Thursday, 15 February 2018

प्रेम

#अनकहे_शब्द

वो हमारे प्रेम रूपी काव्यग्रन्थ का अन्तिम पृष्ठ था जिसपर तुम्हारे प्रेम के बारे लिखा था।  तत्तपश्चात तुम्हारे मन रूपी अनंत प्रेम स्थान में  कुछ ऐसा घटित हुआ की तुम हमे छोड़ के चली गयी। उसके बाद सब कुछ छिन्न भिन्न हो गया और मेरे मन मे नैराश्य उतपन्न हो गया । वो पुस्तकें, सफेद पन्नें अब उदास लगने लगे, उन्हें छूनें का मन नही होता अब। इनको मकड़ी के जालों  और धूल की परतों ने अपना आश्रय बना लिया है, सत्य कहूँ तो उनपर लगे ये जालें  और धूल की परतें हमे बोध कराती हैं कि इस कमरे में ताले लगें हुए हैं और यदि मैंने इसे साफ करने की कोशिश की तो तुम्हारा प्रेम बाहर आ जायेगा और हमे दुबारा मरना पड़ेगा। ये धूल की परतें और जालें  ही मेरे जीवन रेखा की डोर हैं यदि ये हट गई तो मेरा वजूद ही खत्म हो जाएगा। सच कहूं तो ये हमारे अभिन्न मित्र है।
कई बार जीवन मे आये आकस्मिक झंझावातों ने इस किताब को खोलकर मेरे वजूद को ललकारना चाहा , परंतु ऐसा हो न सका, जैसे -जैसे नित्यप्रति उनपर धूल कण और जालों की उपस्थिति बढ़ती जा रही है मेरी यादाश्त भी कमजोर हो रही है,
और तुम्हे भूल गया हूँ,
अब देखो न , सुबह एलपीजी गैस लेने जाना था, गाड़ी बाहर निकाला और रूम में गाड़ी की चाभी और गैस पास बुक उसी में बन्द कर दिया, भूल का अहसास होने पर फिर अंदर  आया औऱ  दोनो को निकाल कर बाहर आया तथा  गाड़ी स्टार्ट की, ये क्या? सिलेंडर तो रूम में ही बन्द रह गया !, फिर वापस घर मे गया , रूम खोला और सिलेंडर बाहर निकाला।
ऐसा कोई भुल्लकड़ कोई हो सकता है क्या?
परंतु मैं ऐसा हो चुका हूँ। हा अगर कुछ याद है तो वो करिश्माई और रहस्यमयी  मुस्कराहट , जिसका मतलब हम आज तक नही समझ सके, जो आखिरी बार घर तुम्हारे घर  से बाहर निकलते समय देखी थी जो हमारी नजरें मिलते ही सेकेंड के सौवें हिस्से में चमक कर लुप्तप्राय सी  हो गयी, हमें समझ नही आया कि वो क्या था ?
कोई छलावा या तुम्हारा प्रेम?

