Friday 7 October 2022

टाइगर्स_ओवर_सरगोधा

 #टाइगर्स_ओवर_सरगोधा


1965 में भारतीय वायुसेना के पास अर्ली वॉर्निंग राडार सिस्टम नहीं थे। ये उस समय की स्टे्ट ऑफ आर्ट टेक्नोलॉजी थी लेकिन हमारे पड़ोसी पाकिस्तान पर उस वक्त अंकल सैम मेहरबान थे और उनके दिए हुए राडार, फाइटर्स, टैंक और अन्य युद्धक साजो सामान के दम पर अयूब खान को कश्मीर लेने की सूझी और 65 का युद्ध प्रारंभ हो गया। पाकिस्तान ने जब अपनी पूरी शक्ति कश्मीर पर केंद्रित कर दी और भारतीय वायुसेना द्वारा भारतीय सेना को क्लोज एयर सपोर्ट, सप्लाई, कैजुअल्टी इवैक्युवेशन और काउन्टर ऑफेंसिव ऑपरेशन्स से रोकने के लिए वायुसेना के प्रमुख स्टेशनों पर भारी बमबारी की जिसमें भारत के बहुत से विमान रनवे और अपने हैंगर्स में नष्ट हुए तब पाकिस्तानी एयरफोर्स को ऐसा उत्तर देना आवश्यक हो गया जिससे पाकिस्तानी एयरफोर्स के हौसले पस्त हो जाएं। उस समय वायुसेना प्रमुख थे एयर चीफ़ मार्शल अर्जन सिंह, उन्होंने अपने टॉप कमांडर्स के साथ मीटिंग की और लक्ष्य चुना गया सरगोधा। पाकिस्तान का सबसे महत्वपूर्ण और सबसे सुरक्षित एयरफोर्स स्टेशन, पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से 241 किलोमीटर दक्षिण में स्थित इस एयरफोर्स स्टेशन पर डायरेक्ट बॉम्बिंग ऑपरेशन की लपटों की गर्मी इस्लामाबाद को ख़ुश्क कर सकती थी इसीलिए यह आवश्यक था कि मिशन पूरी तरह गोपनीय रहे।


6 सितंबर 1965 को पाकिस्तान ने हलवारा, पठानकोट एयरफोर्स स्टेशनों पर पुनः बमबारी की और इसमें हैंगरो में खड़े कई विमान नष्ट हुए, संतोष की बात केवल यह थी कि दोनों पाकिस्तानी P86 सैबर्स हलवारा में दो भारतीय हंटर जेट्स का शिकार हो गए थे। 6 सितंबर की रात ही नम्बर 01 स्क्वॉड्रन 'टाईगर्स' के कमांडिंग ऑफिसर विंग कमांडर ओपी तनेजा ने अपने फाइटर पायलट्स को ब्रीफिंग रूम में बुलाया। ब्रीफिंग बोर्ड पर 12 फाइटर्स की फॉर्मेशन और सभी पायलट्स की पोजिशन मार्क की हुई थी, ऑर्डर्स थे सुबह 5 बजकर 28 मिनट पर उड़ान भरनी है और पाकिस्तानी राडार्स को धोखा देने के लिए जमीन से 300 फीट की ऊँचाई पर उड़ान भरते हुए ठीक 5 बजकर 58 मिनट पर सरगोधा पर हमला करना है। अंधेरे में नेविगेशन के लिए केवल कंपास और स्टॉप वाच का प्रयोग करने के आदेश थे क्योंकि मैप रीडिंग सम्भव नहीं थी। फॉर्मेशन को खुद विंग कमांडर तनेजा ने कमांड करने का निर्णय लिया था। अब पाकिस्तान की सीमा के 100 मील अंदर घुसकर सबसे मजबूत किलेबंदी वाले एयरबेस पर हमला कर लौट आना कोई आसान काम तो था नहीं इसलिए युद्ध स्तर पर तैयारियां शुरू हुईं। नम्बर 1 स्क्वॉड्रन के फाइटर प्लेन  Mystere मार्क 4 a को हथियारों से लैस किया गया। इतने लंबे मिशन में पाकिस्तानी जेट्स द्वारा इंटरसेप्ट करने पर और अटैक के दौरान पाकिस्तानी जेट्स का सामना होने पर डॉग फ़ाइट्स के लिए सबसे जरूरी चीज थी फ़्यूल, सारे मिस्टर्स में 2-2 ऑग्जिलरी फ़्यूलड्रॉप टैंक्स जोड़े गए जो विमानों की रेंज बढ़ा देते हैं। सभी पायलट्स अपने अपने जेट्स के पास खड़े होकर फ़्यूल भरवा रहे थे और तब तक फ़्यूल भरवाया जबतक फ़्यूल टैंक से ओवरफ्लो नहीं होने लगा। आखिर एक-एक बूंद कीमती साबित होनी थी मिशन में। 


ऑपरेशन रूम में निश्चित हुआ कि विंग कमांडर तनेजा अटैकिंग ग्रुप के पहले 4 फाइटर्स को लीड करेंगे जो 8 × T- 10 रॉकेट्स और अपनी 30 mm ऑटो कैनन गन से हमला करेंगे। स्क्वॉड्रन लीडर डैनी दूसरे 4 अटैकिंग मिस्टर्स को लीड करेंगे जो 2x18 SNEB रॉकेट्स और 30 mm मेन गन से लैस थे। बॉम्बिंग फॉर्मेशन कमांडर स्क्वॉड्रन लीडर सुदर्शन हांडा 1000-1000 पाउंड्स के दो बम और ऑटो कैनन से सज्जित अंतिम 4 मिस्टर्स को लीड कर रहे थे। चूँकि टारगेट की दूरी ज्यादा थी और पूरी तरह से हथियार बन्द मिस्टर्स को केवल 300 फीट की ऊँचाई पर उड़ान भरनी थी इसलिए अधिकतम स्पीड 120 मील प्रति घण्टा निश्चित की गई। यूँ तो इतनी कम ऊंचाई पर विमान उड़ाते समय उनकी स्पीड ज्यादा रखी जाती है जिससे आवश्यकतानुसार विमान को तेजी से ऊपर नीचे दाएं बाएं मनचाहे तरीके से मैन्यूवर किया जा सके लेकिन कम ऊंचाई पर अधिक स्पीड से उड़ने का अर्थ था कि अधिक फ़्यूल कंजप्शन जो हमले के बाद पायलट्स को वापसी में खतरा पैदा कर सकता था। सभी 12 पायलट्स को सरगोधा पर अलग अलग टारगेट चिन्हित कर दिए गए थे। सारी तैयारियां करने के बाद टेकऑफ़ टाइम का इंतजार किया जाने लगा। 


समय पर टेकऑफ़ हुआ और हमला भी लेकिन केवल अटैकिंग मिशन सफल हुआ न की बॉम्बिंग; रात के अंधेरे में टेकऑफ़ करने और रेडियो साइलेन्स के कारण स्क्वॉड्रन लीडर फिलिप राजकुमार फॉर्मेशन से अलग हो गए और बहुत प्रयास करने के बाद भी फॉर्मेशन तक नहीं पहुंच पाए तो वापस लौट आये, सरगोधा के ऊपर स्क्वॉड्रन लीडर हांडा के बॉम्बिंग ग्रुप ने एक भी बम ड्रॉप नहीं किया क्योंकि घुप्प अंधेरे के बीच एक भी उन्हें टारगेट ही कन्फर्म नहीं हुए थे, फॉर्मेशन जब वापस हलवारा लौटी तो स्क्वॉड्रन लीडर अजमदा बी देवैय्या उसके साथ नहीं लौटे और उनकी खबर किसी को नहीं थी, किसी ने उनके विमान को हिट होते, क्रैश होते या देवैय्या को इजेक्ट होते नहीं देखा था। विंग कमांडर तनेजा ने ब्रीफिंग में साफ कहा कि हांडा की बॉम्बिंग रेड की असफलता अनएक्सेप्टेबल है और हांडा के ग्रुप को दूसरी रेड दिन की रोशनी में सुबह 9:45 पर करनी है। पूरी स्क्वॉड्रन सन्न रह गयी ये सुनकर। दिन की रोशनी में हमले का अर्थ था कि शायद ही कोई वापस जिंदा लौटे। एयरबेस की एंटी एयरक्राफ्ट गन्स को पूरा मौका मिलेगा सटीक और प्रभावशाली फायरिंग का, साथ ही अगर पाकिस्तानी फाइटर्स को उड़ान भरने का मौका मिल गया तो अटैकिंग मिशन डिफेंसिव हो जाएगा और इन सबके बावजूद लौटते वक्त पाकिस्तानी इंटरसेप्टर फाइटर्स का डर साथ ही इनसे बचने या डॉग फ़ाइट्स में उलझने पर लौटते समय फ़्यूल की कमी भी हो गयी तो क्रैश या दुश्मन की सीमा में इजेक्ट करने की मजबूरी। लेकिन सरगोधा पर हमला इतना महत्वपूर्ण था कि चारों पायलट्स ने ये खतरा उठाने का निश्चय किया, विमानों को फिर से रॉकेट्स और बमों से सज्ज किया गया, एक्स्ट्रा फ़्यूल, ऑग्जिलरी पैराशूट अर्थात सभी तैयारियां की गईं और फिर से उड़ान भरी गयी। 


