#शिवरात्रि_विशेष
सृष्टि आदि पांच कृत्यों के लक्षण क्या है?
भगवान शिव के कर्तव्यों को समझना अत्यंत ही गहन है, फिर भी उनके बारे में हमे कुछ ज्ञान तो होना ही चाहिए। 'सृष्टि', 'पालन', 'संहार', 'तिरोभाव', और 'अनुग्रह' ही भगवान शिव के जगत सम्बन्धी कार्य हैं जो नित्य सिद्ध हैं।
संसार की रचना का जो आरम्भ है उसे ही सृष्टि या सर्ग कहते है। शिव से पालित होकर सृष्टि का का जो सुस्थिर रूप से रहना ही स्थिति है। उसका विनाश ही 'संहार' है। प्राणों के उत्क्रमण को तिरोभाव कहते हैं। इन सब से छुटकारा मिल जाना ही शिव का 'अनुग्रह' है । सृष्टि आदि जो चार कृत्य है वो संसार का विस्तार करने वाला है और अनुग्रह मोक्ष की प्राप्ति हेतु है।यह सदा शिव में अविचल भाव मे स्थिर रहता है।
मनुष्य इन पांच कृत्यों को पाँच भूतों में देखते हैं।
सृष्टि भूतल में, स्थिति जल में, संहार अग्नि के, तिरोभाव वायु में, और अनुग्रह आकाश में स्थित है। पृथ्वी पर सबकी सृष्टि होती है, जल में वृद्धि एवं जीवन रक्षा होती है, अग्नि सबकुछ जला देती है, वायु सबको एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है, और आकाश सबको अनुगृहीत करता है।
इन पाँच कृत्यों को वहन करने के लिए शिव के पाँच मुख हैं। चार दिशाओं में चार मुख और एक मध्य में मुख है। ब्रह्मा और विष्णु ने परम् ब्रह्म से सृष्टि और स्थिति नामक दो कृत्य प्राप्त अतः दोनो ही लोग भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं।
इसी प्रकार परमब्रह्म से उनके विभूति स्वरूप 'रुद्र और महेश्वर' ने दो कृत्य संहार और तिरोभाव प्राप्त किया है, परंतु अनुग्रह नाम का कृत्य कोई दूसरा नही पा सकता।
वह मंगलकारी मंत्र जो सबसे पहले शिव के मुख से ओंकार रूप(ॐ) प्रकट हुआ जो शिव के स्वरूप का बोध कराता है।
ओंकार वाचक और शिव वाच्य हैं।
शिव के उत्तरवर्ती मुख से 'अकार' , पश्चिम मुख से' उकार' , दक्षिण मुख से 'मकार' , पूर्व मुख से 'विंदु' था मध्य मुख से 'नाद' प्रकट हुआ। इस प्रकार पाँच अवयवों से युक्त ओंकार का विस्तार हुआ।इन सभी अवयवों से युक्त होकर वह प्रणव ' 'ॐ' नामक एकाक्षर हो गया।
यह नाम-रूपात्मक सारा जगत तथा वेद उत्पन्न स्त्री-पुरुष वर्ग दोनो कुल इस प्रणव मंत्र से व्याप्त हैं।यह मंत्र शिव और शक्ति दोनों का बोधक है।
इसी से इसी से पंचाक्षर मंत्र 'ॐ नमः शिवाय' की उत्पत्ति हुई , जो शिव के सकल रूप का बोध कराता है। वह अकारादि क्रम और मकरादी कर्म से कमशः प्रकाश में आया।
इस पंचाक्षर मंत्र से 'मातृका' वर्ण प्रकट हुए , जो पाँच भेद वाले है। *अ, ई, उ ,ऋ, लृ ये पांच मूल भूत स्वर हैं। उसी से शिरोमंत्र सहित त्रिपदा गायत्री मंत्र का उद्भव हुआ और गायत्री से सम्पूर्ण वेद प्रकट हुए, और उन वेदों से करोड़ो मंत्र प्रकट हुए।इन मन्त्रो से विभिन्न कार्यो और मनोरथों की सिद्धि होती हैं।
नमो निष्कलरूपाय नमो निष्कलतेजसे।
नमः स्कलनाथाय नमस्ते सकलात्मने।।
नमः प्रणववाच्च्याय नमः प्रणवलिंगने।
नमः सृष्टयादीकत्रे नमः पँच मुखाय ते।।
पँचब्रह्मस्वरूपाय पँचकृत्याय ते नमः।
आत्मने ब्रह्मणे तुभ्यमन्तगुणसक्तये।।
हर हर महादेव..
