#कृषी_और_नक्षत्र_भाग_2
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एक बार भगवान इंद्र देव किसी कारणवश कुपित होकर किसानों से रूष्ट हो गए थे । उन्होने सूर्य और पवन को बुलाया और कहा कि सूर्य, आपको अत्यधिक ताप देना है धरती पर और पवन से कहा कि आपको बिल्कुल शांत गति से चलना है , फिर उन्होनें मेघ को बुलाया और कहा कि इस साल आपको अपने मेघों जल वृष्टि नही करनी है धरती पर! किसानों ने मेरा अपमान किया है, तीनो देवो ने कहा आपके आदेश का पालन होगा देवराज।
ततपश्चात सूर्य और वायु के सम्मलित प्रयास ने धरती पर भयंकर गर्मी और उमस पैदा कर दिया! सभी मनुष्य, जीव जंतु व्याकुल होकर तड़फड़ाने लगे , परन्तु इतनी अत्यधिक गर्मी में भी किसान सम्भावनाएँ तलाश रहे थे कि बस कुछ दिनों का कष्ट है लगता है इस साल अच्छी बारिश होगी।
धरती का पानी सूखने लगा, तालाब,पोखरें सब सूख गऐ। उसमे रहने वाले जीव जंतु काल का ग्रास बनने लगे !
इतनी गर्मी और जलाभाव में जमीन ले अंदर घुसे मेढ़क भी बाहर आ गए और टर्राने लगे , इतना सुनना था कि मेघ सँगठित होकर बारिश कर बैठे( मेढ़क के टर्राने से बारिश होती है ऐसी मान्यता है)।
बारिश देख कर किसानों के मन प्रफुल्लित हो उठे और खेती की तैयारियां शुरू हो गयीं!
जब इंद्र को समाचार मिला कि धरती पर बारिश हो गयी है तो इंद्र ने क्रोध में होकर मेघ को और बरसने का कारण पूछा!
तब मेघ ने कहा " मैं क्या करूँ देवराज! जब मन्डूको ने आवाज लगाई तो हमे बरसना ही था! अगर आपको मना करना है तो उन्हें मना कीजिये मैं नही जलवृष्टि करूँगा!
तब इंद्र मन्डूको के पास गए और उन्हें न बोलने का आदेश दिया।
एक दिन की बात थी एक मेढ़क को टर्राने का मन कर दिया , लेकिन वो इंद्र से डर के मारे टर्राने से डर रहा था , परन्तु उसके मन मे क्या विचार आया कि टर्रा दिया!
फिर क्या था दे झमाझम बारिश ! किसानो के मुख पर प्रसन्नता फैल गई!
जुताई होने लगी, बीज पड़ गया! तब तक इंद्र को ये बात पता चली। मारे क्रोध के लाल इंद्र वज्र लेकर मेढकों के पास पहुच गए कि आज इस प्रजाति का समूल नाश कर देना है।
सारे मेढ़क भयभीत हो गए! तब उनमें से एक बुजुर्ग मेढ़क ने कहा, आने दो इंद्र को हम बात करेंगे!
इंद्र ने आते ही कहा," जब हमने मना किया था तब तुम लोग क्यो टर्राये??
मेढ़क ने कहा, हे देवराज! पहले शांत होकर हमारी बात सुनिए।
आप किसानों से नाराज है इसके चलते आपने बारिश बन्द करा दिया है लेकिन उनलोगों के पास अगले साल के लिए भी अनाज रखा था घर मे !तो हमलोगों ने सोचा कि टर्रा के बारिश करा देते है ताकि जो घर मे अन्न है वो भी खेतो में आ जाये और फिर नष्ट हो जाये!!
मेढ़क की चतुराई भरी बाते सुनकर इंद्र खुश होकर वापस चले गए और मेढकों की जान बच गयी।
अब आते है मूल विषय पर! किसानों को अपने मौसम का पूर्वा अनुमान लगाने के लिए प्रकृति आधारित कुछ संकेतो को समझना बड़ा मुश्किल हो रहा था !