सीमा पार करने के कुछ देर बाद ही सरगोधा जाने वाली रेलवे लाईन दिखी और फॉर्मेशन उसकी ओर मुड़ गयी। यहाँ सभी ने अपनी स्पीड बढ़ाई और टैक्टिकल स्पीड पर पहुंचने के बाद सारे हथियारों के सेफ़्टी लॉक ऑफ कर दिए गए। 2 मिनट के अंदर ही सरगोधा एयरबेस दिखाई देने लगा, चारों पायलटों ने आसमान में पाकिस्तानी जेट्स की तलाश में निगाहें फेरीं और तत्काल कोई खतरा न पाकर अपने दिए हुए टारगेट्स की पहचान और उनपर हमले की तैयारियों में जुट गए। स्क्वॉड्रन लीडर हॉन्डा ने अपने बम फ़्यूल स्टोरेज डंप पर गिराए और वापस मुड़कर ऑपरेशनल रेडिनेस प्लेटफॉर्म पर खड़े 3 सैबर और एक 104 स्टार फाईटर को अपनी ऑटो कैनन से नष्ट कर दिया, इधर फ़्लाइट लेफ्टिनेंट फिलिप राजकुमार ने भी अपने बम मिसाईल स्टोरेज डंप पर गिराए, नीचे से पाकिस्तानी एंटी एयरक्राफ्ट गनों से बेहिसाब फायरिंग शुरू हो चुकी थी। लेकिन एक भी राउंड किसी भी एयरक्राफ्ट में हिट नहीं हुआ था। फ़्लाइट लेफ्टिनेंट डीएस बरार और फ्लाइट लेफ्टिनेंट डीएस कहाई ने भी अपने बम एयरक्राफ्ट हैंगर और नीचे खड़े पाकिस्तानी सैबर जेट्स के ऊपर छोड़े। हमले के बाद लौटते हुए फिलिप राजकुमार ने अपना फ़्यूलगेज चेक किया क्योंकि टेकऑफ़ के पहले प्लान के अनुसार उन्हें केवल 2 मिनट तक फुल थ्रोटल में उड़ान भरनी थी लेकिन फ़्लाइट लेफ्टिनेंट डीएस बरार ने एंटी एयरक्राफ्ट फ़ायर को पाकिस्तानी फाइटर समझा और उनके रेडियो सिग्नल पर फॉर्मेशन कमांडर हांडा ने फुल पॉवर का आदेश दिया और सभी लगभग 8 मिनट तक फुल पॉवर में उड़ान भरते रहे और अब फ़्यूल गेज तेजी से नीचे जा रहा था, फिलिप राजकुमार ने हॉन्डा को ये सूचना दी और फ़्यूल बचाने के लिए जमीन से 50 फुट की ऊंचाई पर उड़ना शुरू किया गया, फिलिप राजकुमार हांडा से पीछे 30 फुट ऊपर उड़ रहे थे जिससे वो आसमान में किसी पाकिस्तानी एयरक्राफ्ट की उपस्थिति की सूचना दे सकें। लाहौर से आगे बढ़ने पर राजकुमार ने एक पाकिस्तानी जेट देखा और इसकी सूचना देने पर हांडा ने फिर से फुल पॉवर का आदेश दिया और जैसे ही फॉर्मेशन ने भारतीय सीमा में प्रवेश किया राजकुमार के फ़्यूल गेज की रेड लाईट्स जल गईं जिसका मतलब था कि उस स्पीड पर केवल 10 मिनट की उड़ान का फ़्यूल शेष है उनके पास। उन्होंने इसकी सूचना हांडा को दी, हांडा ने कहा तुम इंडियन टेरिटरी में हो, चाहो तो इजेक्ट कर लो लेकिन राजकुमार ने इजेक्ट करने से मना कर दिया, जमीन से 600 फुट की ऊँचाई पर उड़ते हुए राजकुमार ने अदमपुर एयरबेस का रनवे देखा और उसकी ओर मुड़कर अपनी पहचान बताते हुए लैंडिग की परमिशन माँगी और परमिशन मिलते ही सुरक्षित लैंड किया। लैंडिंग के बाद राजकुमार ने देखा उनके पास केवल 3 मिनट की उड़ान का फ़्यूल और शेष था। 


सरगोधा पर हमला पूरी तरह से सफल रहा था, सभी ने अपने टारगेट्स हिट किये थे और सबसे बड़ी बात थी कि दिन की रोशनी में पाकिस्तान के सबसे मजबूत और सबसे सुरक्षित एयरबेस पर की गई इस सफल बॉम्बिंग रेड ने पाकिस्तानियों के हौसले को करारी चोट दी थी। स्क्वॉड्रन को केवल इस बात का दुःख था कि उनका एक साथी लापता था और उसकी कोई ख़बर नहीं थी। देवैय्या को मिसिंग इन एक्शन घोषित किया गया और जब उनका कोई पता नहीं मिला तो उन्हें मृत मान लिया गया। करीब 22 साल बाद 1980 में पाकिस्तान एयरफोर्स ने एक अंग्रेज पत्रकार के सामने स्वीकार किया की 7 सितंबर की भोर की रेड में उन्होंने भारतीय डेसॉल्ट मिस्टर फाईटर के मुकाबले अपना एक 104 स्टार फाईटर खोया है। दोनों पायलट्स ने एक दूसरे को हिट किया था, पाकिस्तानी पायलट ने इजेक्ट किया और सुरक्षित बच गया लेकिन भारतीय पायलट अपने फाईटर के साथ नीचे गिरा। इस रहस्योद्घाटन के बाद वायुसेना ने कहा की वो भारतीय पायलट स्क्वॉड्रन लीडर देवैय्या थे क्योंकि उस रेड में केवल वही वापस नहीं लौटे थे और उनके बारे में किसी को खबर नहीं थी साथ ही अन्य किसी साथी पायलट ने 104 स्टार फाईटर को मार गिराने का दावा नहीं किया था। एयरफोर्स ने रिकॉर्ड निकाले, प्रमाण दिए और और रक्षा मंत्रालय पर खूब दबाव डाला तब जाकर 1988 में देवैय्या को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया, 1965 के युद्ध के 22 साल बाद। देवैय्या भारतीय वायुसेना के इकलौते ऐसे योद्धा हैं जिन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया है। 


1965 की लड़ाई में पाकिस्तान अपनी एयर सुपिरियोरिटी के तमाम दावे पेश करता रहा कि देखो हमने इतने भारतीय विमान नष्ट किये लेकिन अगर तथ्यों के प्रकाश में देखें तो पाकिस्तान ने अधिक भारतीय विमान इसलिए नष्ट किये क्योंकि उस समय भारतीय वायुसेना अर्ली वॉर्निंग राडारों से सज्ज नहीं थी, पाकिस्तानी जेट्स आते और जमीन पर खड़े जहाजों को निशाना बना लेते जबकि पाकिस्तानी पायलट्स को हवा में मुकाबले के दौरान नाकों चने चबाने पड़ जाते थे और हर बार अच्छे फाईटर, अच्छे राडार, अच्छी मिसाइलों के बावजूद भारतीय पायलटों से पिटकर ही जाते। और 1965 के ठीक 5 साल बाद 1971 के युद्ध में जब भारतीय वायुसेना पूरी तरह से के तैयार थी तब पाकिस्तानियों को झूठे दावे करने के भी मौके नहीं मिले। 1971 में ढाका में सरेंडर करने के बाद जब एक एयरफोर्स ऑफिसर ने कुटिल मुस्कान छोड़ते हुए नियाज़ी से पूछा कि जनरल साब आपने इतनी जल्दी सरेंडर क्यों कर दिया तो लगभग रोते हुए नियाजी ने उस ऑफिसर के सीने पर लगे फाईटर पायलट विंग्स पर उँगली रखते हुए कहा। "It's because of you guys."


नभः स्पृश दीप्तम्।।

Touch the sky with glory.

90 वें वायुसेना दिवस के अवसर पर वायुसेना के सभी अमर बलिदानियों व योद्धाओं को शत शत नमन!! 

Happy Hunting guys!

