Thursday 11 January 2018

हास्य

भरल ओसारी होखे लागल , आँखियन से संवाद,
पल भर में तू क देहलु ,ई खाली हदय अबाद,
खाली ह्रदय अबाद, भइल जिनिगी मोर हरियर,
लेकिन भइल तबाह,एहि चक्कर मे केरियर।

नाँचल मन मयूर,उड़े दिन रात आकाश,
जइसे चातक करत रहे स्वाति के आस,
रहे स्वाति के आस,दमके तोहर आभा मंडल,
सास बनल ललिता पवार , डललस खरमण्डल।

 तय भइल बियाह  तोहार ,हमके फेरा में डाललू,
एकर उलटा धार, हमके मझधार में छोडलू,
मझधार में छोडलू , तू गइलु ससुरारी,
एने अर्थी उठावे क, होखे लागल तैयारी।



अनूप राय

Wednesday 10 January 2018

हास्य

बहुत पहले की बात है ,..शायद तब हमारा जन्म भी नही हुआ था। जब बड़े होने लगे तो अपने आस पास,गांव के बारे में जानने लगे,गांव के बहुत सारे किस्से है , उन्ही एक कहानियों में आज की एक कहानी है...,,

शायद सन 1970 के आसपास की ये घटना होगी। हमारे थाना क्षेत्र में एक नामी मुजरिम थे। थाने में वो हिस्ट्रीशीटर थे और कोई वारदात हो , उनका किया हो न हो, पर पुलिस सबसे पहले उन्हें ही खोजती थी  की यही किया होगा और सही अपराधी न मिलने पे उनका चालान काट के जिला जेल भेज दिया जाता था , खानापूर्ति के लिए , ये नंबर आठ के मुजरिम कहे जाते थे ।।

उनका नाम बिशेषर पांडे था, उनका भी नाम नंबर 8 के मुजरिमो में था।। एक बार की बात है, क्षेत्र में कुछ चोरी की वारदात हुई थी,पुलिस के ऊपर बहुत दबाव था अधिकारियों का, की इस केस का खुलासा किया जाए। अपराधी पुलिस से हमेशा तेज, वो पकड़ में ही न आये। थाने पे योजना बनी की इस थाने के सभी नम्बर आठ के मुजरिमो को इस केस में फंसा के चालान कर दिया जाए , और जान छूटे हम लोगो की।

कई पुलिस टीम का गठन हुआ..सारी टीमो को अपने अपने क्षेत्र में भेजा गया..। एक टीम हमारे गांव में भी आई ..और पांडे जी को खोजने लगी।
पांडे जी अपने समय के टॉप रेसर..चाहे जल, थल, नभ, हर जगह समान गति से भागते थे । ये उनकी खासियत थी...
पुलिस को आते देख पांडे जी पहले गांव से समतल रोड वे बिद्युत गति से भागे..वो जान गए की आज अगर पकड़े गए तो पाकिस्तान यानी तशरीफ़ ए दरार की बहुत सुताई होगी। वो भागने लगे पुलिस पीछे पीछे..., कुछ देर बाद गांव की सीमा समाप्त हुई और खेत आ गए..थुलथुल पुलिस वाले हाँफने लगे कुत्ते की तरह, कुछ नये पुलिस वालों ने मोर्चा नही छोड़ा। पांडे जी खेत के पगडंडियों पे जा चुके थे। पगडंडिया मात्र 6 इंच के लगभग होंगी , पांडे जी उसी वेग से आंधी की तरह भाग रहे है , पुलिस वाले गिरते पड़ते दौड़ रहे है उनको तो आदत है न चलने की इन खतरनाक रास्तो पर।
खैर पगडंडियों की बाधा खत्म हुई तो बगीचे आ गए ..पांडे जी आमो के पेड़ों में कही लुप्त हो गए , इस डाल से उस डाल बंदरो की तरह कूदते रहे और बगीचे से बाहर निकल गए ..
पुलिस वाले असहाय पिछे लगे हुए थे और अब गोली मारने की चेतावनी भी देने लगे।
अब पांडे जी के सामने संकट की मैदान में भागूँगा तो ये तो टिप देंगे हमे!! अब क्या किया जाए?? तब तक एक पुलिस का चौकीदार था जो अपने गांव का था , चिल्लाया,""साहब देखिये नही तो ये मूज में घुस जाएगा ...इतना तो पांडे जी लिए काफी था
सामने खेतो में बहुत मूज लगा हुई थी, (एक प्रकार की घास तो तेज होती है शरीर को चीर देगी) उसी में पांडे ही घुस के दौड़ने लगे । अब पुलिस वाले उसमे किसी तरह घुसे लेकिन हाथ पैर चीरने लगा तो बाहर निकल गए। तब तक पांडे जी भयंकर बाढ़ आई हुई गंगा ..जिसकी लहरे हाहाकार मचा रही थी किनारों से लड़कर, बीच मे भयंकर शोर लहरों के जैसे मानो कई युद्धक हंटर विमान आकाश में विराजमान हो। पानी ऊपर तक आया हुआ, भवर ऐसे ही एक बार आदमी उसमे फस जाये तो जलसमाधि निश्चित है । उस विकराल जल में पांडे जी छलांग लगा दिए , पुलिस वाले देख कर के हिम्मत नही जुटा सके, न नाव ही खोल सके उस भीषण जल प्रवाह में, और पांडे ही सकुशल निकल लिए।

ये तो पांडे जी कहानी थी...कल अंतराष्ट्रीय न्यायालय ने जाधव के मामले में फैसला दिया और पाकिस्तान की काफी लानत मलानत की , और फाँसी की सजा पे रोक लगा दी। भारत सरकार के तुरंत निर्णय लेने की क्षमता ने कुछ देर के लिए ही सही लेकिन हत्यारे पाकिस्तान से उसकी जान की रक्षा कर दी..और आगे के लिए प्लान तैयार हो रहा है...