सारे श्लोक संस्कृत में थे और किसान कम पढे लिखे थे , अतः बहुत समस्या हो रही थी किसानों को समझने में !
आवश्यकता थी कि कोई इन संकेतों को सामान्य जनजीवन के भाषा मे लिपिबद्ध किया जाए तो सम्भव है कि सभी लोगो के पास मौसम पूर्वानुमान की जानकारी हो जाएगी!
इन्ही सब अनुमानों और संकेतों पर आधारित कवि घाघ के दोहे और मुहावरे लोकभाषा में बहुत प्रसिद्ध हुए।
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एक समय की बात है! एक पंडित जी को ज्योतिष का बड़ा ज्ञान था। वो एक दिन ज्योतिष के पन्नों को उलट रहे थे कि उन्हें ज्ञात हुआ कि अमुक समय मे यदि मैं किसी नारी से संसर्ग करू तो एक बहुत ही विलक्षण और प्रतिभावान पुत्र की प्राप्ति होगी।
पंडित जी ने सोचा कि क्यों न पुत्र प्राप्ति के लिए प्रयत्न किया जाए!
पंडित जी उस समय अपनी पत्नी से बहुत दूर किसी अन्य प्रदेश में थे! वो तत्काल बिना कोइ पल गवाएं वहां से अपने घर की तरफ प्रस्थान किये। पैदल चलते चलते कई दिन बीत गए , लेकिन अपने घर तक नही पहुच सके थे! रात्रि में उन्होंने ने थकान के कारण एक गांव में विश्राम करने का सोचा और एक ग्रामीण के यहां रुक गए!
रात्रि के समय तिथि और नक्षत्र देखने पर ज्ञात हुआ कि वो शुभ समय आज रात भर का ही है!
पंडित जी बड़ा चिंतित हुए की ये समय तो लगता है बीत जायेगा!
तब उन्होंने उस घर मे एक औरत को ये बात बताई और उससे संसर्ग करने को कहा!
वो स्त्री मान गयी!
अगले सुबह पंडित जी वहां से चले गए और कुछ समय पश्चात उस स्त्री को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जो देखने से ही सुंदर और अलौकिक दिखता था ।
वो बालक जैसे जैसे बड़ा हो रहा था वैसे वैसे उसकी प्रतिभा सबके सामने आ रही थी।
एक दिन अचानक पंडित जी को अपने इस पुत्र की याद आयी तो सोचे की अब वो बड़ा हो गया होगा चलो उसकी शिक्षा के लिए मैं उसे लें आऊ!
पंडित जी पहुच गए कुछ दिनो मे उस ग्रामीण के घर और पहले से तय बात के अनुसार अपने पुत्र को मांग लिया और वहां से चल दिये।
आगे पंडित जी और पीछे उनके उनका पुत्र चल रहा था! चलते चलते वो खेतो की पगडंडियों पर चलने लगे , आगे जाने पर बालक ने कहा!
पिताजी एक तरफ जौ है और एक तरफ गेहू और ये दोनों अलग अलग लोगो के हैं , तो दोनों को अलग अलग लोग ही काटेंगे न ??
पंडित जी ने कहा हा जिसका जो खेत वही फसल वो लेगा!
बालक तुरन्त बोला! लेकिन किनारे पर जौ के खेत मे थोड़ा गेहू और गेहू के खेत में थोड़ा जौ कैसे हो गया है??
पंडित जी ने कहा!बुवाई के वक्त बीज छिटक के इधर उधर हो गए है।
तब बालक ने फिर प्रश्न किया.. तब तो जौ वाला उस खेत का जौ और गेहू वाला दूसरे खेत का गेंहू काटेगा??
पंडित जी ने कहा!! नही पुत्र , जिसका खेत है वही लेगा भले बीज कही से आया हो!