Thursday 16 August 2018

कविता

नभ मे काले मेघ छा गए,
लगा पसरने घोर तिमिर।
दसों दिशाएं क्रंदन करती,
 सड़के बन बैठी नदी  तीर

तुम शब्दो के थे शूरवीर,
इच्छाशक्ति जैसे ब्रह्मशीर,
हे जन नायक हे रामभक्त,
तुझको खोकर हम हुए असक्त

हे राजनीति के अजातशत्रु,
तुम मर्यादा मुरुषोत्तम थे,
अपयश भी तुमको छू न  सका,
अरि भी जैसे नतमस्तक थे,

चीत्कार कर रहा है पूरा देश,
तुम बिन अब कुछ रहा न शेष,
हे इस युगद्रष्टा हे परमहंस,
फिर आना होगा अपने देश,

फिर आना होगा अपने देश।

सद्यजात
© अनूप राय

Friday 10 August 2018

धर्म

#महाभारत

#भाग_एक

युद्ध की पूर्व संध्या का समय था, शिविर में कृष्ण के साथ युधिष्टिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, सेनापति धृष्टधुम्न , राजा विराट और राजा द्रुपद बैठे हुए थे ! युधिष्टिर का मन कल के युद्ध को लेकर बहुत सी उद्विग्न था!

कौरव सेना ग्यारह अक्षोहिणी थी, साथ मे इच्छामृत्यु का वरदान पाए महाबली भीष्म, आचार्य द्रोण, अश्वस्थामा, शल्य,कृपाचार्य, जो स्वयं में दिव्यास्त्रों के ज्ञाता थे ,उनसे युद्ध होने वाला था।
चिंतित देख कर अर्जुन पूछते है! कि भ्राता श्री क्या बात है आप चिंतित क्यों है?

आपको महाबली भीम औ मेरे रहते तनिक भी व्याकुलता शोभा नही देती, और जिंसके ऊपर स्वयं केशव का वरदहस्त हो उसका काल भी कुछ खंडित नही कर सकता।

तब युधिष्टिर ने कहा, धनंजय ! तुम तो जानते ही हो कि हमारी सेना शत्रुओ की तुलना में कम है और बड़ी सेना से छोटी सेना का युद्ध करना हमेशा हानिकारक होता है। इस लिए कल के लिए कोई ऐसा व्यूह बनाओ जिससे हमारी सेना की सुरक्षा हो सके।

तब अर्जुन अपने जैविक पिता इंद्र द्वारा सिखाया गया व्यूह "वज्र" नामक अभेद्य दुर्ग की संरचना का प्रस्ताव सेनापति धृष्टद्युम्न के सामने रखते है । जिसे स्वीकार कर लिया जाता है।

प्रातःकाल  सेना को वज्र व्यूह में सुव्यवस्तिथ किया जाता है! जब सेना चलती है तो लगता है कि जैसे उसके चारो तरफ काल का मुख खुला है और हर मुख पर अभेद्य योद्धाओं की फौज खड़ी है जिसे पराजित नही किया जा सकता! सेना भय की आशंका से शून्य हो चुकी है।

पांडव सेना बाढ़ में उफनाई हुई गंगा नदी की भांति युद्ध क्षेत्र में कौरव सेना की तरफ आगे बढ़ रही है। भीमसेन, नकुल, सहदेव ,धृष्टद्युम्न और धृष्टकेतु सेना के अग्रभाग में चल रहे हैं।
ठीक उनके पीछे राजा विराट अपने पुत्र और भाई के साथ एक अक्षोहिणी सेना के साथ उनका साथ दे रहे हैं।
नकुल और सहदेव भीमसेन की सहायता के लिए उनके अगल बगल चल रहे हैं।
अभिमन्यु के साथ द्रौपदी के पांचों पुत्र मध्यभाग में व्यूह की सुरक्षा के लिय कटिबद्ध हैं।

अंत मे अर्जुन के साथ शिखंडी है जो अपने मौके की तलाश में है कि कब भीष्म का वध किया जाए, साथ मे कैकेय धृष्टकेतु और चेकितान अर्जुन की रक्षा के लिए नियुक्त है । सबसे अंत मे व्यूह रक्षा के लिए सात्यकि, युधामन्यु, और उत्तमौजा उपस्थित है।
जब सेनाएं चलने लगी तो आँधियों के गुबार हवा में उठ गए और आकाश में तड़िकाये चमकने लगी! अचानक उल्कापात होकर धरती में विलीन हो गया।
धूल कणों के अंबार से पूरे युद्ध क्षेत्र में अंधकार छा गया।

युद्ध के मैदान में दोनों सेनाएं कुछ देर के बाद आमने सामने खड़ी थी! कौरव सेना विशाल दैत्यराज की सेना के समान जान पड़ती थी। और पांडवों की सेना देवराज इंद्र के समान जान पड़ती थी

कौरव सेना में एक लाख हाथी थे, प्रत्येक हाथी पर सौ सौ रथ खड़े थे, एक एक रथ पर सौ सौ घोड़े खड़े थे, और प्रत्येक घोड़े के साथ दस दस धनुर्धर खड़े थे। महाबली भीष्म के सेनापतित्व में यह सेना काल के समान दिख रही थी परन्तु सामने की सेना में स्वयं भगवान कृष्ण उपस्थित थे तो काल भी क्या कर सकता है ये बात स्वयम भीष्म जानते थे।

युद्ध अब कुछ ही क्षणों में आरंभ होने वाला था कि अचानक महाराज युधिष्टिर अपने रथ से उतर कर कौरव सेना की तरफ निशस्त्र होकर चल दिये! ऐसा देख कर सारे भाई अपने अग्रज की सुरक्षा हेतु उनके पीछे पीछे चल पड़े!

कौरव सेना भी आश्चर्य में पड़ गयी, परन्तु भीष्म इसका आशय जान कर मुस्करा रहे रहे।
कौरव सेना भाती भातिं का हास्य करने लगी यधिष्ठिर को देखकर,
दुर्योधन उन्हें भीरू कहते हुए कहता है कि  लगता है कि हमारे सेना के बल और पराक्रम को देख कर पहले ही डर गए भ्राता ।

कुछ समय पश्चात युधिष्ठिर पितामह भीष्म के सामने खड़े रहे और प्रणाम करने पश्चात आशीर्वाद मांगा!
भीष्म ने कहा- विजयी भव पुत्र, अगर आज तुम युद्ध से पहले हमसे आज्ञा न मांगते तो मैं तुम्हे श्राप दे देता!

इन सब बातों को सुनकर बगल में रथ पर आरूढ़ दुर्योधन के अंदर अग्नि की ज्वाला धड़कने लगी।
इसी प्रकार क्रम से गुरु द्रोण , कृपाचार्य, और शल्य को भी प्रणाम करते है और विजय श्री का आशिर्वाद लेते हुए लौट आते हैं।

रथ पर आरूढ़ होकर युधिष्टिर दोनो पक्षों के योद्धाओं को सम्बोधित करते हुए एक बार फिर से अपना पक्ष चुनने का अंतिम अवसर देते है तब दुर्योधन का सौतेला भाई युयुत्सु अपना रथ लेकर पांडव सेना की तरफ जा खड़ा होता है।

युयुत्सु के आने पर युधिष्टिर युयुत्सु का स्वागत करते है और अपनी ओर से युद्ध करने का आमंत्रण देते है।
तब दोनो सेनाओं के सेनापति युद्धकी घोषणा करते हुए अपने शंख को बजाते है  और युद्ध शुरू होता है।
कौरव सेना में भीम आगे आगे गर्जना करते हुए चल रहे हैं, और कौरव की ओर से भीष्म आगे है। दोनो सेना एक दूसरे से लताओं की तरह लिपट सी गयी है,चारो तरफ चीत्कार मची हुई है, भीम की गर्जना सुन कर शत्रु सेना के जानवरों के मल मूत्र निकलने लगते है।

तभी दुर्योधन, दुर्मुख दुःसह, शल, दुशाशन, दुर्मुर्षण, विविशन्ति, चित्रसेन, विकर्ण, पुरुमित्र, जय, भोज, और सोमदत्त का पुत्र विशेश्रवा आगे आकर अग्नि और भयंकर विषधरो के समान बाणों की बर्षा करके युद्ध क्षेत्र को आच्छादित कर देते है।
दूसरी तरफ अभिमन्यु , नकुल, सहदेव, और धृष्टद्युम्न अपने भयंकर बाणों से शत्रुओ की सेना का दमन करते हुए आगे बढ़ रहे है!
अभिमन्यु को देख कर लग रहा है कि उसके बाणों पर साक्षात यमराज अपना कालदण्ड लेकर बैठे हैं! पूरे युद्ध क्षेत्र में उसके जैसा धनुधारी दिखाई नही दे रहा है, एक साथ विद्युत गति से सैकङो बाणों को शत्रुओ पर  धनुष से प्रक्षेपित कर रहे और उन्हें काल के घाट उतार रहे।

क्रमशः

अनूप राय
10/8/ 2018

हेल्थ

#जेनरिक_बनाम_ब्रांडेड
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दवाएं हमारे अनमोल जीवन को बचाने में अहम भूमिका निभाती हैं। लेकिन, जब इन दवाओं में घालमेल होने लगे, कालाबाजारी का साया मंडराने लगे तो फिर जिंदगी पर ग्रहण लग जाता है! अफसोस है कि तमाम कवायदों के बावजूद भी गरीब को सस्ती से सस्ती दवा उपलब्ध कराने की सरकारी पहल भी धरातल पर खरी नहीं उतर पाई थी ! दवा में 'ब्रांडिंग' के नाम पर देश की गरीब जनता को लूटने का खेल जारी है...