कल देश के गद्दार और भ्रष्ट पार्टी ने कहा कि भारत ने इस मामले को हेग में ले जाकर पाकिस्तान की रास्ता दिखा दिया कि वो भी कश्मीर मामले को वहां ले जाये....ये बहुत ही ग़लत हुआ और मोदी इसके जिम्मेदार होंगे।
अगर मोदी ने कुछ नही किया होता तो ये आज नगर वधु की तरह रो रहे होते की क्या हुआ 56 इंच का!!!
मतलब ये वो सुतिये है कि ""छिनार औरत की तरह ..की अपने सब कुछ गलत करेंगी लेकिन कोई सही भी करे तो रोयेंगी।
इनलोगो ने खुद सबरजीत के मामले मव कुछ नही किया और उसको फांसी हो गयी ..आज की सरकार नही चाहती है कि कोई और सबरजीत इस तरह की मौत मारा जाए।
बाकी अगर तुम लोगो को लगता है कि सरकार गलत कर रही है तो चुपचाप बैठ के देखो..,2029 तक आने की सोचो भी मत, जनता सब देख रही है और जान रही है, तुम्हारे 60 साल के किये गए कुकर्मो का फल भुगत रही है । अगर बल्लभ भाई पटेल प्रधान मंत्री होते तो देश की दशा और दिशा कुछ और होती,।  तुमलोगो से तो कलयुग भी शरमा जाए तुम्हारे कर्मो को देख कर, यमराज को एक नया दण्ड संहिता लिखना पड़ेगा कि , क्या -क्या सजा तुम लोगो को दिया जाए।

बाकी अगर बहुत ज्यादा जलन हो रही है तो और बरनाल का स्टॉक खत्म हो गया हो तो पतंजलि का पेस्ट दंतकान्ति अपने सही वाले जगह पर करे , मैं ऐसा मानता हूँ कि जलन से आराम मिलेगा, अगर नही मिलता है तो तार ब्रश से धोइये😂😂😂😂




अनूप राय


कृषि

#कृषि_और_नक्षत्र_भाग_3

वर्षा के सम्बंध में घाघ और भड्डरी का अनुभव बड़े काम का है,और उनका प्रकृति निरीक्षण तो और अद्भुत है। गौरैया, गिरगिट, बकरी, साँप ,मेंढक, चींटी, आकाश , बादल और हवा के क्रियाकलापों का निरीक्षण करके मौसम का सटीक अनुमान लगाया है।
 
सबसे विलक्षण यह बात है,कि माघ और पौष का वातावरण देख कर सावन और भाद्रपद में वृष्टि का  अनुमान लगाया जाता है जो विज्ञान भी नही बता सकता।

पौष और माघ वर्षा के गर्भाधान का समय है। इस समय हवा का घुमाव और बिजली, बादल देख कर सावन और भादो में कितनी वर्षा होगी ये सटीक अनुमान लगता है।

ज्येष्ठ वर्षा के गर्भस्राव का समय है यदि जेठ बिना बरसे बीत गया तो आशा की जाती है कि सावन और भादो में अच्छी वर्षा होगी।
वर्षा का गर्भ 196 दिनों में पकता है या ये कहें  इन्ही दिनों में सारें अनुमान तय होते है।
12 राशियां और 27 नक्षत्र होतें है, और ऐसा माना जाता है कि सूर्य प्रत्येक चौदह दिन पर दूसरे नक्षत्र में प्रवेश करता है, एक अपवाद को छोड़ कर! हस्त नक्षत्र को माना जाता है कि ये सोलह दिनों का होता है, ये अपने पहले वाले को दबा कर एक दिन पहले चढ़ता है और एक दिन बाद उतरता है।
हस्त को चार भागों में चार - चार दिनों में विभक्त किया गया है जिसे सोना, चांदी , तांबा और लौह का नाम दिया गया है ।
कहा जाता है कि जिस भाग में वर्षा होती है उसी अयस्क के मूल्य के अनुसार पैदावार होती हैं।

सूर्य कब किस नक्षत्र में प्रवेश करता जो अनुमानित हैं उसे हम अंग्रेजी के कैलेंडर के अनुसार लिख रहें है ताकि सबको ज्ञात हो जाये।

अश्विनी                                      13 अप्रैल
भरणी                                         27 अप्रैल
कृतिका                                      11मई
रोहिणी                                       25मई
मृगशिरा                                   07 जून
आद्रा                                          21 जून      
पुनर्वशु                                       05 जुलाई
पुष्य                                          20जुलाई
अश्लेषा                                      03 अगस्त
मघा                                           16अगस्त
पूर्वा फाल्गुनी                              30अगस्त
उत्तरा फाल्गुनी                          13 सितंबर
हस्त                                         27 सितंबर
चित्रा                                           10 अक्टूबर
स्वाति                                           24अक्टूबर
विशाखा                                          06 नवम्बर
अनुराधा                                         19 नवम्बर
ज्येष्ठा                                               2 दिसंबर
मूल।                                                  15दिसंबर
पूर्वाषाढ़                                           27दिसंबर
उत्तराषाढ                                         10जनवरी
श्रवण                                              23जनवरी
धनिष्ठा                                               05फरवरी
शतभिषा                                             19फरवरी
पूर्वभाद्रपद                                         03मार्च
उत्तरभाद्रपद                                         16 मार्च
रेवती                                                     30 मार्च

घाघ की कहावतों का संग्रह इतना विशाल है कि तनिक में समाप्त नही होगा ,फिर भी कुछ कहावतें यहां वर्णित हैं।

आदि न बरसे अद्रा, हस्त न बरसे निदान।
कहै घाघ सुनु घाघिनी, भये किसान-पिसान।।

अर्थात आर्द्रा नक्षत्र के आरंभ और हस्त नक्षत्र के अंत में वर्षा न हुई तो घाघ कवि अपनी स्त्री को संबोधित करते हुए कहते हैं कि ऐसी दशा में किसान पिस जाता है अर्थात बर्बाद हो जाता है।

आसाढ़ी पूनो दिना, गाज, बीज बरसन्त।
नासै लक्षण काल का, आनन्द माने सन्त।।

अर्थात आषाढ़ माह की पूर्णमासी को यदि आकाश में बादल गरजे और बिजली चमके तो वर्षा अधिक होगी और अकाल समाप्त हो जाएगा तथा सज्जन आनंदित होंगे।