 लिखना तो बहुत चाहता हूं पर आवाज कहीं खो सी गयी है, बोलना तो बहुत चाहता हूं परंतु बातें याद नही आती। बस और बस केवल वो मुस्कान याद है।
उसके बाद तो जीवन बसंत आगमन से पूर्व पतझड़ सा  हो गया है, जिसमे पछुवा शुष्क हवाएं जीवन रूपी फसल को सुखा लेने को उद्यत है।
 याद है तुम्हे , एक बार तुमने पूछा था कि प्रेम का रंग कैसा होता है ?
मैं यदि सूर्य की लालिमा से लिखता तो लाल, कनेर के पुष्पगुच्छों के  रंग से लिखता तो पीला, आकाश के रंग से लिखता तो आसमानी,विरह रूपी अंधकार से लिखता तो काला होता ।
लेकिन मैं तुम्हारा ही रंग नही जान पाया कि तुम्हारे प्रेम में कौन सा रंग है जो पहली बरसात में धुल  कर बदरंग हो गयी और हमे रंगहीन कर दिया।
अब भी कोशिश करता हूँ कि कुछ फिर लिंखूँ , मन मे घुमड़ रहे अनेकानेक विचारों की गठरी में से कुछ शब्द चुनने की कोशिश करता हूँ उकेरने के लिये , अपने पुराने धूमिल ह्रदय के पन्नों  पर  पर शब्द मेरा साथ देने को तत्पर नही होते,शायद उनको भी तुमसे ही प्रेम है, मैं अंत मे कलम के नुकीले नोक से पन्नों  को फाड़ के ह्रदय में ही अन्तिम सँस्कार कर देता हूँ। तुम्हारे बारे में लिखना इतना आसान कहा? हजारों पन्नो की आहुति और शायद रक्त की स्याही से लेखन करना पड़े, लिखूंगा जरूर एक दिन, भले ही कितनी ही कुर्बानियां देनी पड़े।
जब तुम मेरे प्रेम में पड़ी उससे पहले से ही मैं तुमसे प्रेम करता था, बस कहने की हिम्मत न थी, मैं संकोची था तुम जानती थी।
जब मैंने अपने प्रेम का प्रस्ताव रखा था तुम्हारे सामने, तुम हँसने लगे थे,शायद अपने को कमजोर नही साबित करना चाहते थे, लेंकिन मेरे प्रेम की गहराई को तुम्हारी आँखों ने महसूस किया था, उसे तुम छुपा नही पाए, जो आंखों के कोरो से निकलने को आतुर थे, जिसे तुमने बमुश्किल दबा लिया।
भले ही तुम बाहर से दिखावा करती रही, पर मुझे ये पता है कि तुम्हारे ह्रदय रूपी जमीन में मेरे प्रेम रूपी बीज का अंकुरण कब हुआ।
एक दिन जब मुझे चोट लगने पर बेचैन हो उठे, जब मैंने एक दिन खाना खाने से मना किया तो तुमने भी अनशन कर दिया पेट दर्द का बहाना बना के,  जब तक हम खाये नही तुम्हारा पेट दर्द ठीक नही हुआ।  सिवाय प्यार के रास्ते के अलावा किसी अन्य रास्तो पर ऐसी हैरान भरी घटनाएं होती है क्या?
तुम मुझे इससे पहले से नही जानते थे, तुम्हारे अंदर बिखरे-बिखरे से ख्यालात थे लड़को के लिए जो अमूनन सभी लड़कियों के दिल मे होतें है।
लेकिन एक पुरुष का जब प्यार मिलता है तो उन सभी ख्यालातों को एकत्रित करके एक प्रेम सूत्र में पिरो देता है।
आह! मेरे प्रिय ,मैं तो पूर्ण रूप से तुम्हारा था, हर प्रकार की खुशी था, पर न जाने क्यो तुम जान कर भी अनजान बन गए। क्या तुम ये जान पाए कि नए सम्भवनायें तलाशने में तुमने किसी के ह्रदय को क्षत विक्षत कर दिया। मोह्हबत के जंग में रणनीतियां तो लडकियां ही बनातीं है और ब्यूह रचना करती है , जिमसें हमे घुसना तो आया पर अभिमन्यु की तरह बाहर निकलने का ज्ञान न था,

मेरे लिए तो अब कोई जंग जीतने को बाकी न  रहा,अब सुकून ने मुझे अपना कैदी बना लिया है,और अपनी जिंदगी से जुदा कर दिया है।आखिर में हमे हारना ही था जो अंततः हो ही गया।

शायद इस कहानी का अंत उस रहस्यमयी मुस्कराहट से होना था,शायद इतना ही लिखा जाना था इस प्रेम कहानी में ?
 शायद कोई दूसरी प्रेम कहानी जन्म ले रही थी?
 मेरे जगह,और उसके किरदार बदल गएं हों?शायद यही वजह है कि प्रेम कहानी प्रेम के समानांतर चलती है। यद्यपि की अब शब्द नही बचे है, बचे हैं तो बस संवेदनाएं,जो ताउम्र रहेंगे साथ मे।
बस एक बार पुनः लिखना चाहता हूँ तुम्हे, फिर से जीना चाहता हूं वो लम्हे,वो वक्त, जो कभी मुठ्ठी की रेत की तरह फिसल गयें थे,मैं हटाना चाहता हूं उन धूल की परतों को लेकिन सिर्फ तुम लिए, मिलोगी, दिखोगी, किसी मोड़ पर,किसी रोज, किसी वक्त,तुम्हारी अगली मुस्कराहट के लिए,  लेकिन तब तक कोरा ही रखूंगा इस जीवन के पन्नो को, और आजीवन प्रतिक्षारत रहूँगा।

✍ अनूप राय

Wednesday, 14 February 2018

धर्म

#शिवरात्रि_विशेष

सृष्टि आदि पांच कृत्यों के लक्षण क्या है?