बीमारी से ज्यादा आम आदमी 'महंगी दवाओं' के बोझ से दब रहा है। प्राइवेट दवा कपंनियों की तादाद बढ़ती जा रही है। ब्रांडिंग के खेल में जेनरिक दवाओं के महत्व को दबाया जा रहा है। जीवनदाता सफेदपोश डॉक्टरों का 'कमिशन' कई गुना बढ़ गया है। प्राइवेट दवा कंपनियों के मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव की घुसपैठ सरकारी अस्पतालों के अंदर खाने तक हो गई है और लूट का कारोबार चरम पर है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि मरीज को सस्ती दवा कैसे मिले?

जिस दिन इस देश में डॉक्टर दवाओं की बढ़ती कीमतों पर सवाल उठाना शुरू कर देंगे और दवा कंपनियों से अपना 'कट' लेना छोड़ देंगे, दवा खुद-ब-खुद सस्ती हो जाएगी। देश को 'ब्रांड' की नहीं दवा की जरूरत है। लेकिन निजी दवा कंपनियां, दवा में ब्रांडिंग के नाम पर देश को लूट रही हैं।

एक-दो दवा कंपनियों को छोड़ दिया जाए तो किसी के पास अपना रिसर्च प्रोडक्ट तक नहीं है। देश में 95 प्रतिशत बीमारियों का इलाज जेनरिक (पेटेंट फ्री) दवाओं से हो रहा है। फिर भी दवाएं महंगी हैं!

ब्रांड के नाम पर लूट का खेल! दरअसल, यह पूरा खेल ही घालमेल का है। प्राइवेट दवा कंपनियां जेनरिक और एथिकल (ब्रैंडेड) दोनों तरह की दवाएं बनाती हैं। दोनों की कंपोजिशन समान होती है और इन्हें बनाने में कोई फर्क नहीं होता है। यहां तक कि दोनों की गुणवत्ता और परफॉर्मेंस भी बराबर होती है। फर्क सिर्फ इतना है कि 'जेनरिक' दवाओं की मार्केटिंग और ब्रांडिंग पर दवा कंपनियां पैसा खर्च नहीं करती हैं और इन्हें अपनी लागत मूल्य के बाद कुछ प्रोफिट के साथ बेच देती हैं, जबकि, ब्रांडेड दवाओं के लिए जमकर मार्केटिंग की जाती है। दवा कंपनियों के एमआर डॉक्टरों को इन दवाओं को ज्यादा से ज्यादा मरीजों को प्रेस्क्राइब करने के लिए 10 से 40 फीसदी तक कमीशन और तरह-तरह के गिफ्टों से नवाजते हैं।

इसके चलते ही इन दवाओं की कीमत काफी बढ़ जाती है। आरटीआई कार्यकर्ता विनय के मुताबिक, बाजार में 80 फीसदी लोग जो खुद से दवा खरीद कर खाते हैं वो 'जेनरिक' दवा ही तो है। साल 2008 में कांग्रेसी सरकार ने जेनरिक को बढ़ावा देने के लिए जन औषधालय तो खोल दिेए लेकिन उसके मंत्रियो के भ्रष्टाचार और अदूरदर्शिता ने इस प्रोजेक्ट का सत्यानाश कर दिया  और 6 साल बाद 2014 तक एक पत्ता तक नहीं मिला गरीबों को।

आज डॉक्टर एक पर्टिकुलर ब्रांड लिखता है, केमिस्ट पर्टिकुलर ब्रांड बेचता है, मरीज पर्टिकुलर ब्रांड खाता है और एक पर्टिकुलर दवा कंपनी को इसका मुनाफा मिलता है।

गरीबी अपने आप में बीमारियों का समुच्चय है। अगर आकंड़ों को देखें तो करीब 3 से 4 फीसदी लोग दवा महंगी होने की वजह से गरीबी रेखा से नहीं उबर पा रहे हैं। मतलब साफ है प्रतिवर्ष चार से पांच करोड़ लोग सिर्फ इसलिए गरीबी रेखा से नहीं निकल पा रहे हैं क्योंकि देश में स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है और दवा की कीमतें आसमान छू रही हैं?

क्या टाइम फ्रेम में बांधकर बीमारियों को देश में पटका जाता है?

जानकार अंतरराष्ट्रीय साजिश के तहत भी बीमारियों को लाए जाने की आशंका व्यक्त करते हैं। कई बार एक टाइम फ्रेम में बांधकर बीमारियों को देश में पटका जाता है। यह भी दवाओं को बेचने और बिकवाने का ही खेल है। बीमारी से ज्यादा प्रोपोगेंडा होता है। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि बीमारी नहीं है। बीमारी से ज्यादा माहौल है, जिसे हम स्वाइन फ्लू के वक्त देख चुके हैं। स्वाइन फ्लू के वक्त इस तरह का माहौल बना की 'मिनिमम किट निर्धारित हो गई'। यह किट खूब बिकी भी, लेकिन यहां इस बात पर गौर करना जरूरी है कि किन इलाकों में यह किट सबसे ज्यादा बिकी? यह किट उन्हीं इलाकों में बिकी जहां लोगों की 'बाइंग कैपिसिटी' ज्यादा थी। इस तरह भी दवाओं को बेचने और बिकवाने का 'हिडन खेल' चलता है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में अभी तक कुल मिलाकर 12-13 दवाएं ही ईजाद हुई हैं। देश में 35 हजार करोड़ का हेल्थ बजट पास होता है। लेकिन, उसका आउटपुट क्या है? बीमारियां की संख्या लगातर बढ़ रही है। पोलियो और गिनी वर्म डिजीज को छोड़ दें तो हम किस बीमारी को देश से भगाने में सफल हुए हैं? भारत में पांच सरकारी दवा कंपनियां हैं और इनका सालाना टर्नओवर 600 करोड़ से भी कम है। जबकि इस देश का घरेलू दवा बाजार की बात करें तो वह 70 हजार करोड़ से भी ज्यादा का हो गया है। ऐसे में सरकार की भागीदारी 600 करोड़ से भी कम है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि दवा के क्षेत्र में सरकार का दखल कितना कम है?

सरकार, दवा को छोड़कर देश में सरकारी अस्पताल बना रही है, डॉक्टरों को बहाल कर रही है लेकिन सरकारी दवा की दुकानों को खोलने की दिशा में किसी भी तरह का प्रयास नहीं देखा जा रहा है। ऐसे में यह सवाल उचित ही है कि जब इस देश के गली-गली में सरकारी शराब की दुकान हो सकती है तो सरकारी दवा की क्यों नहीं?

कई बार तो ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं की कीमतों में नब्बे प्रतिशत तक का फर्क होता है। जैसे यदि ब्रांडेड दवाई की 14 गोलियों का एक पत्ता 786 रुपये का है, तो एक गोली की कीमत करीब 55 रुपये हुई। इसी सॉल्ट की जेनेरिक दवा की 10 गोलियों का पत्ता सिर्फ 59 रुपये में ही उपलब्ध है, यानी इसकी एक गोली करीब 6 रुपये में ही पड़ेगी। खास बात यह है कि किडनी, यूरिन, बर्न, दिल संबंधी रोग, न्यूरोलोजी, डायबिटीज जैसी बीमारियों में तो ब्रांडेड व जेनेरिक दवा की कीमत में बहुत ही ज्यादा अंतर देखने को मिलता है।

दवा कम्पनियां ब्रांडेड दवा से बड़ा मुनाफा कमाती हैं। दवाओं की कंपनियां अपने मेडिकल रिप्रजेंटेटिव्ज के जरिए डॉक्टरों को अपनी ब्रांडेड दवा लिखने के लिए खासे लाभ देती हैं। इसी आधार पर डॉक्टरों के नजदीकी मेडिकल स्टोर को दवा की आपूर्ति होती है। यही वजह है कि ब्रांडेड दवाओं का कारोबार दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है। यही वजह है कि डॉक्टर जेनेरिक दवा लिखते ही नहीं हैं। जानकारी होने पर कोई व्यक्ति अगर केमिस्ट की दुकान से जेनेरिक दवा मांग भी ले तो दवा विक्रेता इनकी उपलब्धता से इंकार कर देते हैं।

देश के ज्यादातर बड़े शहरों में एक्सक्लुसिव जेनेरिक मेडिकल स्टोर होते हैं, लेकिन इनका व्यापक प्रचार नहीं होने से लोगों को इनका फायदा नहीं मिलता आजकल हर प्रकार की जानकारी इंटरनेट के जरिये आसानी से हासिल की जा सकती है। ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं की कीमत में अंतर का पता लगाने के लिए एक मोबाइल एप 'समाधान और हैल्थकार्ट' भी बाजार में उपलब्ध है। दरकार है कि लोग जेनेरिक दवाओं के बारे में जानें और खासतौर पर गरीबों को इस ओर जागरूक करें ताकि वे दवा कंपनियों के मकडज़ाल में न फंसें।

लाभ!