तब बालक ने कहा कि हे पंडित जी आप इतने ही ज्ञानी है तो फिर हमें अपने खेत से क्योंअलग कर रहें है? मेरी माँ ने जन्म दिया है आप तो बाहर कही से आ गए थे!!
पंडित जी को अपनी गलती का आभास हुआ और उन्होंने अपने पुत्र से क्षमा मांगा और उसको उसकी मां के पास छोड़कर चले गए।
कालांतर में यही बालक आगे चलकर घाघ नाम से प्रसिद्ध हुआ।
नक्षत्रो और दिनों के बारे में बहुत सी कहावतें है जो मौसम पूर्वानुमान पर बिल्कुल सटीक उतरती है जैसे..
शुक्रवार की बादरि , रहे सनीचर छाए।
घाघ कहे सुन घाघीनी , बिन बरसे नही जाएं।।
अर्थात शुक्रवार को आसमान में बादल दिखाई दे और पूरे शनिवार को छाए रहे तो ये बिना बरसे नही जाते है।
मंगलवार परै दिवारी।
हँसे किसान रोवे व्यापारी।।
अर्थात यदि मंगलवॉर की दीवाली पड़ती है तो उस साल किसान खुशहाल और व्यापारी घाटे के जाते हैं।
माघ मास की बादरि , औ कुवार का घाम।
यह दोनों जो कोउ सहै, करे पराया काम।।
अर्थात माघ की बादल वाली ठंडक और कुवार मास का धूप जो व्यक्ति सह सकता है वो कोई भी काम कर सकता है।
सावन घोड़ी,भादो गाय,
माघ मास जो भैंस बियाय।
कहे घाघ यह सांची बात,
आपे मरे की मालिक खात।
अर्थात सावन में घोड़ी, भादो में गाय और माघ मास में भैस बच्चा देगी तो या तो अपने मर जाएगी या घर का मालिक मर जायेगा।
दिन के बद्दर ,रात निबद्दर
पुरुआ बहे झब्बर झब्बर।
घाघ कहे कुछ होनी होइ,
धोबी कुआं पर कपड़ा धोइ।
अर्थात सावन मास में यदि दिन में बादल रहता हो और रात को तारे दिखाई दे साथ मे जोर जोर से पुरवा हवा चले तो समझ लेना चाहिए कि वर्षा नही होगी और सभी तालाब , सूख जायेंगे जिसके चलते धोबी कुआ पर कपड़ा धोएगा!
उल्टा बादर जो चढ़े, विधवा खड़ी नहाय,
घाघ कहे सुन भड्डरी, वह बरसे वह जाये
अर्थात, जिस दिशा से हवा बह रही हो उसके विपरीत दिशा से बादल आकाश में चढ़ रहे हो और विधवा स्त्री खड़े होकर स्नान कर रही हो तो समझ लेना चाहिए कि बादल जरूर बरसेंगे और स्त्री किसी के साथ भाग जाएगी ।
माघ में गरमी, जेठ में जाड़।
घाघ कहे हम होब उजाड़।
अर्थात यदि माघ मास में गर्मी और जेठ में जाड़ा लगे तो समझ लेना चाहिए कि खेती चौपट है इस साल और बरसात नही होगी।
सावन पछिमा सींक डोलावे ,
सूखी नदिया नाव चलाव।
अर्थात सावन मास में पश्चिमी हवा सींक के बराबर भी बह गई तो इतनी बरसात होगी कि सूखी नदी में भी नाव चलने लंगेगी।
सावन मास बहे पुरवइया,
बरधा बेच ले आऊं धेनु गैया।
अर्थात सावन मास में यदि पुरवा हवा चल रही हो तो बरसात नही होगी अतः बैलों को बेच के गाय खरीद लेना चाहिए ताकि दूध के भरोसे जीवन यापन हो सके।
पोस्ट काफी लंबी हो गयी गई अतः शेष अगले भाग में!