उत्तर चमकै बीजली, पूरब बहै जु बाव।
घाघ कहै सुनु घाघिनी, बरधा भीतर लाव।।

अर्थात यदि उत्तर दिशा में बिजली चमकती हो और पुरवा हवा बह रही हो तो घाघ अपनी स्त्री से कहते हैं कि बैलों को घर के अंदर बांध लो, वर्षा शीघ्र होने वाली है।

उलटे गिरगिट ऊंचे चढ़ै। बरखा होई भूइं जल बुड़ै।।

अर्थात यदि गिरगिट उलटा पेड़ पर चढ़े तो वर्षा इतनी अधिक होगी कि धरती पर जल ही जल दिखेगा।

करिया बादर जीउ डरवावै। भूरा बादर नाचत मयूर पानी लावै।।

अर्थात आसमान में यदि घनघोर काले बादल छाए हैं तो तेज वर्षा का भय उत्पन्न होगा, लेकिन पानी बरसने के आसार नहीं होंगे। परंतु यदि बादल भूरे हैं व मोर थिरक उठे तो समझो पानी ‍निश्चित रूप से बरसेगा।

चमके पच्छिम उत्तर कोर। तब जान्यो पानी है जो।।

अर्थात जब पश्चिम और उत्तर के कोने पर बिजली चमके, तब समझ लेना चाहिए कि वर्षा तेज होने वाली है।

चैत मास दसमी खड़ा, जो कहुं कोरा जाइ।
चौमासे भर बादला, भली भांति बरसाइ।।

अर्थात चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को यदि आसमान में बादल नहीं है तो यह मान लेना चाहिए कि इस वर्ष चौमासे में बरसात अच्छी होगी।
जब बरखा चित्रा में होय। सगरी खेती जावै खोय।।
अर्थात यदि चित्रा नक्षत्र में वर्षा होती है तो संपूर्ण खेती नष्ट हो जाती है। इसलिए कहा जाता है कि चित्रा नक्षत्र की वर्षा ठीक नहीं होती।

माघ में बादर लाल घिरै। तब जान्यो सांचो पथरा परै।।

अर्थात यदि माघ के महीने में लाल रंग के बादल दिखाई पड़ें तो ओले अवश्य गिरेंगे। तात्पर्य यह है कि यदि माघ के महीने में आसमान में लाल रंग दिखाई दे तो ओले गिरने के लक्षण हैं।

रोहनी बरसे मृग तपे, कुछ दिन आर्द्रा जाय।
कहे घाघ सुनु घाघिनी, स्वान भात नहिं खाय।।

अर्थात घाघ कहते हैं कि हे घाघिन! यदि रोहिणी नक्षत्र में पानी बरसे और मृगशिरा तपे और आर्द्रा के भी कुछ दिन बीत जाने पर वर्षा हो तो पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाते-खाते ऊब जाएंगे और भात नहीं खाएंगे।

सावन केरे प्रथम दिन, उवत न ‍दीखै भान।
चार महीना बरसै पानी, याको है परमान।।

अर्थात यदि सावन के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को आसमान में बादल छाए रहें और प्रात:काल सूर्य के दर्शन न हों तो निश्चय ही 4 महीने तक जोरदार वर्षा होगी।

दिन में गरमी रात में ओस,
कहे घाघ तब बरसा कोस।।

यदि दिन में गरमी और रात में ओस पड़ने लगे तब समझिए कि वर्षा कोसों दूर है।

पानी बरसे आधा पूष।
आधा गेहूं आधा भूस।।

यदि पौष मास में पानी बरसता है तो समझिए आधा गेंहू और आधा भूसा होगा। यानी बहुत अनाज होगा।

लगे अगस्त फूले बन कांसा।
तब छोड़ो वर्षा की आशा।।

जब आकाश में अगस्त तारा उदित होनें लगे और वन में कांसा का फूल खिले तब वर्षा की उम्मीद त्याग देनी चाहिए।

तुलसीदास जी ने भी रामचरित मानस में उल्लेख किया हैं कि,

"उदित अगस्त पंथ जल सोखा" ।

वायु में जब वायु समाय।
कहे घाघ जल कहां समाय?

जब वायु एक साथ आमने सामने बहने लगे तो इतना जल होगा कि जल रखने की जगह नही बचेगी।

माघ अंधेरी सप्तमी।
मेह विज्जु दमकन्त।।
चार मास बरसे सही।
मत सोचे तू कंत।।

माघ मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी को यदि बिजली चमके तो बरसात में वर्षा अच्छी होती है , चिंता नहीं करना चाहिए।

क्रमशः

अनूप राय

हास्य

#हास्य_व्यंग्य😂😂

बहुत समय पहले की बात है, एक जंगल मे बहुत प्रकार के जीव, जंतु रहते थे। हाथी, घोड़ा शेर, सियार, गधा, बैल इत्यादि!
सबमें आपस मे बहुत प्रेम रहता था। सब लोग जानते ही है कि जंगल का राजा शेर ही होता है, परन्तु एक रंगा सियार के दिमाग मे यह बात घर कर गयी कि हमसे बुद्धिमान इस जंगल मे कोई नही है अतः राजा हमें होना चाहिए?

अतः उसने जंगल से कुछ दूर एक अच्छा सा चबूतरा बनवाया और नाना तरह के मूल्यवान घाँस-फूँस से (आडम्बरों) से उसे छा दिया।अपने कानों में दो सोने के कुंडल पहन लिया, सुंदर वस्त्र पहन लिए और आकर चबूतरे पर बैठ गया। उसके चबूतरे के सामने एक नदी थी, उसमें सारे जीव-जंतु आकर पानी पीते थे। उस दिन भी प्यास लगने के कारण जीव-जंतु आने लगे पानी के लिए तो रंगे सियार ने रोक दिया और कहा मैं राजा हूं यहां का इसलिए जो मैं कह रहा हूं कहो तभी पानी पीने दूँगा! अन्यथा अपने राज्य से बाहर निकाल दूँगा!

