Friday, 10 August 2018

प्रेम

हे प्रिये ! इस अद्भूतं प्रेम को कैसे लिखूँ? हम तो साहित्य के विद्यार्थी रहे ही नही! जब तक पढ़े अंको , रासायनिक सूत्रों और भौतिकी के नियमो में उलझते ही रह गए अतः इन्ही के उपयोग से इस प्रेम का वर्णन करने की कोशिश करता हूँ!

बीते कुछ दिनों से हम दोनो के प्रेम रूपी बीजगणितीय द्विपद समीकरण में उलझी त्रुटियां सम्पादित नही हो रही है! यदि हम दोनो को ही  ऐसी गुणन संख्या संख्या नही मिल रही जो आगे बढ़ते हुए हल होकर एक निश्चित मान को प्राप्त हो!

हमारा तुम्हारा प्रेम आर्कमिडीज के सिद्धांत जैसा है  जिसमें  मैं तुम्हारे ह्रदय के प्रेमनद रूपी  द्रव में डूबा हूँ! जिसके ऊपर तुम्हारे मनमोहक अप्रतिम सौंदर्य और आँखों के आकर्षण रूपी उपरिमुखी बल लगा है जो मेरे द्वारा हटाये गये द्रव तुम्हारे अंदर मेरे लिए पाये गए असीम प्रेम के भार के बराबर  है।

और पास्कल के नियम के अनुसार हम दोनों के आपसी सामंजस्य  संतुलन में प्रेम  का दबाव चारों तरफ बराबर  है।

हमारा प्रेम नाभिकीय संलयन की तरह है जब हम और तुम
दो अधिक हल्के नाभिक, घर वालो के भयानक ताप वाले विरोध रूपी अत्यधिक उच्च ताप पर परस्पर संयोग करके एक उच्च भार वाले प्रेम रूपी नाभिक का निर्माण करते हैं । जो अनवरत चलती रहेगी अनंत काल तक और सूर्य रूपी प्रेम को ऊष्मा और प्रकाश से संसार को ज्ञान देती रहेगी।

मेरे दिन की व्यस्तता लघुत्तम समपवर्त्य जैसी है ,
मेरे दैनिक कर्तव्यों और खेती  का समय भाजककी तरह पूरे दिन रूपी भाज्य, समय को बड़े भागफल से विभाजित करता है !
और फिर वो शेषफल भाजक का रूप धारण कर लेता है ,
बस यही प्रक्रिया अंत तक चलती है !
जब तक शेषफल रूपी समय शून्य ना हो जाये,
अब बताओ ऐसे में  का समय कहाँ से लायें|

 
हमारा तुम्हारा प्रेम गुणोत्तर श्रेणी की तरह है जो एक समान गुणन में आगे बढ़ते हुए अंत मे अनन्त हो जाता है

हमारा तुम्हारा प्रेम त्रिकोणमिति की ऊँचाई और दूरी की तरह है जिसमे हमारे और तुम्हारे प्रेम का जितना विस्तार अपने अपने छोरो पर होता है तो बीच के कर्ण की दूरी हमदोनो के प्रेम के वर्ग के योगफल के बराबर  हो जाती है!

हमारा तुम्हारा प्रेम शून्य है हर मान से परे! जिसे कोई भी किसी तरह अपमानित करे या काटने या भाग देने की कोशिश करें अंत मे वो खुद शून्य हो जाएगा!

अनूप राय

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