क्रमशः
अनूप राय
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एक बार भगवान इंद्र देव किसी कारणवश कुपित होकर किसानों से रूष्ट हो गए थे । उन्होने सूर्य और पवन को बुलाया और कहा कि सूर्य, आपको अत्यधिक ताप देना है धरती पर और पवन से कहा कि आपको बिल्कुल शांत गति से चलना है , फिर उन्होनें मेघ को बुलाया और कहा कि इस साल आपको अपने मेघों जल वृष्टि नही करनी है धरती पर! किसानों ने मेरा अपमान किया है, तीनो देवो ने कहा आपके आदेश का पालन होगा देवराज।
ततपश्चात सूर्य और वायु के सम्मलित प्रयास ने धरती पर भयंकर गर्मी और उमस पैदा कर दिया! सभी मनुष्य, जीव जंतु व्याकुल होकर तड़फड़ाने लगे , परन्तु इतनी अत्यधिक गर्मी में भी किसान सम्भावनाएँ तलाश रहे थे कि बस कुछ दिनों का कष्ट है लगता है इस साल अच्छी बारिश होगी।
धरती का पानी सूखने लगा, तालाब,पोखरें सब सूख गऐ। उसमे रहने वाले जीव जंतु काल का ग्रास बनने लगे !
इतनी गर्मी और जलाभाव में जमीन ले अंदर घुसे मेढ़क भी बाहर आ गए और टर्राने लगे , इतना सुनना था कि मेघ सँगठित होकर बारिश कर बैठे( मेढ़क के टर्राने से बारिश होती है ऐसी मान्यता है)।
बारिश देख कर किसानों के मन प्रफुल्लित हो उठे और खेती की तैयारियां शुरू हो गयीं!
जब इंद्र को समाचार मिला कि धरती पर बारिश हो गयी है तो इंद्र ने क्रोध में होकर मेघ को और बरसने का कारण पूछा!
तब मेघ ने कहा " मैं क्या करूँ देवराज! जब मन्डूको ने आवाज लगाई तो हमे बरसना ही था! अगर आपको मना करना है तो उन्हें मना कीजिये मैं नही जलवृष्टि करूँगा!
तब इंद्र मन्डूको के पास गए और उन्हें न बोलने का आदेश दिया।
एक दिन की बात थी एक मेढ़क को टर्राने का मन कर दिया , लेकिन वो इंद्र से डर के मारे टर्राने से डर रहा था , परन्तु उसके मन मे क्या विचार आया कि टर्रा दिया!
फिर क्या था दे झमाझम बारिश ! किसानो के मुख पर प्रसन्नता फैल गई!
जुताई होने लगी, बीज पड़ गया! तब तक इंद्र को ये बात पता चली। मारे क्रोध के लाल इंद्र वज्र लेकर मेढकों के पास पहुच गए कि आज इस प्रजाति का समूल नाश कर देना है।
सारे मेढ़क भयभीत हो गए! तब उनमें से एक बुजुर्ग मेढ़क ने कहा, आने दो इंद्र को हम बात करेंगे!
इंद्र ने आते ही कहा," जब हमने मना किया था तब तुम लोग क्यो टर्राये??
मेढ़क ने कहा, हे देवराज! पहले शांत होकर हमारी बात सुनिए।
आप किसानों से नाराज है इसके चलते आपने बारिश बन्द करा दिया है लेकिन उनलोगों के पास अगले साल के लिए भी अनाज रखा था घर मे !तो हमलोगों ने सोचा कि टर्रा के बारिश करा देते है ताकि जो घर मे अन्न है वो भी खेतो में आ जाये और फिर नष्ट हो जाये!!
मेढ़क की चतुराई भरी बाते सुनकर इंद्र खुश होकर वापस चले गए और मेढकों की जान बच गयी।
अब आते है मूल विषय पर! किसानों को अपने मौसम का पूर्वा अनुमान लगाने के लिए प्रकृति आधारित कुछ संकेतो को समझना बड़ा मुश्किल हो रहा था !
