाते अरुण,इं. प्रदीप ,उजबक और अजित भैया लोग सीट पे बैठे ,और हम ,गौरव और कौशल भैया एकदम पीछे लाइन में खड़े थे।
इधर विवेक भैया और प्रदीप भैया अपने ताड़न योग को भलीभूत करने में अगल बगल सर्वे कर रहे थे और दोनो ने सेटिंग भी बैठा लिया।
इधर भोजपुरी गानों के दीवाने अरुण भैया तन्मयता से गाना सुन रहे थे। शुरू के भक्ति गीतों के बाद विमी भैया ने कहा क्या अरुण !! वो वाला गाने की फरमाइश करो न!!
अरुण भैया जोर से चिल्लाए जोश में जैसे केजरी चुनाव हारने के बाद बैलेट से चुनाव के लिए चिल्लाता है।
" बगल वाली जान मारेली " गाना गाइये!!!
तब तक उनके बगल में बैठी एक भौजी ने सैंडल की तरफ इशारा किया!! अरुण भैया को 440 का झटका लगा और याद आ गया कि कैसे एक बार लेबर चौराहे पे लँगड़ी मारने के चक्कर मे एक लड़की ने सरेआम अपने अपने "पाव दासी" नामक नुकीले अस्त्र से उनका थोबड़ा फुला दिया था। इतना याद आते ही उनका जोश साबुन के झाग की माफिक बैठ गया।
तब तक प्रदीप भैया के अभियंता वाले दिमाग ने अपना काम शुरू कर दिया था उन्होंने 500 का एक नोट अरुण भैया के सर के ऊपर हिलाना शुरू की और बोले!! हमारा गाना होकर रहेगा।
"मुख्यालय हिलेला हिले राजधानी त हे देवता ई मन कैसे मानी.."
इतना सुनना था कि पब्लिक बागी हो गयी और उत्पात मचा दिया। अरुण भैया नए नए अलाहाबाद में ये क्या घात पेंच जाने।
इधर पुलिस ने लाठी चार्ज किया कि हम , गौरव और कौसल भैया एक छलांग में टेंट से बाहर, विमी भैया और प्रदीप भैया लड़कियों के बीच अपने सेटिंग के साथ।
अब पुलिस के हाथों अरुण भैया!! मारवाड़ी आदमी ..नाजुक शरीर, कहा पुलिस के पाले पड़े।
वो भी उप पुलिस जो "मुर्दे का पिछवाड़ा देख के बता देती है कि ये किस गम में मरा है"
पुलिस ने चौकी पे अरुण भैया को उल्टा लिटाया और चारो तरफ से घेर के उनके "गिलगित और बलूचिस्तान पे हमला बोल दिया जैसे आज ही उनके पाकिस्तान से आजादी दिला देंगे।
जैसे जैसे लाठियां गिरती वैसे वैसे अरुण भैया की चीखे बढ़ती जाती।
और बोलते अनुपवा सही कहता था कि इन दुनो को मत ले चलो । ऐसी गलती अब नैय होगा..
इधर पुलिस ने उनके पाकिस्तान का पांच मिनट में ही बोकला छोड़ा दिया और चेतावनी दी!!
पढ़ने वाले हो इस लिए कम मारे है अब मत करना ऐसा!!
अरुण भैया की मुंडी ऐसे हिली जैसे मदारी का बन्दर हामी भरता है।
किसी तरह उठे और अपने बलूच क्षेत्र के तार तार हुए कपड़ो पे गमछे को लपेट कर अभी बाहर जाने की सोच रहे थे कि अचानक वो बगल वाली भौजी आयी और बोली!!
चलिए न आपको देहाती का रसगुल्ला खिलाते है ?? और एक चवँन्निया मुस्कान मार के चल दी।
अरुण भैया अपने दुखों को ऐसे भूल गए जैसे "गेस्टहाउस " कांड को मायावती भूल गयी..जैसे लगा उनके घाव पे शीतल सलिल के झोंके दर्द निवारक दवा का लेप कर रहे हो!!!