जैनरिक दवाईयां ब्राण्डेड दवाईयों की तुलना में औसतन पाँच गुना सस्ती होती है। जैनरिक दवाईयों की उपलब्धता आम व्यक्ति को स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करने में बहुत बड़ा योगदान प्रदान कर सकती है तथा इससे ब्राण्डेड कम्पनियों के एकाधिकार को चुनौती मिलेगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जैनरिक दवाईयों के लिखे जाने पर केवल धनी देशों में चिकित्सा व्यय पर 70 प्रतिशत तक कमी आ जायेगी तथा गरीब देशों के चिकित्सा व्यय में यह कमी और भी ज्यादा होगी।

जेनेरिक दवाएं उत्पादक से सीधे रिटेलर तक पहुंचती हैं। इन दवाओं के प्रचार-प्रसार पर कंपनियों को कुछ खर्च नहीं करना पड़ता। एक ही कंपनी की पेटेंट और जेनेरिक दवाओं के मूल्य में काफी अंतर होता है। चूंकि जेनेरिक दवाओं के मूल्य निर्धारण पर सरकारी अंकुश होता है, अत: वे सस्ती होती हैं, जबकि पेटेंट दवाओं की कीमत कंपनियां खुद तय करती हैं, इसलिए वे महंगी होती हैं।

उदाहरण के लिए यदि चिकित्सक ने रक्त कैंसर के किसी रोगी के लिए ‘ग्लाईवैक‘ ब्राण्ड की दवा लिखी है तो महीने भर के कोर्स की कीमत 1,14,400 रूपये होगी, जबकि उसी दवा के दूसरे ब्राण्ड ‘वीनेट‘ की महीने भर के कोर्स की कीमत अपेक्षाकृत काफी कम 11,400 रूपये होगी। सिप्ला इस दवा के समकक्ष जैनरिक दवा ‘इमीटिब‘ 8,000 रूपये में और ग्लेनमार्क केवल 5,720 रूपये में मुहैया करवाती है।

इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए मोदी जी ने देश के हर कोने में "प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र" खोलने के  लिए बजट में एक प्रस्ताव दिया! आपको जान कर खुशी होगी कि हर देश के हर जिलों और तहसीलों में इस केंद्र का उदघाटन हो चुका है और वहाँ सस्ती दवाइयां मिल रही हैं। अगले कुछ वर्षों में ये दुकानें हर गांव गांव में होंगी, ऐसी सरकार की परिकल्पना है जो निश्चित ही मूर्त रूप लेगी।

एक उदाहरण बताता हूँ! मैं अपनी माता जी के लिए पेंटाप्राजोल डी एस आर कैप्सूल 100 रुपये 10 गोली किसी ब्रांडेड कम्पनी की खरीदता था! इसी कम्पोजिशन की दवा इस केंद्र पर मात्र 18 रूपये की 10 गोली है।

लगभग साढ़े पांच गुना महंगी है ब्रांडेड दवाई !

दोनो का काम एक जैसा !

नियम और भी बन रहे हैं। चिकित्सक फ्रैटर्निटी द्वारा इन नियमों का compliance एक चुनौती है। उम्मीद है, हम ऐसी चेतना जागृत कर पाएंगे जहाँ, लोग केवल इसलिए अपने बच्चों को डॉक्टर नहीं बनाना चाहेंगे कि वे दो चार सालों में पैसे के पेड़ बन कर नोटों की पत्तियां झाड़ने लगें। उम्मीद है, उम्मीद पर दुनिया कायम है। तमाम उम्मीदों में एक यह भी कि इस देश के डॉक्टर्स समझेंगे कि उनसे समाज की अपेक्षाएँ क्या हैं?

अनूप राय
23/07/18

(थोड़े सम्पादन के साथ)

प्रेम

हे प्रिये ! इस अद्भूतं प्रेम को कैसे लिखूँ? हम तो साहित्य के विद्यार्थी रहे ही नही! जब तक पढ़े अंको , रासायनिक सूत्रों और भौतिकी के नियमो में उलझते ही रह गए अतः इन्ही के उपयोग से इस प्रेम का वर्णन करने की कोशिश करता हूँ!

बीते कुछ दिनों से हम दोनो के प्रेम रूपी बीजगणितीय द्विपद समीकरण में उलझी त्रुटियां सम्पादित नही हो रही है! यदि हम दोनो को ही  ऐसी गुणन संख्या संख्या नही मिल रही जो आगे बढ़ते हुए हल होकर एक निश्चित मान को प्राप्त हो!

हमारा तुम्हारा प्रेम आर्कमिडीज के सिद्धांत जैसा है  जिसमें  मैं तुम्हारे ह्रदय के प्रेमनद रूपी  द्रव में डूबा हूँ! जिसके ऊपर तुम्हारे मनमोहक अप्रतिम सौंदर्य और आँखों के आकर्षण रूपी उपरिमुखी बल लगा है जो मेरे द्वारा हटाये गये द्रव तुम्हारे अंदर मेरे लिए पाये गए असीम प्रेम के भार के बराबर  है।

और पास्कल के नियम के अनुसार हम दोनों के आपसी सामंजस्य  संतुलन में प्रेम  का दबाव चारों तरफ बराबर  है।

हमारा प्रेम नाभिकीय संलयन की तरह है जब हम और तुम
दो अधिक हल्के नाभिक, घर वालो के भयानक ताप वाले विरोध रूपी अत्यधिक उच्च ताप पर परस्पर संयोग करके एक उच्च भार वाले प्रेम रूपी नाभिक का निर्माण करते हैं । जो अनवरत चलती रहेगी अनंत काल तक और सूर्य रूपी प्रेम को ऊष्मा और प्रकाश से संसार को ज्ञान देती रहेगी।

मेरे दिन की व्यस्तता लघुत्तम समपवर्त्य जैसी है ,
मेरे दैनिक कर्तव्यों और खेती  का समय भाजककी तरह पूरे दिन रूपी भाज्य, समय को बड़े भागफल से विभाजित करता है !
और फिर वो शेषफल भाजक का रूप धारण कर लेता है ,
बस यही प्रक्रिया अंत तक चलती है !
जब तक शेषफल रूपी समय शून्य ना हो जाये,
अब बताओ ऐसे में  का समय कहाँ से लायें|

 
हमारा तुम्हारा प्रेम गुणोत्तर श्रेणी की तरह है जो एक समान गुणन में आगे बढ़ते हुए अंत मे अनन्त हो जाता है

हमारा तुम्हारा प्रेम त्रिकोणमिति की ऊँचाई और दूरी की तरह है जिसमे हमारे और तुम्हारे प्रेम का जितना विस्तार अपने अपने छोरो पर होता है तो बीच के कर्ण की दूरी हमदोनो के प्रेम के वर्ग के योगफल के बराबर  हो जाती है!

हमारा तुम्हारा प्रेम शून्य है हर मान से परे! जिसे कोई भी किसी तरह अपमानित करे या काटने या भाग देने की कोशिश करें अंत मे वो खुद शून्य हो जाएगा!

अनूप राय

Saturday 16 June 2018

हास्य

#गुरुकुल

अनूप! अनूप! कहा मर गए बे?? अरुण भैया दनदनाते हुए रूम में दाखिल हुए ।
 क्या हुआ भैया?? इतना जल्दबाजी में क्यों है?? मैंने बर्तन माँजते हुए पूछा।

अरुण भैया ने हैंगर पर टांगे हुए महीनों के गंदे कपड़ो में शुरुआत के कपड़ो में से एक को सूंघे और कहे!  शाम को माघ मेले में संगम पर मनोज तिवारी का प्रोग्राम है उसमें चलना है और हा इं. प्रदीप और विवेक भी चल रहे है।

हम कहे !! देखो भैया सबको लेलो इनको न लो ये आफत खरीदते है !!!
हम गौरव और अजीत भैया को ले लेते है इनको न ले चलो मैने कहा!