सारे श्लोक संस्कृत में थे और किसान कम पढे लिखे थे , अतः बहुत समस्या हो रही थी किसानों को समझने में !
आवश्यकता थी कि कोई इन संकेतों को सामान्य जनजीवन के भाषा मे लिपिबद्ध किया जाए तो सम्भव है कि सभी लोगो के पास मौसम पूर्वानुमान की जानकारी हो जाएगी!
इन्ही सब अनुमानों और संकेतों पर आधारित कवि घाघ के दोहे और मुहावरे लोकभाषा में बहुत प्रसिद्ध हुए।
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एक समय की बात है! एक पंडित जी को ज्योतिष का बड़ा ज्ञान था। वो एक दिन ज्योतिष के पन्नों को उलट रहे थे कि उन्हें ज्ञात हुआ कि अमुक समय मे यदि मैं किसी नारी से संसर्ग करू तो एक बहुत ही विलक्षण और प्रतिभावान पुत्र की प्राप्ति होगी।
पंडित जी ने सोचा कि क्यों न पुत्र प्राप्ति के लिए प्रयत्न किया जाए!
पंडित जी उस समय अपनी पत्नी से बहुत दूर किसी अन्य प्रदेश में थे! वो तत्काल बिना कोइ पल गवाएं वहां से अपने घर की तरफ प्रस्थान किये। पैदल चलते चलते कई दिन बीत गए , लेकिन अपने घर तक नही पहुच सके थे! रात्रि में उन्होंने ने थकान के कारण एक गांव में विश्राम करने का सोचा और एक ग्रामीण के यहां रुक गए!
रात्रि के समय तिथि और नक्षत्र देखने पर ज्ञात हुआ कि वो शुभ समय आज रात भर का ही है!
पंडित जी बड़ा चिंतित हुए की ये समय तो लगता है बीत जायेगा!
तब उन्होंने उस घर मे एक औरत को ये बात बताई और उससे संसर्ग करने को कहा!
वो स्त्री मान गयी!
अगले सुबह पंडित जी वहां से चले गए और कुछ समय पश्चात उस स्त्री को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जो देखने से ही सुंदर और अलौकिक दिखता था ।
वो बालक जैसे जैसे बड़ा हो रहा था वैसे वैसे उसकी प्रतिभा सबके सामने आ रही थी।
एक दिन अचानक पंडित जी को अपने इस पुत्र की याद आयी तो सोचे की अब वो बड़ा हो गया होगा चलो उसकी शिक्षा के लिए मैं उसे लें आऊ!
पंडित जी पहुच गए कुछ दिनो मे उस ग्रामीण के घर और पहले से तय बात के अनुसार अपने पुत्र को मांग लिया और वहां से चल दिये।
आगे पंडित जी और पीछे उनके उनका पुत्र चल रहा था! चलते चलते वो खेतो की पगडंडियों पर चलने लगे , आगे जाने पर बालक ने कहा!
पिताजी एक तरफ जौ है और एक तरफ गेहू और ये दोनों अलग अलग लोगो के हैं , तो दोनों को अलग अलग लोग ही काटेंगे न ??
पंडित जी ने कहा हा जिसका जो खेत वही फसल वो लेगा!
बालक तुरन्त बोला! लेकिन किनारे पर जौ के खेत मे थोड़ा गेहू और गेहू के खेत में थोड़ा जौ कैसे हो गया है??
पंडित जी ने कहा!बुवाई के वक्त बीज छिटक के इधर उधर हो गए है।
तब बालक ने फिर प्रश्न किया.. तब तो जौ वाला उस खेत का जौ और गेहू वाला दूसरे खेत का गेंहू काटेगा??
पंडित जी ने कहा!! नही पुत्र , जिसका खेत है वही लेगा भले बीज कही से आया हो!
