नभ मे काले मेघ छा गए,
लगा पसरने घोर तिमिर।
दसों दिशाएं क्रंदन करती,
सड़के बन बैठी नदी तीर
तुम शब्दो के थे शूरवीर,
इच्छाशक्ति जैसे ब्रह्मशीर,
हे जन नायक हे रामभक्त,
तुझको खोकर हम हुए असक्त
हे राजनीति के अजातशत्रु,
तुम मर्यादा मुरुषोत्तम थे,
अपयश भी तुमको छू न सका,
अरि भी जैसे नतमस्तक थे,
चीत्कार कर रहा है पूरा देश,
तुम बिन अब कुछ रहा न शेष,
हे इस युगद्रष्टा हे परमहंस,
फिर आना होगा अपने देश,
फिर आना होगा अपने देश।
सद्यजात
© अनूप राय
लगा पसरने घोर तिमिर।
दसों दिशाएं क्रंदन करती,
सड़के बन बैठी नदी तीर
तुम शब्दो के थे शूरवीर,
इच्छाशक्ति जैसे ब्रह्मशीर,
हे जन नायक हे रामभक्त,
तुझको खोकर हम हुए असक्त
हे राजनीति के अजातशत्रु,
तुम मर्यादा मुरुषोत्तम थे,
अपयश भी तुमको छू न सका,
अरि भी जैसे नतमस्तक थे,
चीत्कार कर रहा है पूरा देश,
तुम बिन अब कुछ रहा न शेष,
हे इस युगद्रष्टा हे परमहंस,
फिर आना होगा अपने देश,
फिर आना होगा अपने देश।
सद्यजात
© अनूप राय
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