तब तक उनके कानों में प्रदीप भैया की कर्कश आवाज गूंजी!!
कोई बात नही बच्चा ये सब होता रहता !! हम भी बहुत लात खाये है लड़की के चक्कर के कह कर कुटिलता से मुस्करा दिये।
अरुण भैया बोले !! भाई कुछ भी कहो यूपी पुलिस साली मारती बेजगहा है??बताओ भला इहा कोई मारता है ?? अब हम सुबह पाकिस्तान कैसे जाएंगे??? और भोकर के रोने लगे।
दोनो लोग उनको टांग के बाहर लाये तो हम, गौरव और कौशल भैया देखते ही मुस्कराने लगे और समझ गए कि क्या हुआ।
पूरे रास्ते कोई यझ दूसरे सेकुछ नही बोला । बस विमी भैया और प्रदीप भैया मुस्करा रहे थे एक दूसरे को देख के जैसे किसी पूर्व जन्म का बदला लिया हो।
रूम पर आने के बाद हमलोग खाना बनाने की तैयारी में लग गए और अरुण भैया मार के थकान के चलते सो गए..उधर बाकी दु लोग फेसबुक पे लग गए लड़कियों के इनबॉक्स में hi लिखने ।
लगभग साढ़े एक घन्टा में खाना तैयार हुआ।
ये तय हुआ कि पेपर बिछा के अरुण भइया को चौकी पे ही दे दिया जाये काहे की बहुत लात खाये है।
गौरव ने पेपर बिछाया और सब्जी थाली में निकाल के सबको दिया।
मैंने रोटी उठाया और सबको देने के बाद चौकी पे गया रोटी देने तो अरुण भैया खा रहे है और आंखे दर्द और थकान से बंद है।
रोटी लेलो भैया?? मैंने कहा !!
लिया तो हूँ!! खा रहा हूं!!
ये शब्द सुनतेही सब लोग ऊपर उठ गये की देखने के लिए की क्या बात है ??
अरे हम रोटी दिये ही नही आप कहा से रोटी पा गए??
चुप बे!! एक तो हम दर्द से परेशान है और तुम मजाक करते हों!!
अब हम भौचक?? निगाहे दौड़ाई तो महाशय पेपर में आधा पेपर अपने उदर में पहुचॉ चुके थे!!
अब तो हँसी का फब्बारा छूट पड़ा!! सारे लोग लोट लोट के हँसने लगे रावण की तरह तब जाके अरुण भइया की तन्द्रा टूटी और जब देखे तो भागे नल की ओर उल्टी करने के लिए।
अब तो हँसी रुकने का नाम नही ले रही थी । अरुण भैया आये और रजाई में घुस के गए।
रात में किसी को नींद आ नही रही थी और जब नजर टकराती एक दूसरे से जोर से हंसी निकल जाती।
अथ श्री अरुण पुराण😂😂😂
अनूप राय
अनूप! अनूप! कहा मर गए बे?? अरुण भैया दनदनाते हुए रूम में दाखिल हुए ।
क्या हुआ भैया?? इतना जल्दबाजी में क्यों है?? मैंने बर्तन माँजते हुए पूछा।
अरुण भैया ने हैंगर पर टांगे हुए महीनों के गंदे कपड़ो में शुरुआत के कपड़ो में से एक को सूंघे और कहे! शाम को माघ मेले में संगम पर मनोज तिवारी का प्रोग्राम है उसमें चलना है और हा इं. प्रदीप और विवेक भी चल रहे है।
हम कहे !! देखो भैया सबको लेलो इनको न लो ये आफत खरीदते है !!!
हम गौरव और अजीत भैया को ले लेते है इनको न ले चलो मैने कहा!
उसको तो एकदम नही ले जाएंगे!!
उ काहे भैया?? मैने पूछा??
अरे तुमको पता नही उस दिन रूम पे आया था तो हमारा एक पॉव शुद्ध घी दाल में डाल के खा गया और बोला कि चिंता न करो 1 किलो दे देंगे!
जब हम रूम पर गए मांगने तो कहा कि मजाक किये थे यार!!