तब बालक ने कहा कि हे पंडित जी आप इतने ही ज्ञानी है तो फिर हमें अपने खेत से क्योंअलग कर रहें है? मेरी माँ ने जन्म दिया है आप तो बाहर कही से आ गए थे!!
पंडित जी को अपनी गलती का आभास हुआ और उन्होंने अपने पुत्र से क्षमा मांगा और उसको उसकी मां के पास छोड़कर चले गए।
कालांतर में यही बालक आगे चलकर घाघ नाम से प्रसिद्ध हुआ।
नक्षत्रो और दिनों के बारे में बहुत सी कहावतें है जो मौसम पूर्वानुमान पर बिल्कुल सटीक उतरती है जैसे..
शुक्रवार की बादरि , रहे सनीचर छाए।
घाघ कहे सुन घाघीनी , बिन बरसे नही जाएं।।
अर्थात शुक्रवार को आसमान में बादल दिखाई दे और पूरे शनिवार को छाए रहे तो ये बिना बरसे नही जाते है।
मंगलवार परै दिवारी।
हँसे किसान रोवे व्यापारी।।
अर्थात यदि मंगलवॉर की दीवाली पड़ती है तो उस साल किसान खुशहाल और व्यापारी घाटे के जाते हैं।
माघ मास की बादरि , औ कुवार का घाम।
यह दोनों जो कोउ सहै, करे पराया काम।।
अर्थात माघ की बादल वाली ठंडक और कुवार मास का धूप जो व्यक्ति सह सकता है वो कोई भी काम कर सकता है।
सावन घोड़ी,भादो गाय,
माघ मास जो भैंस बियाय।
कहे घाघ यह सांची बात,
आपे मरे की मालिक खात।
अर्थात सावन में घोड़ी, भादो में गाय और माघ मास में भैस बच्चा देगी तो या तो अपने मर जाएगी या घर का मालिक मर जायेगा।
दिन के बद्दर ,रात निबद्दर
पुरुआ बहे झब्बर झब्बर।
घाघ कहे कुछ होनी होइ,
धोबी कुआं पर कपड़ा धोइ।
अर्थात सावन मास में यदि दिन में बादल रहता हो और रात को तारे दिखाई दे साथ मे जोर जोर से पुरवा हवा चले तो समझ लेना चाहिए कि वर्षा नही होगी और सभी तालाब , सूख जायेंगे जिसके चलते धोबी कुआ पर कपड़ा धोएगा!
उल्टा बादर जो चढ़े, विधवा खड़ी नहाय,
घाघ कहे सुन भड्डरी, वह बरसे वह जाये
अर्थात, जिस दिशा से हवा बह रही हो उसके विपरीत दिशा से बादल आकाश में चढ़ रहे हो और विधवा स्त्री खड़े होकर स्नान कर रही हो तो समझ लेना चाहिए कि बादल जरूर बरसेंगे और स्त्री किसी के साथ भाग जाएगी ।
माघ में गरमी, जेठ में जाड़।
घाघ कहे हम होब उजाड़।
अर्थात यदि माघ मास में गर्मी और जेठ में जाड़ा लगे तो समझ लेना चाहिए कि खेती चौपट है इस साल और बरसात नही होगी।
सावन पछिमा सींक डोलावे ,
सूखी नदिया नाव चलाव।
अर्थात सावन मास में पश्चिमी हवा सींक के बराबर भी बह गई तो इतनी बरसात होगी कि सूखी नदी में भी नाव चलने लंगेगी।
सावन मास बहे पुरवइया,
बरधा बेच ले आऊं धेनु गैया।
अर्थात सावन मास में यदि पुरवा हवा चल रही हो तो बरसात नही होगी अतः बैलों को बेच के गाय खरीद लेना चाहिए ताकि दूध के भरोसे जीवन यापन हो सके।
पोस्ट काफी लंबी हो गयी गई अतः शेष अगले भाग में!
क्रमशः
अनूप राय
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