उसको तो एकदम नही ले जाएंगे!!
उ काहे भैया?? मैने पूछा??
अरे तुमको पता नही उस दिन रूम पे आया था तो हमारा एक पॉव शुद्ध घी दाल  में डाल के खा गया और बोला कि चिंता न करो 1 किलो दे देंगे!

जब हम रूम पर गए मांगने तो कहा कि मजाक किये थे यार!!
मुह बनाते हुए अरुण भैया ने कहा।

आप भी तो उस दिन उनका एक डब्बा काजू खा गए थे जब वो मंगलवार व्रत के दिन खीर बना रहे थे ???

अरे यार उस दिन तो हम भी व्रत थे न !! दाँत निपोरते हुए बोले।

और सुनो कौशल भी आ रहा है शाम पसेंजर से दारागंज उतरेगा ।

ठीक है पर अजित भैया को ले लीजिएगा ।

चुप बे ज्यादा बकर बकर करोगे तो तुम भी नही जाओगे!! बता दिए है तो अपना लोल बन्द ही रखो।
मै चुप होके बर्तन माँजने लगा । असल मे विवेक भैया , प्रदीप भैया और अरुण भैया खाना खा के  थाली हमारी ओर खिसका देते और कहते शाम तक चमक जाना चाहिए!!

अब गौरव छोटा उसे हम कैसे माँजने दे??
तो हम खुद माँजते थे।
मैंने धीरे से अजित भैया को फोन कर दिया ।

शाम को हम सभी लोग पुराने गंदे कपड़ो में डीओ मार के महका दिये और चल दिये प्रोग्राम में।
सीट मिली चार तो सीनियर के नाते अरुण,इं. प्रदीप ,उजबक और अजित भैया लोग सीट पे बैठे ,और हम ,गौरव और कौशल भैया एकदम पीछे लाइन में खड़े थे।
इधर विवेक भैया और प्रदीप भैया अपने ताड़न योग को भलीभूत करने में अगल बगल सर्वे कर रहे थे और दोनो ने सेटिंग भी बैठा लिया।

इधर भोजपुरी गानों के दीवाने अरुण भैया तन्मयता से गाना सुन रहे थे। शुरू के भक्ति गीतों के बाद विमी भैया ने कहा क्या अरुण !! वो वाला गाने की फरमाइश करो न!!

अरुण भैया जोर से चिल्लाए जोश में जैसे केजरी चुनाव हारने के बाद बैलेट से चुनाव के लिए चिल्लाता है।

 " बगल वाली जान मारेली " गाना गाइये!!!

तब तक उनके बगल में बैठी एक भौजी ने सैंडल की तरफ इशारा किया!! अरुण भैया को 440 का झटका लगा और याद आ गया कि कैसे एक बार लेबर चौराहे पे लँगड़ी मारने के चक्कर मे एक लड़की ने सरेआम अपने अपने "पाव दासी" नामक  नुकीले अस्त्र से उनका थोबड़ा फुला दिया था। इतना याद आते ही उनका जोश साबुन के झाग की माफिक बैठ गया।

तब तक प्रदीप भैया के अभियंता वाले दिमाग ने अपना काम शुरू कर दिया था उन्होंने 500 का एक नोट अरुण भैया के सर के ऊपर हिलाना शुरू की और बोले!! हमारा गाना होकर रहेगा।

"मुख्यालय हिलेला हिले राजधानी त हे देवता ई मन कैसे मानी.."

इतना सुनना था कि पब्लिक बागी हो गयी और उत्पात मचा दिया। अरुण भैया नए नए अलाहाबाद में ये क्या घात पेंच जाने।

इधर पुलिस ने लाठी चार्ज किया कि हम , गौरव और कौसल भैया एक छलांग में टेंट से बाहर, विमी भैया और प्रदीप भैया लड़कियों के बीच अपने सेटिंग के साथ।

अब पुलिस के हाथों अरुण भैया!! मारवाड़ी आदमी ..नाजुक शरीर, कहा पुलिस के पाले पड़े।
वो भी उप पुलिस जो "मुर्दे का पिछवाड़ा देख के बता देती है कि ये किस गम में मरा है"

पुलिस ने चौकी पे अरुण भैया को उल्टा लिटाया और चारो तरफ से घेर के उनके "गिलगित और बलूचिस्तान पे हमला बोल दिया जैसे आज ही उनके पाकिस्तान से आजादी दिला देंगे।
जैसे जैसे लाठियां गिरती वैसे वैसे अरुण भैया की चीखे बढ़ती जाती।

और बोलते अनुपवा सही कहता था कि इन दुनो को मत ले चलो । ऐसी गलती अब नैय होगा..
इधर पुलिस ने उनके पाकिस्तान का पांच मिनट में ही बोकला छोड़ा दिया और चेतावनी दी!!

पढ़ने वाले हो इस लिए कम मारे है अब मत करना ऐसा!!
अरुण भैया की मुंडी  ऐसे हिली जैसे मदारी का बन्दर हामी भरता है।

किसी तरह उठे और अपने बलूच क्षेत्र के तार तार हुए कपड़ो पे गमछे को लपेट कर अभी बाहर जाने की सोच रहे थे कि अचानक वो बगल वाली भौजी आयी और बोली!!

चलिए न आपको देहाती का रसगुल्ला खिलाते है ?? और एक चवँन्निया मुस्कान मार के चल दी।

अरुण भैया अपने दुखों को ऐसे भूल गए जैसे "गेस्टहाउस " कांड को मायावती भूल गयी..जैसे लगा उनके घाव पे शीतल सलिल के झोंके दर्द निवारक दवा का लेप कर रहे हो!!!

तब तक उनके कानों में प्रदीप भैया की कर्कश आवाज गूंजी!!

कोई बात नही बच्चा ये सब होता रहता !! हम भी बहुत लात खाये है लड़की के चक्कर के कह कर कुटिलता से मुस्करा दिये।

अरुण भैया बोले !! भाई कुछ भी कहो यूपी पुलिस साली मारती बेजगहा है??बताओ भला इहा कोई मारता है ?? अब हम सुबह पाकिस्तान कैसे जाएंगे??? और भोकर के रोने लगे।

दोनो लोग उनको टांग के बाहर लाये तो हम, गौरव और कौशल भैया देखते ही मुस्कराने लगे और समझ गए कि क्या हुआ।

पूरे रास्ते कोई यझ दूसरे सेकुछ  नही बोला । बस विमी भैया और प्रदीप भैया मुस्करा रहे थे एक दूसरे को देख के जैसे किसी पूर्व जन्म का बदला लिया हो।

रूम पर आने के बाद हमलोग खाना बनाने की तैयारी में लग गए और अरुण भैया मार के थकान के चलते सो गए..उधर बाकी दु लोग फेसबुक पे लग गए लड़कियों के इनबॉक्स में hi लिखने ।

लगभग साढ़े एक घन्टा में खाना तैयार हुआ।
ये तय हुआ कि पेपर बिछा के अरुण भइया को चौकी पे ही दे दिया जाये काहे की बहुत लात खाये है।
गौरव ने पेपर बिछाया और सब्जी थाली में निकाल के सबको दिया।
मैंने रोटी उठाया और सबको देने के बाद चौकी पे गया रोटी देने तो अरुण भैया खा रहे है और आंखे दर्द और थकान से बंद है।

रोटी लेलो भैया?? मैंने कहा !!

लिया तो हूँ!! खा रहा हूं!!

ये शब्द सुनतेही सब लोग ऊपर उठ गये की देखने के लिए की क्या बात है ??

अरे हम रोटी दिये ही नही आप कहा से रोटी पा गए??

चुप बे!! एक तो हम दर्द से परेशान है और तुम मजाक करते हों!!
अब हम भौचक?? निगाहे दौड़ाई तो महाशय पेपर में आधा पेपर अपने उदर में पहुचॉ चुके थे!!