भगवान शिव के कर्तव्यों को समझना अत्यंत ही गहन है, फिर भी उनके बारे में हमे कुछ ज्ञान तो होना ही चाहिए।  'सृष्टि', 'पालन', 'संहार', 'तिरोभाव', और 'अनुग्रह' ही भगवान शिव के जगत सम्बन्धी कार्य हैं जो नित्य सिद्ध हैं।
संसार की रचना का जो आरम्भ है उसे ही सृष्टि या सर्ग कहते है। शिव से पालित होकर सृष्टि का का जो सुस्थिर रूप से रहना ही स्थिति है। उसका विनाश ही 'संहार' है। प्राणों के उत्क्रमण को तिरोभाव कहते हैं। इन सब से छुटकारा मिल जाना ही शिव का 'अनुग्रह' है । सृष्टि आदि जो चार कृत्य है वो संसार का विस्तार करने वाला है और अनुग्रह मोक्ष की प्राप्ति हेतु है।यह सदा शिव में अविचल भाव मे स्थिर रहता है।

मनुष्य इन पांच कृत्यों को पाँच भूतों में देखते हैं।
सृष्टि भूतल में, स्थिति जल में, संहार अग्नि के, तिरोभाव वायु में, और अनुग्रह आकाश में स्थित है। पृथ्वी पर सबकी सृष्टि होती है, जल में वृद्धि एवं जीवन रक्षा होती है, अग्नि सबकुछ जला देती है, वायु सबको एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है, और आकाश सबको अनुगृहीत करता है।

इन पाँच कृत्यों को वहन करने के लिए शिव के पाँच मुख हैं। चार दिशाओं में चार मुख और एक मध्य में मुख है। ब्रह्मा और विष्णु ने परम् ब्रह्म से सृष्टि और स्थिति नामक दो कृत्य प्राप्त अतः दोनो ही लोग भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं।
इसी प्रकार परमब्रह्म से उनके विभूति स्वरूप 'रुद्र और महेश्वर' ने  दो कृत्य संहार और तिरोभाव प्राप्त किया है, परंतु अनुग्रह नाम का कृत्य कोई दूसरा नही पा सकता।

वह मंगलकारी मंत्र जो सबसे पहले शिव के मुख से ओंकार रूप(ॐ) प्रकट हुआ जो शिव के स्वरूप का बोध कराता है।

ओंकार वाचक और शिव वाच्य हैं।

शिव के उत्तरवर्ती मुख से 'अकार' , पश्चिम मुख से' उकार' , दक्षिण मुख से 'मकार' , पूर्व मुख से 'विंदु' था मध्य मुख से 'नाद' प्रकट हुआ। इस प्रकार पाँच अवयवों से युक्त ओंकार का विस्तार हुआ।इन सभी अवयवों से युक्त होकर वह प्रणव ' 'ॐ' नामक एकाक्षर हो गया।

यह नाम-रूपात्मक सारा जगत तथा वेद उत्पन्न स्त्री-पुरुष वर्ग दोनो कुल इस प्रणव मंत्र से व्याप्त हैं।यह मंत्र शिव और शक्ति दोनों का बोधक है।
इसी से इसी से पंचाक्षर मंत्र 'ॐ नमः शिवाय' की उत्पत्ति हुई , जो शिव के सकल रूप का बोध कराता है। वह अकारादि क्रम और मकरादी कर्म से कमशः प्रकाश में आया।

इस पंचाक्षर मंत्र से 'मातृका' वर्ण प्रकट हुए , जो पाँच भेद वाले है। *अ, ई, उ ,ऋ, लृ ये पांच मूल भूत स्वर हैं। उसी से शिरोमंत्र सहित त्रिपदा गायत्री मंत्र का उद्भव हुआ और गायत्री से सम्पूर्ण वेद प्रकट हुए, और उन वेदों से करोड़ो मंत्र प्रकट हुए।इन मन्त्रो से विभिन्न कार्यो और मनोरथों की सिद्धि होती हैं।

नमो निष्कलरूपाय नमो निष्कलतेजसे।
नमः स्कलनाथाय नमस्ते सकलात्मने।।

नमः प्रणववाच्च्याय नमः प्रणवलिंगने।
नमः सृष्टयादीकत्रे नमः पँच मुखाय ते।।

पँचब्रह्मस्वरूपाय पँचकृत्याय ते नमः।
आत्मने ब्रह्मणे तुभ्यमन्तगुणसक्तये।।

हर हर महादेव..

अनूप राय

टाइगर्स_ओवर_सरगोधा

 #टाइगर्स_ओवर_सरगोधा 1965 में भारतीय वायुसेना के पास अर्ली वॉर्निंग राडार सिस्टम नहीं थे। ये उस समय की स्टे्ट ऑफ आर्ट टेक्नोलॉजी थी लेकिन हम...