मुह बनाते हुए अरुण भैया ने कहा।
आप भी तो उस दिन उनका एक डब्बा काजू खा गए थे जब वो मंगलवार व्रत के दिन खीर बना रहे थे ???
अरे यार उस दिन तो हम भी व्रत थे न !! दाँत निपोरते हुए बोले।
और सुनो कौशल भी आ रहा है शाम पसेंजर से दारागंज उतरेगा ।
ठीक है पर अजित भैया को ले लीजिएगा ।
चुप बे ज्यादा बकर बकर करोगे तो तुम भी नही जाओगे!! बता दिए है तो अपना लोल बन्द ही रखो।
मै चुप होके बर्तन माँजने लगा । असल मे विवेक भैया , प्रदीप भैया और अरुण भैया खाना खा के थाली हमारी ओर खिसका देते और कहते शाम तक चमक जाना चाहिए!!
अब गौरव छोटा उसे हम कैसे माँजने दे??
तो हम खुद माँजते थे।
मैंने धीरे से अजित भैया को फोन कर दिया ।
शाम को हम सभी लोग पुराने गंदे कपड़ो में डीओ मार के महका दिये और चल दिये प्रोग्राम में।
सीट मिली चार तो सीनियर के नाते अरुण,इं. प्रदीप ,उजबक और अजित भैया लोग सीट पे बैठे ,और हम ,गौरव और कौशल भैया एकदम पीछे लाइन में खड़े थे।
इधर विवेक भैया और प्रदीप भैया अपने ताड़न योग को भलीभूत करने में अगल बगल सर्वे कर रहे थे और दोनो ने सेटिंग भी बैठा लिया।
इधर भोजपुरी गानों के दीवाने अरुण भैया तन्मयता से गाना सुन रहे थे। शुरू के भक्ति गीतों के बाद विमी भैया ने कहा क्या अरुण !! वो वाला गाने की फरमाइश करो न!!
अरुण भैया जोर से चिल्लाए जोश में जैसे केजरी चुनाव हारने के बाद बैलेट से चुनाव के लिए चिल्लाता है।
" बगल वाली जान मारेली " गाना गाइये!!!
तब तक उनके बगल में बैठी एक भौजी ने सैंडल की तरफ इशारा किया!! अरुण भैया को 440 का झटका लगा और याद आ गया कि कैसे एक बार लेबर चौराहे पे लँगड़ी मारने के चक्कर मे एक लड़की ने सरेआम अपने अपने "पाव दासी" नामक नुकीले अस्त्र से उनका थोबड़ा फुला दिया था। इतना याद आते ही उनका जोश साबुन के झाग की माफिक बैठ गया।
तब तक प्रदीप भैया के अभियंता वाले दिमाग ने अपना काम शुरू कर दिया था उन्होंने 500 का एक नोट अरुण भैया के सर के ऊपर हिलाना शुरू की और बोले!! हमारा गाना होकर रहेगा।
"मुख्यालय हिलेला हिले राजधानी त हे देवता ई मन कैसे मानी.."
इतना सुनना था कि पब्लिक बागी हो गयी और उत्पात मचा दिया। अरुण भैया नए नए अलाहाबाद में ये क्या घात पेंच जाने।
इधर पुलिस ने लाठी चार्ज किया कि हम , गौरव और कौसल भैया एक छलांग में टेंट से बाहर, विमी भैया और प्रदीप भैया लड़कियों के बीच अपने सेटिंग के साथ।
अब पुलिस के हाथों अरुण भैया!! मारवाड़ी आदमी ..नाजुक शरीर, कहा पुलिस के पाले पड़े।
वो भी उप पुलिस जो "मुर्दे का पिछवाड़ा देख के बता देती है कि ये किस गम में मरा है"
पुलिस ने चौकी पे अरुण भैया को उल्टा लिटाया और चारो तरफ से घेर के उनके "गिलगित और बलूचिस्तान पे हमला बोल दिया जैसे आज ही उनके पाकिस्तान से आजादी दिला देंगे।
जैसे जैसे लाठियां गिरती वैसे वैसे अरुण भैया की चीखे बढ़ती जाती।
और बोलते अनुपवा सही कहता था कि इन दुनो को मत ले चलो । ऐसी गलती अब नैय होगा..
