#महाभारत
#भाग_एक
युद्ध की पूर्व संध्या का समय था, शिविर में कृष्ण के साथ युधिष्टिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, सेनापति धृष्टधुम्न , राजा विराट और राजा द्रुपद बैठे हुए थे ! युधिष्टिर का मन कल के युद्ध को लेकर बहुत सी उद्विग्न था!
कौरव सेना ग्यारह अक्षोहिणी थी, साथ मे इच्छामृत्यु का वरदान पाए महाबली भीष्म, आचार्य द्रोण, अश्वस्थामा, शल्य,कृपाचार्य, जो स्वयं में दिव्यास्त्रों के ज्ञाता थे ,उनसे युद्ध होने वाला था।
चिंतित देख कर अर्जुन पूछते है! कि भ्राता श्री क्या बात है आप चिंतित क्यों है?
आपको महाबली भीम औ मेरे रहते तनिक भी व्याकुलता शोभा नही देती, और जिंसके ऊपर स्वयं केशव का वरदहस्त हो उसका काल भी कुछ खंडित नही कर सकता।
तब युधिष्टिर ने कहा, धनंजय ! तुम तो जानते ही हो कि हमारी सेना शत्रुओ की तुलना में कम है और बड़ी सेना से छोटी सेना का युद्ध करना हमेशा हानिकारक होता है। इस लिए कल के लिए कोई ऐसा व्यूह बनाओ जिससे हमारी सेना की सुरक्षा हो सके।
तब अर्जुन अपने जैविक पिता इंद्र द्वारा सिखाया गया व्यूह "वज्र" नामक अभेद्य दुर्ग की संरचना का प्रस्ताव सेनापति धृष्टद्युम्न के सामने रखते है । जिसे स्वीकार कर लिया जाता है।
प्रातःकाल सेना को वज्र व्यूह में सुव्यवस्तिथ किया जाता है! जब सेना चलती है तो लगता है कि जैसे उसके चारो तरफ काल का मुख खुला है और हर मुख पर अभेद्य योद्धाओं की फौज खड़ी है जिसे पराजित नही किया जा सकता! सेना भय की आशंका से शून्य हो चुकी है।
पांडव सेना बाढ़ में उफनाई हुई गंगा नदी की भांति युद्ध क्षेत्र में कौरव सेना की तरफ आगे बढ़ रही है। भीमसेन, नकुल, सहदेव ,धृष्टद्युम्न और धृष्टकेतु सेना के अग्रभाग में चल रहे हैं।
ठीक उनके पीछे राजा विराट अपने पुत्र और भाई के साथ एक अक्षोहिणी सेना के साथ उनका साथ दे रहे हैं।
नकुल और सहदेव भीमसेन की सहायता के लिए उनके अगल बगल चल रहे हैं।
अभिमन्यु के साथ द्रौपदी के पांचों पुत्र मध्यभाग में व्यूह की सुरक्षा के लिय कटिबद्ध हैं।
अंत मे अर्जुन के साथ शिखंडी है जो अपने मौके की तलाश में है कि कब भीष्म का वध किया जाए, साथ मे कैकेय धृष्टकेतु और चेकितान अर्जुन की रक्षा के लिए नियुक्त है । सबसे अंत मे व्यूह रक्षा के लिए सात्यकि, युधामन्यु, और उत्तमौजा उपस्थित है।
जब सेनाएं चलने लगी तो आँधियों के गुबार हवा में उठ गए और आकाश में तड़िकाये चमकने लगी! अचानक उल्कापात होकर धरती में विलीन हो गया।
धूल कणों के अंबार से पूरे युद्ध क्षेत्र में अंधकार छा गया।
युद्ध के मैदान में दोनों सेनाएं कुछ देर के बाद आमने सामने खड़ी थी! कौरव सेना विशाल दैत्यराज की सेना के समान जान पड़ती थी। और पांडवों की सेना देवराज इंद्र के समान जान पड़ती थी
कौरव सेना में एक लाख हाथी थे, प्रत्येक हाथी पर सौ सौ रथ खड़े थे, एक एक रथ पर सौ सौ घोड़े खड़े थे, और प्रत्येक घोड़े के साथ दस दस धनुर्धर खड़े थे। महाबली भीष्म के सेनापतित्व में यह सेना काल के समान दिख रही थी परन्तु सामने की सेना में स्वयं भगवान कृष्ण उपस्थित थे तो काल भी क्या कर सकता है ये बात स्वयम भीष्म जानते थे।
युद्ध अब कुछ ही क्षणों में आरंभ होने वाला था कि अचानक महाराज युधिष्टिर अपने रथ से उतर कर कौरव सेना की तरफ निशस्त्र होकर चल दिये! ऐसा देख कर सारे भाई अपने अग्रज की सुरक्षा हेतु उनके पीछे पीछे चल पड़े!