सियार ने कहा,

सोने के चबूतरा, रुपे छावल बा।
दुनो काने मोहर माला, राजा बइठल बा।।

अब जिसको प्यास लगी हो कौन बहस करने जाए वो बोल देता था, और सियार खुश होकर पानी पीने देता था।

इसी प्रकार समय बीतता गया और रोज का यहि काम हो गया! सियार के कुछ मित्र भी थे एक बैल, एक शेर, एक गधा, एक तोता, एक कबूतर, और भी बहुत सारे थे जो उस सियार से प्रेम करते थे और उसकी हर बात मानते थे।
सियार खुश था कि कई प्रकार के जानवर हमारे मित्र हैं अतः हमसे कोई कुछ बोलेगा नहीं।

समय बीतता गया, सियार का अहंकार बढ़ता गया। एक समय ऐसा आया कि उसे लगा कि जो कुछ मेरा सम्मान है सब मेरे द्वारा है ये लोग तो बस बेकार है, और उम्मीद करने लगा कि मेरे मित्र भी ये आरती गाये।

अब वो अपने मित्रों की शिकायत करने लगा और लोगों से।
कहते है इश्क और मुश्क छुपाए नही छुपता, एक दिन सारे मित्रों को ये बात पता चली, और कोई तो कुछ नही बोला लेकिन बैल तो बैल बुद्धि, दिन भर खेती किसानी में लीन, वो लड़ बैठा।
तब सियार ने कहा कि ये तो धन्य, धान और प्रसिद्धि देख रहे हो न बहुत मेहनत लगता है कमाने में, तुम क्या जानो इसका मोल, और हां अगर यहां रहना है और पानी पीना है तो ये आरती गाओ!

सोने के चबूतरा, रुपे छावल बा।
दुनो काने मोहर माला, राजा बइठल बा।।

तब बैल बोला ठीक है सुनो अहंकारी राजा,

" माटी के चबूतरा, मड़ई छावल बा, दुनो काने मेंगुची टँगले, सियरा बइठल बा😂 "

अब सियार का भेद खुल गया था लेकिन वह थेथरई पर उतर आया और बैल से उलट कर बोला

" मेरी कुछ इज्ज़त है जंगल में। सबके सामने तुम मुझे ऐसे कहोगे तो जानवर क्या कहेंगे कि राजा की यही इज्ज़त है मित्रों में। "

बात बढ़ती देख शांत प्रकृति गदहे ने सियार को समझाना चाहा तो सियार ने उसकी बड़ी निर्लज्जता से बेईज्ज़ती कर दी। गदहा क्रोध में उबल पड़ा लेकिन शेर ने उसे रोक कर जब सियार को टोका तो मनोविज्ञान समझने वाले शातिर सियार ने उसकी बात का जवाब ही नहीं दिया। अब गदहे का धैर्य चुक गया था और उसने जो जोर की दुलत्ती झाड़ी की सियार 50 हाथ दूर जाकर गिरा। गिरने के बाद वह लजाया, शरमाया और मुंह चुरा के निकल भागा किसी अगले राज्य की ओर चाटुकार ढूंढने।

भावार्थ यह है कि यदि कोई मित्र प्रेम-वश कुछ नहीं कहता तो इसका मतलब यह नहीं कि वो अज्ञानी है, उसके पास भी मस्तिष्क है सही-गलत में पहचानने का। यदि आपकी ग़लती पर टोक दे या लड़ ही ले तो स्वीकार करिये, न कि दम्भी बन जाइए।

और इसमें कोई दो 'राय' नहीं कि गधे की उतनी ही उपयोगिता है जितना अन्य की, क्योंकि यहां "राय" तो एक ही हैं।

यहां लोक कहावत लिख रहा हूँ अगर समझ मे आये तो मन में हँस लीजियेगा!

छोटी गो चिरई, खइली खर।
गा@#! में अटकल गइली मर।।

अनूप राय

कृषि

#कृषी_और_नक्षत्र_भाग_2

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एक बार भगवान इंद्र देव किसी कारणवश कुपित होकर किसानों से रूष्ट हो गए थे । उन्होने सूर्य और पवन को बुलाया   और कहा कि सूर्य, आपको अत्यधिक ताप देना है धरती पर और पवन से कहा कि आपको बिल्कुल शांत गति से चलना है , फिर उन्होनें  मेघ को बुलाया और कहा कि इस साल आपको अपने मेघों जल वृष्टि नही करनी है धरती पर! किसानों ने मेरा अपमान किया है, तीनो देवो ने कहा आपके आदेश का पालन होगा देवराज।

ततपश्चात सूर्य और वायु के सम्मलित प्रयास ने धरती पर भयंकर गर्मी और उमस पैदा कर दिया! सभी मनुष्य, जीव जंतु व्याकुल होकर तड़फड़ाने लगे , परन्तु इतनी अत्यधिक गर्मी में भी किसान सम्भावनाएँ  तलाश रहे थे कि बस कुछ दिनों का कष्ट है लगता है इस साल अच्छी बारिश होगी।
धरती का पानी सूखने लगा, तालाब,पोखरें सब सूख गऐ। उसमे रहने वाले जीव जंतु काल का ग्रास बनने लगे !
इतनी गर्मी और जलाभाव में जमीन ले अंदर घुसे मेढ़क भी बाहर आ गए और टर्राने लगे , इतना सुनना था कि मेघ सँगठित होकर बारिश कर बैठे( मेढ़क के टर्राने से बारिश होती है ऐसी मान्यता है)।
बारिश देख कर किसानों के मन प्रफुल्लित हो उठे और खेती की तैयारियां शुरू हो गयीं!

जब इंद्र को समाचार मिला कि धरती पर बारिश हो गयी है तो इंद्र ने क्रोध में होकर मेघ को और बरसने का कारण पूछा!
तब मेघ ने कहा " मैं क्या करूँ देवराज! जब मन्डूको ने आवाज लगाई तो हमे बरसना ही था! अगर आपको मना करना है तो उन्हें मना कीजिये मैं नही जलवृष्टि करूँगा!

