Wednesday, 10 January 2018

हास्य

#हास्य_व्यंग्य😂😂

बहुत समय पहले की बात है, एक जंगल मे बहुत प्रकार के जीव, जंतु रहते थे। हाथी, घोड़ा शेर, सियार, गधा, बैल इत्यादि!
सबमें आपस मे बहुत प्रेम रहता था। सब लोग जानते ही है कि जंगल का राजा शेर ही होता है, परन्तु एक रंगा सियार के दिमाग मे यह बात घर कर गयी कि हमसे बुद्धिमान इस जंगल मे कोई नही है अतः राजा हमें होना चाहिए?

अतः उसने जंगल से कुछ दूर एक अच्छा सा चबूतरा बनवाया और नाना तरह के मूल्यवान घाँस-फूँस से (आडम्बरों) से उसे छा दिया।अपने कानों में दो सोने के कुंडल पहन लिया, सुंदर वस्त्र पहन लिए और आकर चबूतरे पर बैठ गया। उसके चबूतरे के सामने एक नदी थी, उसमें सारे जीव-जंतु आकर पानी पीते थे। उस दिन भी प्यास लगने के कारण जीव-जंतु आने लगे पानी के लिए तो रंगे सियार ने रोक दिया और कहा मैं राजा हूं यहां का इसलिए जो मैं कह रहा हूं कहो तभी पानी पीने दूँगा! अन्यथा अपने राज्य से बाहर निकाल दूँगा!

सियार ने कहा,

सोने के चबूतरा, रुपे छावल बा।
दुनो काने मोहर माला, राजा बइठल बा।।

अब जिसको प्यास लगी हो कौन बहस करने जाए वो बोल देता था, और सियार खुश होकर पानी पीने देता था।

इसी प्रकार समय बीतता गया और रोज का यहि काम हो गया! सियार के कुछ मित्र भी थे एक बैल, एक शेर, एक गधा, एक तोता, एक कबूतर, और भी बहुत सारे थे जो उस सियार से प्रेम करते थे और उसकी हर बात मानते थे।
सियार खुश था कि कई प्रकार के जानवर हमारे मित्र हैं अतः हमसे कोई कुछ बोलेगा नहीं।

समय बीतता गया, सियार का अहंकार बढ़ता गया। एक समय ऐसा आया कि उसे लगा कि जो कुछ मेरा सम्मान है सब मेरे द्वारा है ये लोग तो बस बेकार है, और उम्मीद करने लगा कि मेरे मित्र भी ये आरती गाये।

अब वो अपने मित्रों की शिकायत करने लगा और लोगों से।
कहते है इश्क और मुश्क छुपाए नही छुपता, एक दिन सारे मित्रों को ये बात पता चली, और कोई तो कुछ नही बोला लेकिन बैल तो बैल बुद्धि, दिन भर खेती किसानी में लीन, वो लड़ बैठा।
तब सियार ने कहा कि ये तो धन्य, धान और प्रसिद्धि देख रहे हो न बहुत मेहनत लगता है कमाने में, तुम क्या जानो इसका मोल, और हां अगर यहां रहना है और पानी पीना है तो ये आरती गाओ!

सोने के चबूतरा, रुपे छावल बा।
दुनो काने मोहर माला, राजा बइठल बा।।

तब बैल बोला ठीक है सुनो अहंकारी राजा,

" माटी के चबूतरा, मड़ई छावल बा, दुनो काने मेंगुची टँगले, सियरा बइठल बा😂 "

अब सियार का भेद खुल गया था लेकिन वह थेथरई पर उतर आया और बैल से उलट कर बोला

" मेरी कुछ इज्ज़त है जंगल में। सबके सामने तुम मुझे ऐसे कहोगे तो जानवर क्या कहेंगे कि राजा की यही इज्ज़त है मित्रों में। "

बात बढ़ती देख शांत प्रकृति गदहे ने सियार को समझाना चाहा तो सियार ने उसकी बड़ी निर्लज्जता से बेईज्ज़ती कर दी। गदहा क्रोध में उबल पड़ा लेकिन शेर ने उसे रोक कर जब सियार को टोका तो मनोविज्ञान समझने वाले शातिर सियार ने उसकी बात का जवाब ही नहीं दिया। अब गदहे का धैर्य चुक गया था और उसने जो जोर की दुलत्ती झाड़ी की सियार 50 हाथ दूर जाकर गिरा। गिरने के बाद वह लजाया, शरमाया और मुंह चुरा के निकल भागा किसी अगले राज्य की ओर चाटुकार ढूंढने।

भावार्थ यह है कि यदि कोई मित्र प्रेम-वश कुछ नहीं कहता तो इसका मतलब यह नहीं कि वो अज्ञानी है, उसके पास भी मस्तिष्क है सही-गलत में पहचानने का। यदि आपकी ग़लती पर टोक दे या लड़ ही ले तो स्वीकार करिये, न कि दम्भी बन जाइए।

और इसमें कोई दो 'राय' नहीं कि गधे की उतनी ही उपयोगिता है जितना अन्य की, क्योंकि यहां "राय" तो एक ही हैं।

यहां लोक कहावत लिख रहा हूँ अगर समझ मे आये तो मन में हँस लीजियेगा!

छोटी गो चिरई, खइली खर।
गा@#! में अटकल गइली मर।।

अनूप राय

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