अब तो हँसी  का फब्बारा छूट पड़ा!! सारे लोग लोट लोट के हँसने लगे रावण की तरह तब जाके अरुण भइया की तन्द्रा टूटी और जब देखे तो भागे नल की ओर उल्टी करने के लिए।
अब तो हँसी रुकने का नाम नही ले रही थी । अरुण भैया आये और रजाई में घुस के गए।

रात में किसी को नींद आ नही रही थी और जब नजर टकराती एक दूसरे से जोर से हंसी निकल जाती।

अथ श्री अरुण पुराण😂😂😂

अनूप राय


Wednesday 7 March 2018

युद्ध

#1965_भारतपाक_युद्ध

अप्रैल का महीना,सन 1965, ग्रीष्म ऋतु का आरम्भ  होने को था। दुश्मन देश पाकिस्तान भारत के अभिन्न अंग कश्मीर में घुसपैठ की कोशिश कर रहा था। पाकिस्तान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर का प्लान बनाया। इसके तहत कश्मीर में घुसपैठ करने और भारतीय शासन के विरुद्ध विद्रोह करने का षड्यंत्र  था। 5 अगस्त, 1965 को पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ युद्ध आरम्भ कर दिया।
अनुमानतः 26 हजार से 33 हजार पाकिस्तानी सैनिक कश्मीरी वस्त्रों में एलओसी पार कर कश्मीर और उसके अंदरूनी इलाकों में घुस आए। 15 अगस्त को स्थानीय कश्मीरियों ने भारतीय सेना को सीमा उल्लंघन की जानकारी दी ।
भारत ने त्वरित सैन्य कार्रवाई करते हुए पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ हमला बोल दिया। शुरुआत में भारतीय सेना को सफलता मिली। उसने तीन पहाड़ियों पर कब्जा छुड़ा लिया। अगस्त के अंत तक पाकिस्तान ने टीट्वाल, उरी और पुंछ के महत्वपूर्ण इलाकों पर कब्जा जमा लिया। वहीं, भारतीय सेना ने भी पाकिस्तान शासित कश्मीर के हाजी पीर दर्रे पर कब्जा कर लिया।
हाजीपीर दर्रे को जीतना भारत के लिए बड़ा महत्वपूर्ण था, मेजर रंजीत सिंह दयाल ने कम्पनी लीड की थी और फ़र्स्ट बटालियन पैराशूट रेजिमेंट के जवानों ने भयंकर लड़ाई लड़कर 29 सितम्बर को हाजी पीर पोस्ट  पर तिरंगा फहराया और सबसे अहम बात यह कि इस लड़ाई में रंजीत की माँ ने चिठ्ठी लिखी थी उन्हें और चिठ्ठी में लिखा था! - "बेटा इंच इंच कट जाना पर लड़ाई में पैर पीछे मत हटाना। ऐसी होती है एक सैनिक  की माँ। " फ़र्स्ट पैरा ने हाजी पीर के रास्ते में पड़ने वाले पाकिस्तानी चौकियों का विध्वंस किया  और 3 दिन भूखे प्यासे बिस्कुट के दम पर रहकर हाजी पीर पर कब्जा किया और अंत तक पाकियों के लाख प्रयासों के कब्जा नहीं होने दिया। और सरेंडर कर चुके पाकिस्तानियों की टाँगे रस्सी से बांध दीं फिर उनके हाथ भी ,और  सबको एक लंबी रस्सी से बाँधा और उनसे कुली का काम लिया।

हाजी पीर दर्रे पर कब्जे से पाकिस्तानी फौज पूरी तरह से बौखला गई। उसे डर था कि मुजफ्फराबाद पर भी भारत कब्जा जमा सकता है। 1 सितंबर, 1965 को पाकिस्तान ने ऑपरेशन  ग्रैंड स्लैम लॉन्च किया।
ग्रैंड स्लैम अभियान के तहत पाकिस्तान ने अखनूर और जम्मू पर व्यापक हमले शुरू कर दिए। ऐसा करके वह भारतीय सेना पर दबाव बनाने लगा। कश्मीर में रसद और अन्य सामग्री पहुंचाने के रास्ते पूरी तरह से बंद हो गए।
हाजी पीर दर्रे पर भारतीय कब्जे से पाकिस्तान राष्ट्रपति को लगा कि उनका ऑपरेशन जिब्राल्टर खतरे में है। उन्होंने और अधिक संख्या में सैनिक, तकनीक रूप से सक्षम टैंक भेजे। इस अचानक हुए हमले के लिए भारतीय फौज तैयार नहीं थी।
पाकिस्तान को इस वार का फायदा मिलने लगा। भारतीय सेना ने इस नुकसान की भरपाई के लिए हवाई हमले शुरू कर दिए। अगले दिन पाकिस्तान ने भी कड़ा प्रहार किया। उसने बदले में कश्मीर और पंजाब में भारतीय सेना और उसके अड्डों पर हवाई हमले किए।
कश्मीर में तेजी से पाकिस्तानी फौज को बढ़त मिल रही थी। वहीं, भारतीय फौज को इस बात का डर था कि अगर अखनूर हाथ से निकल गया तो कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा बन जाएगा
अखनूर बचाने के लिए भारतीय फौज ने पूरी ताकत झोंक दी। भारत के हवाई हमलों को विफल करने के लिए पाकिस्तान ने श्रीनगर के हवाई ठिकानों पर हमले किए। इन हमलों ने भारत की चिंता को बढ़ा दिया।
पाकिस्तान की स्थिति बेहतर होने के बावजूद भी भारत के आगे एक न चली। इसका सबसे बड़ा कारण पाकिस्तानी सेना का कमांडर का बदलना रहा । जब अखनूर पर पाकिस्तान कि बढ़त थी तभी अचानक उन्होंने कमाण्डर बदलने कि भयंकर रणनीतिक चूक की, मेजर जनरल अख़्तर हुसैन मलिक के स्थान पर मेजर जनरल याह्या खान भेजे गये और उन्होंने जोश में ऑपरेशन जिब्राल्टर शुरू किया जो फेल हो गया और पाकिस्तान बैकफुट पर आने लगा यहीं से। और
अचानक हुए इस बदलाव से पाक सेना हक्की-बक्की रह गई। माना जाता है कि अगले 24 घंटों तक पाक सेना को कोई निर्देश नहीं दिया गया। इसका फायदा भारत को मिला। इस दौरान भारत ने अपनी अतिरिक्त सैनिक टुकड़ी और साजो-सामान अखनूर पहुंचा दिया।
इस तरह से अखनूर सुरक्षित हो सका। भारतीय सेना के कमांडर भी आश्चर्यचकित थे कि पाकिस्तान इतनी आसानी ने जीती हुई बाजी क्यों हार रहा है। इसी बीच, सैनिक रणनीति के तहत भारत ने बड़ा ही कठोर फैसला लिया, जिसे भारत-पाकिस्तान युद्ध के इतिहास में अहम माना जाता है।
भारत के पश्चिमी कमान के सेना प्रमुख ने तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल चौधरी को भारत-पाक पंजाब सीमा पर एक नया फ्रंट खोलने का प्रस्ताव दिया। हालांकि, सेनाध्यक्ष ने इसे तुरंत खारिज कर दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री साहसी प्रधान मंत्री थे  उनको यह बात जम गई। उन्होंने सेनाध्यक्ष के फैसले को रद्द करते  हुए इस हमले का आदेश दे दिया।
भारत ने अंतरराष्ट्रीय सीमा को पार करते हुए पश्चिमी मोर्चे पर हमला करने की शुरुआत कर दी। द्वितीय विश्वयुद्ध के अनुभवी मेजर जनरल प्रसाद के नेतृत्व में भारतीय फौज ने इच्छोगिल नहर को पार पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश किया। इच्छोगिल नहर भारत-पाक की वास्तविक सीमा थी।
तेजी से आक्रमण करती हुई भारतीय थल सेना लाहौर की ओर से बढ़ रही थी। इस कड़ी में उसने लाहौर हवाई अड्डे के नजदीक डेरा डाल लिया। भारतीय सेना की इस दिलेरी से  पाकिस्तान सहित अमेरिका भी दंग रह गया। उसने भारत से एक अपील की।
अमेरिका ने भारतीय सेना से कुछ समय के लिए युद्ध विराम करने का आग्रह किया, जिससे पाकिस्तान अपने नागरिकों को लाहौर से निकाल सके। भारत ने अमेरिका की बात मान ली। लेकिन इसका नुकसान भी उठाना पड़ा। पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था।
पाकिस्तान ने लाहौर पर दबाव कम करने के लिए भारत के खेमकरण पर हमला कर दिया। उसका मकसद भारतीय फौज का लाहौर से ध्यान भटकाना था। बदले में भारत ने भी बेदियां और उसके आसपास के गांवों पर हमला कर कब्जे में ले लिया।
कश्मीर में नुकसान झेल चुकी भारतीय सेना को लाहौर में घुसने का फायदा यह मिला कि उसे अपनी सेना लाहौर की ओर भेजनी पड़ी। इससे अखनूर और उसके इलाकों में दबाव कम हो गया।
8 सितंबर को पाक ने भारत के मुनाबाओ पर हमला कर दिया। मुनाबाओ में पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए मराठा रेजीमेंट को भेजा गया, लेकिन रसद और कम सैनिक होने के कारण मराठा रेजीमेंट के कई जवान शहीद हो गए। आज इस चौकी को मराठा हिल के नाम से जाना जाता है।
10 सितंबर को मुनाबाओ पर पाक का कब्जा हो गया। खेमकरण पर कब्जे के बाद पाकिस्तान अमृतसर पर कब्जा करने के सपने संजोंने लगा। लेकिन भारतीय सेना द्वारा ताबड़तोड़ हमले से वह खेमकरण से आगे नहीं बढ़ पाई।
यहां की लड़ाई में 97 से अधिक टैंक भारतीय सेना ने मार गिराए थे, जबकि भारत के सिर्फ 30 टैंक ही नष्ट हुए थे। इसके बाद यह जगह अमेरिका में बने पैटन टैंक के नाम पर पैटन नगर के नाम से जानी जाने लगी।
इसके बाद अचानक दोनों सेनाओं की ओर से युद्ध की गति धीमी हो गई। दोनों ही एक-दूसरे के जीते हुए इलाकों पर नजर रखे हुए थे। इस जंग में भारतीय सेना के तकरीबन तीन हजार और पाक सेना के 3800 जवान मारे गए।
भारत ने युद्ध में 710 वर्ग किमी और पाकिस्तान ने 210 वर्ग किमी इलाके पर कब्जा जमा लिया। भारतीय सेना के कब्जे में सियालकोट, लाहौर और कश्मीर के उपजाऊ इलाके शामिल थे।
वहीं, दूसरी तरफ पाकिस्तान ने भारत के छंब और सिंध जैसे रेतीले इलाकों पर कब्जा कर लिया। क्षेत्रफल के हिसाब इस युद्ध में भारत को पाकिस्तान पर बढ़त मिल रही थी।
हर युद्ध का अंत होता है। इसका भी हुआ। संयुक्त राष्ट्र की पहल पर दोनों देश 22 सितंबर को युद्ध विराम के लिए राजी हो गए। भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच 11 जनवरी, 1966 को ऐतिहासिक ताशकंद समझौता हुआ।