तब इंद्र मन्डूको के पास गए और उन्हें न बोलने का आदेश दिया।

एक दिन की बात थी एक मेढ़क को टर्राने का मन कर दिया , लेकिन वो इंद्र से डर के मारे टर्राने से डर रहा था , परन्तु उसके मन मे क्या विचार आया कि टर्रा दिया!
फिर क्या था दे झमाझम बारिश ! किसानो  के मुख पर प्रसन्नता फैल गई!
जुताई होने लगी, बीज पड़ गया! तब तक इंद्र को ये बात पता चली। मारे क्रोध के लाल इंद्र वज्र लेकर मेढकों के पास पहुच गए कि आज इस प्रजाति का समूल नाश कर देना है।
सारे मेढ़क भयभीत हो गए! तब उनमें से एक बुजुर्ग मेढ़क ने कहा, आने दो इंद्र को हम बात करेंगे!

इंद्र ने आते ही कहा,"  जब हमने मना किया था तब तुम लोग क्यो टर्राये??

मेढ़क ने कहा,  हे देवराज!  पहले शांत होकर हमारी बात सुनिए।

आप किसानों से नाराज है इसके चलते आपने बारिश बन्द करा दिया है लेकिन उनलोगों के  पास अगले साल के लिए भी अनाज रखा था घर मे !तो हमलोगों ने सोचा कि टर्रा के बारिश करा देते है ताकि जो घर मे अन्न है वो भी खेतो में आ जाये और फिर नष्ट हो जाये!!
मेढ़क की चतुराई भरी बाते सुनकर इंद्र खुश होकर वापस चले गए और मेढकों की जान बच गयी।

अब आते है मूल विषय पर! किसानों को अपने मौसम का पूर्वा अनुमान लगाने के लिए प्रकृति आधारित कुछ संकेतो को समझना बड़ा मुश्किल हो रहा था !

सारे श्लोक संस्कृत में थे और किसान कम पढे लिखे थे , अतः बहुत समस्या हो रही थी किसानों को समझने में !
आवश्यकता थी कि कोई इन संकेतों को सामान्य जनजीवन के भाषा मे लिपिबद्ध किया जाए तो सम्भव है कि सभी लोगो के पास मौसम पूर्वानुमान की जानकारी हो जाएगी!
इन्ही सब अनुमानों और संकेतों पर आधारित कवि घाघ के दोहे और मुहावरे लोकभाषा में बहुत प्रसिद्ध हुए।

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एक समय की बात है! एक पंडित जी को ज्योतिष का बड़ा ज्ञान था। वो एक दिन ज्योतिष के पन्नों  को उलट रहे थे कि उन्हें ज्ञात हुआ कि अमुक समय मे यदि मैं किसी नारी से संसर्ग करू तो एक बहुत ही विलक्षण और प्रतिभावान पुत्र की प्राप्ति होगी।
पंडित जी ने सोचा कि क्यों  न  पुत्र प्राप्ति के लिए प्रयत्न किया जाए!
पंडित जी उस समय अपनी पत्नी से बहुत दूर किसी अन्य प्रदेश में थे! वो तत्काल बिना कोइ पल गवाएं वहां से अपने घर की तरफ प्रस्थान किये। पैदल चलते चलते कई दिन बीत गए , लेकिन अपने घर तक नही पहुच सके थे! रात्रि में उन्होंने ने थकान के कारण एक गांव में विश्राम करने का  सोचा और एक ग्रामीण के यहां रुक गए!
रात्रि के समय तिथि और नक्षत्र देखने पर ज्ञात हुआ कि वो शुभ समय आज रात भर का ही है!

पंडित जी बड़ा चिंतित हुए की ये समय तो लगता है बीत जायेगा!
तब उन्होंने उस घर मे एक औरत को ये बात बताई और उससे संसर्ग करने को कहा!
वो स्त्री मान गयी!

अगले सुबह पंडित जी वहां से चले गए और कुछ समय पश्चात उस स्त्री को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जो देखने से ही सुंदर और अलौकिक दिखता था ।
वो बालक जैसे जैसे बड़ा हो रहा था वैसे वैसे उसकी प्रतिभा सबके सामने आ रही थी।

एक दिन अचानक पंडित जी को अपने इस पुत्र की याद आयी तो सोचे की अब वो बड़ा हो गया होगा चलो उसकी शिक्षा के लिए मैं उसे लें आऊ!

पंडित जी पहुच गए कुछ दिनो मे उस ग्रामीण के घर और पहले से तय बात के अनुसार अपने पुत्र को मांग लिया और वहां से चल दिये।
आगे पंडित जी और पीछे उनके उनका पुत्र चल रहा था! चलते चलते वो खेतो की पगडंडियों पर चलने लगे , आगे जाने पर बालक ने कहा!

पिताजी एक तरफ जौ है और एक तरफ गेहू और ये दोनों अलग अलग लोगो के हैं , तो दोनों को अलग अलग लोग ही काटेंगे न ??

पंडित जी ने कहा हा जिसका जो खेत वही फसल वो लेगा!
बालक तुरन्त बोला!  लेकिन किनारे पर जौ के खेत मे थोड़ा गेहू और गेहू के खेत  में थोड़ा जौ कैसे हो गया है??

पंडित जी ने कहा!बुवाई के वक्त बीज छिटक के इधर उधर हो गए है।

तब बालक ने फिर प्रश्न किया.. तब तो जौ वाला उस खेत का जौ और गेहू वाला दूसरे खेत का गेंहू काटेगा??

पंडित जी ने कहा!! नही पुत्र ,  जिसका खेत है वही लेगा भले बीज कही से आया हो!

तब बालक ने कहा कि हे पंडित जी आप इतने ही ज्ञानी है तो फिर हमें अपने खेत से क्योंअलग कर रहें है?  मेरी माँ ने जन्म दिया है आप तो बाहर कही से आ गए थे!!