अनूप राय
सृष्टि आदि पांच कृत्यों के लक्षण क्या है?
भगवान शिव के कर्तव्यों को समझना अत्यंत ही गहन है, फिर भी उनके बारे में हमे कुछ ज्ञान तो होना ही चाहिए। 'सृष्टि', 'पालन', 'संहार', 'तिरोभाव', और 'अनुग्रह' ही भगवान शिव के जगत सम्बन्धी कार्य हैं जो नित्य सिद्ध हैं।
संसार की रचना का जो आरम्भ है उसे ही सृष्टि या सर्ग कहते है। शिव से पालित होकर सृष्टि का का जो सुस्थिर रूप से रहना ही स्थिति है। उसका विनाश ही 'संहार' है। प्राणों के उत्क्रमण को तिरोभाव कहते हैं। इन सब से छुटकारा मिल जाना ही शिव का 'अनुग्रह' है । सृष्टि आदि जो चार कृत्य है वो संसार का विस्तार करने वाला है और अनुग्रह मोक्ष की प्राप्ति हेतु है।यह सदा शिव में अविचल भाव मे स्थिर रहता है।
मनुष्य इन पांच कृत्यों को पाँच भूतों में देखते हैं।
सृष्टि भूतल में, स्थिति जल में, संहार अग्नि के, तिरोभाव वायु में, और अनुग्रह आकाश में स्थित है। पृथ्वी पर सबकी सृष्टि होती है, जल में वृद्धि एवं जीवन रक्षा होती है, अग्नि सबकुछ जला देती है, वायु सबको एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है, और आकाश सबको अनुगृहीत करता है।
इन पाँच कृत्यों को वहन करने के लिए शिव के पाँच मुख हैं। चार दिशाओं में चार मुख और एक मध्य में मुख है। ब्रह्मा और विष्णु ने परम् ब्रह्म से सृष्टि और स्थिति नामक दो कृत्य प्राप्त अतः दोनो ही लोग भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं।
इसी प्रकार परमब्रह्म से उनके विभूति स्वरूप 'रुद्र और महेश्वर' ने दो कृत्य संहार और तिरोभाव प्राप्त किया है, परंतु अनुग्रह नाम का कृत्य कोई दूसरा नही पा सकता।
वह मंगलकारी मंत्र जो सबसे पहले शिव के मुख से ओंकार रूप(ॐ) प्रकट हुआ जो शिव के स्वरूप का बोध कराता है।
ओंकार वाचक और शिव वाच्य हैं।
शिव के उत्तरवर्ती मुख से 'अकार' , पश्चिम मुख से' उकार' , दक्षिण मुख से 'मकार' , पूर्व मुख से 'विंदु' था मध्य मुख से 'नाद' प्रकट हुआ। इस प्रकार पाँच अवयवों से युक्त ओंकार का विस्तार हुआ।इन सभी अवयवों से युक्त होकर वह प्रणव ' 'ॐ' नामक एकाक्षर हो गया।
यह नाम-रूपात्मक सारा जगत तथा वेद उत्पन्न स्त्री-पुरुष वर्ग दोनो कुल इस प्रणव मंत्र से व्याप्त हैं।यह मंत्र शिव और शक्ति दोनों का बोधक है।
इसी से इसी से पंचाक्षर मंत्र 'ॐ नमः शिवाय' की उत्पत्ति हुई , जो शिव के सकल रूप का बोध कराता है। वह अकारादि क्रम और मकरादी कर्म से कमशः प्रकाश में आया।
इस पंचाक्षर मंत्र से 'मातृका' वर्ण प्रकट हुए , जो पाँच भेद वाले है। *अ, ई, उ ,ऋ, लृ ये पांच मूल भूत स्वर हैं। उसी से शिरोमंत्र सहित त्रिपदा गायत्री मंत्र का उद्भव हुआ और गायत्री से सम्पूर्ण वेद प्रकट हुए, और उन वेदों से करोड़ो मंत्र प्रकट हुए।इन मन्त्रो से विभिन्न कार्यो और मनोरथों की सिद्धि होती हैं।
नमो निष्कलरूपाय नमो निष्कलतेजसे।
नमः स्कलनाथाय नमस्ते सकलात्मने।।
नमः प्रणववाच्च्याय नमः प्रणवलिंगने।
नमः सृष्टयादीकत्रे नमः पँच मुखाय ते।।
पँचब्रह्मस्वरूपाय पँचकृत्याय ते नमः।
आत्मने ब्रह्मणे तुभ्यमन्तगुणसक्तये।।
हर हर महादेव..
अनूप राय
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