और जब ताशकंद में शास्त्री जी पाकिस्तान को हाजीपीर लौटने से मना कर दिए तो रशियन बोले कि अगर ऐसे करेंगे तो पाकिस्तान कच्छ के रण से नहीं हटेगा फिर आप लाहौर से नहीं हटेंगे फिर वो कश्मीर से नहीं हटेगा फिर युद्ध कैसे बन्द होगा ??? अंततः शास्त्री जी हाज़पीर लौटा दिए। जब यह बात उनकी पत्नी ने सुनी तो उसी शाम फोनपर तो वह गुस्सा हो गईं और शास्त्री जी से बात करने को मना कर दिया। और उसी रात शास्त्री जी की मृत्यु हो गयी रहस्यमय तरीके से।

जब शास्त्री जी के पास सीज़फायर का प्रस्ताव आया तो वो जनरल से पूछ लिए की भारत की क्या स्थिति है युद्ध जीतने में ? तो जनरल ने कहा कि हमारे पास टैंक कम हैं, गोला-बारूद का स्टॉक खत्म हो रहा है तेजी से और भी बहुत दिक्कत बताए, जवान शहीद हो रहे हैं, युद्ध मुश्किल में पड़ रहा है। जबकि बाद में आंकलन हुआ तो खबर लगी कि उस वक्त तक पाकिस्तान का 80% गोला-बारूद खप चुका था और भारत का मात्र 14%।

1965 की लड़ाई में भारतीय सेना को जो मुश्किल देखनी पड़ीं उनमें जनरल चौधरी का बड़ा हाथ था। वह एयरफ़ोर्स से कोऑपरेट नहीं कर रहे थे। उन्हें था कि ये लड़ाई हम अपने बूते जीत लेंगे और असफल  भी होने के बाद किसी की सुन नहीं रहे थे। उस समय के वायुसेना प्रमुख एयर मार्शल के अनुसार चौधरी अकड़ू और सुप्रीम सिंड्रोम के व्यवहार वाले आदमी थे।

 पाकिस्तान ने भी भयंकर भूल की थी जो उसने सोचा था कि कश्मीर में विद्रोह करवा देगा लेकिन यह तो हुआ नहीं परन्तु  भारतीय सेना जब लड़ने पर आई तो गोला बारूद बमबारी सब बेकार हो गयी। भीषण लड़ाई के बावजूद कश्मीर में बड़ी कड़ी टक्कर मिली और  पँजाब का मोर्चा भी  खुल गया और टैंक पहुँच गए लाहौर, पहली बार तो बड़ी आसानी से लाहौर पहुँच गए लेकिन जब आम जनता को निकालने की अपील पर सेना ने मौका दिया तभी भारतीय इंटेलीजेंस फेल्योर से हुआ यह कि 3 जाट जो लाहौर के पास थी उसे रिइंफोर्समेंट भेजने के बजाय सारी सेना हटा ली गयी मजबूर होकर 3 जाट को पीछे हटना पड़ा और जब दुबारा लड़ाई हुई तो यह ऐसी भीषण लड़ाई थी जैसे WW2 इन जर्मनी के अंदर शहरों में लड़ाई। पाकिस्तानी एक एक घर गली में बैठे थे और भारतीय जवानों ने एक एक दरवाजा खोल कर गली गली में भीषण युद्ध किया। लाशें ऐसे बिछी थीं कि पीने को पानी नहीं। एक तालाब था वह भी पाकिस्तानियों की लाशों से भरा हुआ। अंत में उसका गन्दा खून मिला पानी पीकर जिंदा रहे सैनिक

 भारत के लिए 1965 की लड़ाई ऐसे ही थी कि आप दिसम्बर के महीने में खलिहान में नितांत अकेले घुटने भर पानी में खड़े होकर गेंहू सींचने के लिए ट्यूबवेल चला रहे हों और तभी बिच्छू डंक मार दे। इंटेलीजेंस फेल्योर था भारत का। इन्हें पाकिस्तान की घुसपैठ का अंदाज़ा ही नहीं हुआ लेकिन जब भारतीय सेना को घुसपैठियों की खबर मिली तो ये इस बात पर सतर्क हो गए कि ये पाकिस्तानी सेना है न कि कोई कबीलाई । उन्होने बड़ी चतुराई और कौशल का प्रयोग करके लड़ाई लड़ी पर उन्हें इसकी खबर नहीं थी कि पाकिस्तान ने loc के पास भारी मात्रा में तोपखाना जमा रखा है और एक कटु सत्य यह भी है कि तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल जेएन चौधरी भी बेखबर थे सेना की हालत से।

65 में भारतीय सेना और वायुसेना को बहुत नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि उपकरणों की गुणवत्ता में पाकिस्तान आगे था हर जगह,अमेरिकी मदद और वहां से प्राप्त दैत्याकार सेबर जेट विमान तकनीकी  रूप से बहुत उन्नत थे। उसने बहुत तैयारी से प्लानिंग की थी। जबकि भारतीय एक तो तैयार नहीं थे तिसपर तकनिकीगत रूप से कमजोर थे उसके बाद भी हमलोग 1965 की जंग जीत गये यह बहुत बड़ी बात थी क्योंकि ww2 के बाद का सबसे भीषण युद्ध यही हुआ है अबतक, टैंक, आर्टिलरी यानी तोपखाना, आर्मर्ड ट्रकों, गाड़ियों के साथ ट्रेंच और टाउन कॉम्बैट भी, साथ ही कश्मीर से लेकर पूरे गुजरात तक के क्षेत्र पर लड़ाई।

इस लड़ाई ने यह सिद्ध कर दिया कि नहीं भारत अगर तैयार नहीं है तो भी उसे हल्के में लेना मूर्खता होगी, और इस लड़ाई की जीत ने शास्त्री जी का कद भारत नहीं दुनिया में भी बहुत ऊँचा उठा और इंडियन आर्म्ड फोर्सेस की नई पहचान बनी के ये बैटल वर्दी हैं। किसी भी हालत में, किसी से भी कैसे भी लड़कर जीत जाने वाले सैनिक।

नोट-- युद्ध कभी भी ताकत से नही जीते जाते हैं, इसके लिए मातृभूमि पर मर मिटने की ललक,देशप्रेम की असीम भावना, बिना अस्त्र शस्त्र के ही दुश्मनो को काल के गाल में पहुचाने का साहस और पहाड़ो जैसा कलेजा चाहिए होता है । जो भारत जैसे देश के अलावा कहीं नही मिलता,
ज्यादा जीवन से अच्छा चार दिन यशस्वी होंकर रहो।

✍अनूप राय✍

टाइगर्स_ओवर_सरगोधा

 #टाइगर्स_ओवर_सरगोधा 1965 में भारतीय वायुसेना के पास अर्ली वॉर्निंग राडार सिस्टम नहीं थे। ये उस समय की स्टे्ट ऑफ आर्ट टेक्नोलॉजी थी लेकिन हम...