पंडित जी को अपनी गलती का आभास हुआ और उन्होंने अपने पुत्र से क्षमा मांगा और उसको उसकी मां के पास छोड़कर चले गए।

कालांतर में यही बालक आगे चलकर घाघ नाम से प्रसिद्ध हुआ।

नक्षत्रो और दिनों के बारे में बहुत सी कहावतें है जो  मौसम पूर्वानुमान पर बिल्कुल सटीक उतरती है जैसे..

शुक्रवार की बादरि , रहे सनीचर छाए।

घाघ कहे सुन घाघीनी , बिन बरसे नही जाएं।।

अर्थात शुक्रवार को आसमान में बादल दिखाई दे और पूरे शनिवार को छाए रहे तो ये बिना बरसे नही जाते है।

मंगलवार परै दिवारी।
हँसे किसान रोवे व्यापारी।।

अर्थात यदि मंगलवॉर की दीवाली पड़ती है तो उस साल किसान खुशहाल और व्यापारी घाटे के जाते हैं।
माघ मास की बादरि , औ कुवार का घाम।
यह दोनों जो कोउ सहै, करे पराया काम।।

अर्थात माघ की बादल वाली ठंडक और कुवार मास का धूप जो व्यक्ति सह सकता है वो कोई भी काम कर सकता है।

सावन घोड़ी,भादो गाय,
माघ मास जो भैंस बियाय।

कहे घाघ यह सांची बात,
आपे मरे की मालिक खात।

अर्थात सावन में घोड़ी, भादो में गाय और माघ मास में  भैस बच्चा देगी तो या तो अपने मर जाएगी या घर का मालिक मर जायेगा।

दिन के बद्दर ,रात निबद्दर
पुरुआ बहे झब्बर झब्बर।

घाघ कहे कुछ होनी होइ,
धोबी कुआं पर कपड़ा धोइ।

अर्थात सावन मास में यदि दिन में बादल रहता हो और रात को तारे दिखाई दे साथ मे जोर जोर से पुरवा हवा चले तो समझ लेना चाहिए कि वर्षा नही होगी और सभी तालाब , सूख जायेंगे जिसके चलते धोबी कुआ पर कपड़ा धोएगा!

उल्टा बादर जो चढ़े, विधवा खड़ी नहाय,

घाघ कहे सुन भड्डरी, वह बरसे वह जाये

अर्थात, जिस दिशा से हवा बह रही हो उसके विपरीत दिशा से बादल आकाश में चढ़ रहे हो और विधवा स्त्री खड़े होकर स्नान कर रही हो तो समझ लेना चाहिए कि बादल जरूर बरसेंगे और स्त्री किसी  के साथ भाग जाएगी ।

माघ में गरमी, जेठ में जाड़।
घाघ कहे हम होब उजाड़।

अर्थात यदि माघ मास में गर्मी और जेठ में जाड़ा लगे तो समझ लेना चाहिए कि खेती चौपट है इस साल और बरसात नही होगी।

सावन पछिमा सींक डोलावे ,
सूखी नदिया नाव चलाव।

अर्थात सावन मास में पश्चिमी हवा सींक के बराबर भी बह गई तो इतनी बरसात होगी कि सूखी नदी में भी नाव चलने लंगेगी।

सावन मास बहे पुरवइया,
बरधा बेच ले आऊं धेनु गैया।

अर्थात सावन मास में यदि पुरवा हवा चल रही हो तो बरसात नही होगी अतः बैलों को बेच के गाय खरीद लेना चाहिए ताकि दूध के भरोसे जीवन यापन हो सके।

पोस्ट काफी लंबी हो गयी गई अतः शेष अगले भाग में!

क्रमशः

अनूप राय

कृषि

#कृषि_और_नक्षत्र

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प्राचीन काल से आज तक मनुष्य अपनी क्षुधा को शांत करने के लिए प्रकृति पर अवलम्बित रहा है। प्रकृति ने भी उसे अपनी ममतामयी गोद में कृषि के माध्यम से शस्य (धान्य) से समृद्ध बनाया। किन्तु वृष्टि, अनावृष्टि, अतिवृष्टि, दुर्भिक्ष आदि अनेक प्राकृतिक अपदाओं का भय भी अक्सर देखा ही जा रहा है और इनसे निपटने के लिए ज्योतिष की सहायता ली जा सकती है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र इस मामले में बेजोड़ है। ज्योतिष शास्त्रानुसार प्रत्येक घटना के घटित होने के पहले प्रकृति में कुछ विकार उत्पन्न देखे जाते हैं जिनकी सही-सही पहचान से व्यक्ति भावी शुभ-अशुभ घटनाओं का सरलतापूर्वक परिज्ञान कर सकता हैं जैसे उल्कापात मेघ, वात, मेघगर्भ लक्षण आदि।

आषाढ़ का तपता हुआ दिन जब सब घरों में छिपे रहते है उसी समयकाल में ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाला एक कृषक धान के बीजों को उपचारित करने में लगा होता है ताकि समय से बीज पड़ जाए बेहन के लिए!!

उस समय उसके दिमाग मे उस तपती गर्मी को लेकर तनिक भी भय नही होता कि आगे वर्षा होगी या नही!
धान खरीफ की फसल का एक प्रमुख फसल है , खरीफ की और भी फसलें है  जैसे बाजरा, मक्का,   अगहनिया, अरहर इत्यादि लेकिन बर्षा आधारित फसल धान ही  है
जैसे ही रोहिणी नक्षत्र का प्रादुर्भाव होता है किसान की चपलता बढ़ जाती है और खेत को जोत कर धान के बीज के लिए तैयार करता है।
धान का बीज रोहिणी के ही क्यो डालना चाहिए इसके लिए हमे रोहिणी नक्षत्र के बारे में जानना होगा।