इधर पुलिस ने उनके पाकिस्तान का पांच मिनट में ही बोकला छोड़ा दिया और चेतावनी दी!!
पढ़ने वाले हो इस लिए कम मारे है अब मत करना ऐसा!!
अरुण भैया की मुंडी ऐसे हिली जैसे मदारी का बन्दर हामी भरता है।
किसी तरह उठे और अपने बलूच क्षेत्र के तार तार हुए कपड़ो पे गमछे को लपेट कर अभी बाहर जाने की सोच रहे थे कि अचानक वो बगल वाली भौजी आयी और बोली!!
चलिए न आपको देहाती का रसगुल्ला खिलाते है ?? और एक चवँन्निया मुस्कान मार के चल दी।
अरुण भैया अपने दुखों को ऐसे भूल गए जैसे "गेस्टहाउस " कांड को मायावती भूल गयी..जैसे लगा उनके घाव पे शीतल सलिल के झोंके दर्द निवारक दवा का लेप कर रहे हो!!!
तब तक उनके कानों में प्रदीप भैया की कर्कश आवाज गूंजी!!
कोई बात नही बच्चा ये सब होता रहता !! हम भी बहुत लात खाये है लड़की के चक्कर के कह कर कुटिलता से मुस्करा दिये।
अरुण भैया बोले !! भाई कुछ भी कहो यूपी पुलिस साली मारती बेजगहा है??बताओ भला इहा कोई मारता है ?? अब हम सुबह पाकिस्तान कैसे जाएंगे??? और भोकर के रोने लगे।
दोनो लोग उनको टांग के बाहर लाये तो हम, गौरव और कौशल भैया देखते ही मुस्कराने लगे और समझ गए कि क्या हुआ।
पूरे रास्ते कोई यझ दूसरे सेकुछ नही बोला । बस विमी भैया और प्रदीप भैया मुस्करा रहे थे एक दूसरे को देख के जैसे किसी पूर्व जन्म का बदला लिया हो।
रूम पर आने के बाद हमलोग खाना बनाने की तैयारी में लग गए और अरुण भैया मार के थकान के चलते सो गए..उधर बाकी दु लोग फेसबुक पे लग गए लड़कियों के इनबॉक्स में hi लिखने ।
लगभग साढ़े एक घन्टा में खाना तैयार हुआ।
ये तय हुआ कि पेपर बिछा के अरुण भइया को चौकी पे ही दे दिया जाये काहे की बहुत लात खाये है।
गौरव ने पेपर बिछाया और सब्जी थाली में निकाल के सबको दिया।
मैंने रोटी उठाया और सबको देने के बाद चौकी पे गया रोटी देने तो अरुण भैया खा रहे है और आंखे दर्द और थकान से बंद है।
रोटी लेलो भैया?? मैंने कहा !!
लिया तो हूँ!! खा रहा हूं!!
ये शब्द सुनतेही सब लोग ऊपर उठ गये की देखने के लिए की क्या बात है ??
अरे हम रोटी दिये ही नही आप कहा से रोटी पा गए??
चुप बे!! एक तो हम दर्द से परेशान है और तुम मजाक करते हों!!
अब हम भौचक?? निगाहे दौड़ाई तो महाशय पेपर में आधा पेपर अपने उदर में पहुचॉ चुके थे!!
अब तो हँसी का फब्बारा छूट पड़ा!! सारे लोग लोट लोट के हँसने लगे रावण की तरह तब जाके अरुण भइया की तन्द्रा टूटी और जब देखे तो भागे नल की ओर उल्टी करने के लिए।
अब तो हँसी रुकने का नाम नही ले रही थी । अरुण भैया आये और रजाई में घुस के गए।
रात में किसी को नींद आ नही रही थी और जब नजर टकराती एक दूसरे से जोर से हंसी निकल जाती।
अथ श्री अरुण पुराण😂😂😂
अनूप राय