कौरव सेना भी आश्चर्य में पड़ गयी, परन्तु भीष्म इसका आशय जान कर मुस्करा रहे रहे।
कौरव सेना भाती भातिं का हास्य करने लगी यधिष्ठिर को देखकर,
दुर्योधन उन्हें भीरू कहते हुए कहता है कि लगता है कि हमारे सेना के बल और पराक्रम को देख कर पहले ही डर गए भ्राता ।
कुछ समय पश्चात युधिष्ठिर पितामह भीष्म के सामने खड़े रहे और प्रणाम करने पश्चात आशीर्वाद मांगा!
भीष्म ने कहा- विजयी भव पुत्र, अगर आज तुम युद्ध से पहले हमसे आज्ञा न मांगते तो मैं तुम्हे श्राप दे देता!
इन सब बातों को सुनकर बगल में रथ पर आरूढ़ दुर्योधन के अंदर अग्नि की ज्वाला धड़कने लगी।
इसी प्रकार क्रम से गुरु द्रोण , कृपाचार्य, और शल्य को भी प्रणाम करते है और विजय श्री का आशिर्वाद लेते हुए लौट आते हैं।
रथ पर आरूढ़ होकर युधिष्टिर दोनो पक्षों के योद्धाओं को सम्बोधित करते हुए एक बार फिर से अपना पक्ष चुनने का अंतिम अवसर देते है तब दुर्योधन का सौतेला भाई युयुत्सु अपना रथ लेकर पांडव सेना की तरफ जा खड़ा होता है।
युयुत्सु के आने पर युधिष्टिर युयुत्सु का स्वागत करते है और अपनी ओर से युद्ध करने का आमंत्रण देते है।
तब दोनो सेनाओं के सेनापति युद्धकी घोषणा करते हुए अपने शंख को बजाते है और युद्ध शुरू होता है।
कौरव सेना में भीम आगे आगे गर्जना करते हुए चल रहे हैं, और कौरव की ओर से भीष्म आगे है। दोनो सेना एक दूसरे से लताओं की तरह लिपट सी गयी है,चारो तरफ चीत्कार मची हुई है, भीम की गर्जना सुन कर शत्रु सेना के जानवरों के मल मूत्र निकलने लगते है।
तभी दुर्योधन, दुर्मुख दुःसह, शल, दुशाशन, दुर्मुर्षण, विविशन्ति, चित्रसेन, विकर्ण, पुरुमित्र, जय, भोज, और सोमदत्त का पुत्र विशेश्रवा आगे आकर अग्नि और भयंकर विषधरो के समान बाणों की बर्षा करके युद्ध क्षेत्र को आच्छादित कर देते है।
दूसरी तरफ अभिमन्यु , नकुल, सहदेव, और धृष्टद्युम्न अपने भयंकर बाणों से शत्रुओ की सेना का दमन करते हुए आगे बढ़ रहे है!
अभिमन्यु को देख कर लग रहा है कि उसके बाणों पर साक्षात यमराज अपना कालदण्ड लेकर बैठे हैं! पूरे युद्ध क्षेत्र में उसके जैसा धनुधारी दिखाई नही दे रहा है, एक साथ विद्युत गति से सैकङो बाणों को शत्रुओ पर धनुष से प्रक्षेपित कर रहे और उन्हें काल के घाट उतार रहे।
क्रमशः
अनूप राय
10/8/ 2018