भारतीय वैदिक ज्योतिष में रोहिणी को एक उदार, मधुर, मनमोहक तथा शुभ नक्षत्र माना जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार की जाने वाली गणनाओं के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले सताइस नक्षत्रों में रोहिणी को चौथा स्थान दिया जाता है। रोहिणी का शाब्दिक अर्थ जानने के लिए हमें इस शब्द के मूल से इसका अर्थ समझना होगा। रोह शब्द का अर्थ है विकास अथवा उन्नति करना तथा रोहण शब्द का अर्थ है किसी प्रकार की सवारी करना अथवा सवारी करने वाला और इसी के अनुसार रोहिणी शब्द का अर्थ बनता है सवारी करने वाली। रोहिणी के मूल शब्द रोह के अर्थ को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि यह सवारी करने वाली स्त्री उन्नति तथा विकास की सूचक है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार दो बैलों के द्वारा खींची जाने वाली बैलगाड़ी को रोहिणी नक्षत्र का प्रतीक चिन्ह माना जाता है। प्राचीन समयों में बैल को कृषि तथा व्यापार से संबंधित बहुत से क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता था तथा बैलगाड़ियों का प्रयोग पक चुकी खेती को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए तथा व्यापार से जुड़ी अन्य वस्तुओं को भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए किया जाता था जिसके कारण बैल तथा बैलगाड़ी प्राचीन काल की कृषि व्यवस्था तथा व्यापार व्यवस्था के स्तंभ माने जाते थे। रोहिणी नक्षत्र के सभी चार चरण वृषभ राशि में स्थित होते हैं तथा वैदिक ज्योतिष में वृषभ राशि को कृषि उत्पादन, पशु पालन तथा व्यापार से जुड़ी एक राशि माना जाता है। वृषभ शब्द का अर्थ ही बैल होता है तथा इसी के अनुसार वृषभ राशि का प्रतीक चिन्ह भी वैदिक ज्योतिष के अनुसार बैल को ही माना जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार वृषभ राशि का स्वामी शुक्र को माना जाता है तथा शुक्र ग्रह को भी वैदिक ज्योतिष के अनुसार कृषि, सुंदरता, रचनात्मकता तथा व्यापार के साथ जुड़ा हुआ एक ग्रह माना जाता है।
इन सभी तथ्यों के कारण रोहिणी नक्षत्र पर बैल के गुणों का बहुत प्रभाव रहता है जिसके चलते इस नक्षत्र में बैल के सहज गुण जैसे कि परिश्रम करना, सहज स्वभाव का होना, दृढ़ इच्छा शक्ति का स्वामी होना तथा अन्य कई गुण भी पाए जाते हैं। बैलगाड़ी का प्रभाव होने के कारण रोहिणी नक्षत्र को व्यापार, कृषि उत्पादन, पशु पालन तथा अन्य ऐसी विशेषताओं के साथ भी जोड़ा जाता है। कुछ वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि बैलगाड़ी का चलना समय के पहिये का चलना भी माना जा सकता है तथा यहां इस पहिये के चलने का अर्थ विकास, उन्नति तथा सृजन से भी लिया जाता है जिसके कारण वैदिक ज्योतिष में रोहिणी को सृजन, विकास तथा उन्नति के साथ भी जोड़ा जाता है। शुक्र ग्रह का प्रभाव इस नक्षत्र में रचनात्मकता, सुंदरता तथा सृजन करने की शक्ति पैदा कर देता है जिसके कारण इस नक्षत्र में इन विशेषताओं की प्रबलता बढ़ जाती है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार त्रिदेवों में सृष्टि के जनक तथा रचियता भगवान ब्रह्मा जी को रोहिणी नक्षत्र के अधिपति देवता माना जाता है जिसके कारण इस नक्षत्र पर ब्रह्मा जी का भी प्रबल प्रभाव रहता है। ब्रहमा जी के प्रभाव में आने के कारण रोहिणी नक्षत्र में सृजन करने की प्रबल शक्ति आ जाती है तथा यह नक्षत्र वैदिक ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक प्रकार के सृजन, उत्पादन, निर्माण तथ विकास को प्रोत्साहित करता है।

जैसे ही बीज खेत मे पड़ता है किसान के पास असंख्य पौध रूपी शिशुओं की पालन पोषण की जिम्मेदारी आ जाती।
जब पौधे 10 या 15 दिन के होते तब "मृगशिरा नक्षत्र रूपी एक भयंकर ताप वाले समय काल से पौधों की अपने जीवन को लेकर लड़ाई चलती है जहाँ सूर्य की असीम ऊर्जा पौधो को सुखा लेने को आतुर होती है तो किसान अपने मेहनत और स्वेद से उसको नमी प्रदान किये रहता है ।

कहा जाता है कि यदि मृगशिरा नक्षत्र में तपन ज्यादा होती है तो वर्षा अच्छी होती है। अतः किसान सुखद भविष्य को लेकर मृगशिरा का ताप सह लेता है!

"अदित्यात् जायते वृष्टि"।

अर्थात सूर्य से तपन, तपन से ऊर्जा, ऊर्जा से वृष्टि, वृष्टि से हरियाली, हरियाली से खुशहाली।

आद्रा नक्षत्र से लेकर और अनुराधा तक धान के फसल में नक्षत्रीय ज्योतिष का बड़ा उपयोग होता है जब आद्रा की रिमझीम फुहारे धरती के सीने को शीतल कर देती है तब किसान अपने कृषि यंत्रों या आयुधो के साथ खेतो में रमण करने लगता है।

जोताई करने और रोपनी के बाद कितना भी कृत्रिम पानी की सुविधा हो लेकिन अगर निश्चित किये गए नक्षत्रों में पानी नही बरसता तो कृषि में हानि तय है।

हमारे पूर्वजो ने कुछ लोकोक्तियां और श्लोकों के माध्यम से हमे जानकारी देने का अदभुत प्रयास किया है जो आज के समय मे विलोपित हो रही है!

यदां जनिनो मेघ: शान्तायम दिशि दृश्यते।
स्निग्धो मंदगतिश्र्वापि तदा विधाज्जलं शुभम्।

यदि अंजन के समान गहरे काले मेघ पश्चिम दिशा में दिखाई पड़े और ये चिकने तथा मंद गति वाले हों तो भारी जल वृष्टि होती है।

पीतपुष्पनिभो यस्तु यदा मेघ: समुत्थीत:।
शंतायम यदि दृश्यते स्निग्धो वर्षं तदुच्यते।।

पीले पुष्प के समान स्निग्ध मेघ पश्चिम दिशा में स्थित हों तो जल की तत्काल वृष्टि कराते हैं। ये वर्षा के कारक माने जाते हैं ।

रक्तवर्णों यदा मेघ: शान्तया दिशि दृश्यते।
स्निग्धो मंदगतिश्र्वापि तदा विद्याजलं शुभम्।।

यदि लाल वर्ण के तथा स्निग्ध और मंद गति वाले मेघ पश्चिम दिशा में दिखाई दें तो अच्छी जल वृष्टि होती हैं ।
तिथौ मुहूर्तकारणे नक्षत्रे शकुन शुभे।
संभवन्ति यदा मेघा: पापदास्ते भयंकरा:।।

अशुभ तिथि, मुहूर्त कारण, नक्षत्र और शकुन में यदि मेघ आकाश में आच्छादित हों तो भयंकर पाप का फल (अनिष्ट) देने वाले होते हैं ।
वराह संहिता में वराहमिहिर ने 34 अध्याय के 4-5 श्लोक में परिवेश के सम्बन्ध में बताते हुए कहा है कि चांदी और तेल के समान वर्ण वाले परिवेष सुभिक्ष करने वाले होते हैं ।

वर्षा भय तथा क्षेम राज्ञो जय पराजयम।
मरुत: कुरुते लोके जन्तूनां पुण्य पापजाम।।

वायु सांसारिक प्राणियों के पुण्य एवं पाप से उत्पन्न होने वाले वर्षण, भय, क्षेम और राजा की जय-पराजय को सूचित करती हैं |
वायु के चलने से भी प्राचीन ज्योतिषियों ने अनेक फलादेश कियें हैं जिसमे कृषि तथा वर्षा, सुभिक्ष आदि का वर्णन किया गया हैं। भद्रबाहू के निमित ग्रन्थ में उल्लेख हैं कि-

आषाढ़ी पूर्णिमायां तु पूर्व वातो यदा भवेत्।
प्रवाति दिवसं सर्व सुवृष्टि: सुषमा तदा।।

आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन पूर्व दिशा की वायु यदि सारे दिन चले तो वर्षा काल में अच्छी वर्षा होती हैं और वह वर्ष अच्छा व्यतीत होता हैं ।

आषाढ़ी पूर्णिमायां तु वायु: स्यादुत्तरो यदि।
वापयेत सर्वबीजनी शस्यं ज्येष्ठ समृध्यति।।

आषाढ़ी पूर्णिमा को उत्तर दिशा की वायु चले तो सभी प्रकार के बीजों को बो देना चाहिये क्योंकि उक्त प्रकार की वायु में बोये गए बीज बहुतायत से उत्पन्न होते हैं। किसी भी दिशा का वायु यदि साड़े सात दिन तक लगातार चले तो उसे महान भय का सूचक जानना चाहिये। इस प्रकार की वायु अतिवृष्टि की सूचक होती हैं ।

सर्व लक्षण संपन्न मेघा मुख्या जलावाहा:।
मुहुर्तादुत्थितो वायुर्हान्या सर्वोआपी नैऋत:।।

सभी शुभ लक्षण से संपन्न जल को धारण करने वाले जो मुख्य मेघ हैं, उन्हें भी नैऋत्य दिशा का उठा हुआ पूर्व पवन एक मुहूर्त में नष्ट कर देता हैं ।

नारद पुराण के त्रिस्कन्ध ज्योतिष सहिंता प्रकरण में ग्रह के माध्यम से वर्षा के सम्बन्ध में कहा गया हैं-
मंगल-
जिस दिन मंगल का उदय हो और उदय के नक्षत्र से दसवे, ग्यारहवे तथा बारहवे नक्षत्र में मंगल वक्र हो तो (अश्र्वमुख) नामक वक्र होता हैं। उसमें अन्न व वर्षा का नाश होता है।
बुध-
1. यदि आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा इन नक्षत्रों में बुध दृश्य हो तो वर्षा नहींं होती हैं और अकाल होता हैं ।
2. हस्त से छ: नक्षत्रों में बुध के रहने से लोक-कल्याण, सुभिक्ष व आरोग्य प्राप्ति होती हैं ।
बृहस्पति- बृहस्पति जब नक्षत्रों के उत्तर चले तो सुभिक्ष व कल्याणकारी तथा बायें हो तो विपरीत परिणाम देता हैं ।
शुक्र-
1. शुक्र जब बुध के साथ रहता हैं तब सुवृष्टि (अच्छी वर्षा) का कारक होता हैं ।
2. कृष्ण पक्ष की अष्टमी, चतुर्दशी और अमावस्या में यदि शुक्र का उदय हो या अस्त हो तो पृथ्वी जल से परिपूर्ण रहती हैं।
शनि-
श्रवण, स्वाति, हस्त, आद्र्रा, भरणी और पूर्वाषाढ़ इन नक्षत्रों में विचारने वाला शनि मनुष्य के लिए सुभिक्ष व खेती की उपज बढ़ाने वाला होता है।

इस नक्षत्रीय प्रभावों और लोकोक्तियों को कम शब्दों में समेटना असम्भव है लेकिन प्रयास है आवश्यक जानकारियां सबलोग जाने!! ये एक छोटी सी कोशिस है अपने पारम्परिक और नक्षत्रीय ज्योतिष पर आधारित कृषि के ऊपर लेख की !! मैं कोई लेखक नही हूँ अतः त्रुटियां मिलेंगी !! सुधार के लिए आपलोगों का सहयोग आपेक्षित है!!

अगले भाग में मिलेंगे पारम्परिक लोकोक्तियों को लेकर!!

क्रमशः....

अनूप राय

टाइगर्स_ओवर_सरगोधा

 #टाइगर्स_ओवर_सरगोधा 1965 में भारतीय वायुसेना के पास अर्ली वॉर्निंग राडार सिस्टम नहीं थे। ये उस समय की स्टे्ट ऑफ आर्ट टेक्नोलॉजी थी लेकिन हम...