Thursday, 16 August 2018

कविता

नभ मे काले मेघ छा गए,
लगा पसरने घोर तिमिर।
दसों दिशाएं क्रंदन करती,
 सड़के बन बैठी नदी  तीर

तुम शब्दो के थे शूरवीर,
इच्छाशक्ति जैसे ब्रह्मशीर,
हे जन नायक हे रामभक्त,
तुझको खोकर हम हुए असक्त

हे राजनीति के अजातशत्रु,
तुम मर्यादा मुरुषोत्तम थे,
अपयश भी तुमको छू न  सका,
अरि भी जैसे नतमस्तक थे,

चीत्कार कर रहा है पूरा देश,
तुम बिन अब कुछ रहा न शेष,
हे इस युगद्रष्टा हे परमहंस,
फिर आना होगा अपने देश,

फिर आना होगा अपने देश।

सद्यजात
© अनूप राय

Friday, 10 August 2018

धर्म

#महाभारत

#भाग_एक

युद्ध की पूर्व संध्या का समय था, शिविर में कृष्ण के साथ युधिष्टिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, सेनापति धृष्टधुम्न , राजा विराट और राजा द्रुपद बैठे हुए थे ! युधिष्टिर का मन कल के युद्ध को लेकर बहुत सी उद्विग्न था!

कौरव सेना ग्यारह अक्षोहिणी थी, साथ मे इच्छामृत्यु का वरदान पाए महाबली भीष्म, आचार्य द्रोण, अश्वस्थामा, शल्य,कृपाचार्य, जो स्वयं में दिव्यास्त्रों के ज्ञाता थे ,उनसे युद्ध होने वाला था।
चिंतित देख कर अर्जुन पूछते है! कि भ्राता श्री क्या बात है आप चिंतित क्यों है?

आपको महाबली भीम औ मेरे रहते तनिक भी व्याकुलता शोभा नही देती, और जिंसके ऊपर स्वयं केशव का वरदहस्त हो उसका काल भी कुछ खंडित नही कर सकता।

तब युधिष्टिर ने कहा, धनंजय ! तुम तो जानते ही हो कि हमारी सेना शत्रुओ की तुलना में कम है और बड़ी सेना से छोटी सेना का युद्ध करना हमेशा हानिकारक होता है। इस लिए कल के लिए कोई ऐसा व्यूह बनाओ जिससे हमारी सेना की सुरक्षा हो सके।

तब अर्जुन अपने जैविक पिता इंद्र द्वारा सिखाया गया व्यूह "वज्र" नामक अभेद्य दुर्ग की संरचना का प्रस्ताव सेनापति धृष्टद्युम्न के सामने रखते है । जिसे स्वीकार कर लिया जाता है।

प्रातःकाल  सेना को वज्र व्यूह में सुव्यवस्तिथ किया जाता है! जब सेना चलती है तो लगता है कि जैसे उसके चारो तरफ काल का मुख खुला है और हर मुख पर अभेद्य योद्धाओं की फौज खड़ी है जिसे पराजित नही किया जा सकता! सेना भय की आशंका से शून्य हो चुकी है।

पांडव सेना बाढ़ में उफनाई हुई गंगा नदी की भांति युद्ध क्षेत्र में कौरव सेना की तरफ आगे बढ़ रही है। भीमसेन, नकुल, सहदेव ,धृष्टद्युम्न और धृष्टकेतु सेना के अग्रभाग में चल रहे हैं।
ठीक उनके पीछे राजा विराट अपने पुत्र और भाई के साथ एक अक्षोहिणी सेना के साथ उनका साथ दे रहे हैं।
नकुल और सहदेव भीमसेन की सहायता के लिए उनके अगल बगल चल रहे हैं।
अभिमन्यु के साथ द्रौपदी के पांचों पुत्र मध्यभाग में व्यूह की सुरक्षा के लिय कटिबद्ध हैं।

अंत मे अर्जुन के साथ शिखंडी है जो अपने मौके की तलाश में है कि कब भीष्म का वध किया जाए, साथ मे कैकेय धृष्टकेतु और चेकितान अर्जुन की रक्षा के लिए नियुक्त है । सबसे अंत मे व्यूह रक्षा के लिए सात्यकि, युधामन्यु, और उत्तमौजा उपस्थित है।
जब सेनाएं चलने लगी तो आँधियों के गुबार हवा में उठ गए और आकाश में तड़िकाये चमकने लगी! अचानक उल्कापात होकर धरती में विलीन हो गया।
धूल कणों के अंबार से पूरे युद्ध क्षेत्र में अंधकार छा गया।

युद्ध के मैदान में दोनों सेनाएं कुछ देर के बाद आमने सामने खड़ी थी! कौरव सेना विशाल दैत्यराज की सेना के समान जान पड़ती थी। और पांडवों की सेना देवराज इंद्र के समान जान पड़ती थी

कौरव सेना में एक लाख हाथी थे, प्रत्येक हाथी पर सौ सौ रथ खड़े थे, एक एक रथ पर सौ सौ घोड़े खड़े थे, और प्रत्येक घोड़े के साथ दस दस धनुर्धर खड़े थे। महाबली भीष्म के सेनापतित्व में यह सेना काल के समान दिख रही थी परन्तु सामने की सेना में स्वयं भगवान कृष्ण उपस्थित थे तो काल भी क्या कर सकता है ये बात स्वयम भीष्म जानते थे।

युद्ध अब कुछ ही क्षणों में आरंभ होने वाला था कि अचानक महाराज युधिष्टिर अपने रथ से उतर कर कौरव सेना की तरफ निशस्त्र होकर चल दिये! ऐसा देख कर सारे भाई अपने अग्रज की सुरक्षा हेतु उनके पीछे पीछे चल पड़े!

कौरव सेना भी आश्चर्य में पड़ गयी, परन्तु भीष्म इसका आशय जान कर मुस्करा रहे रहे।
कौरव सेना भाती भातिं का हास्य करने लगी यधिष्ठिर को देखकर,
दुर्योधन उन्हें भीरू कहते हुए कहता है कि  लगता है कि हमारे सेना के बल और पराक्रम को देख कर पहले ही डर गए भ्राता ।

कुछ समय पश्चात युधिष्ठिर पितामह भीष्म के सामने खड़े रहे और प्रणाम करने पश्चात आशीर्वाद मांगा!
भीष्म ने कहा- विजयी भव पुत्र, अगर आज तुम युद्ध से पहले हमसे आज्ञा न मांगते तो मैं तुम्हे श्राप दे देता!

इन सब बातों को सुनकर बगल में रथ पर आरूढ़ दुर्योधन के अंदर अग्नि की ज्वाला धड़कने लगी।
इसी प्रकार क्रम से गुरु द्रोण , कृपाचार्य, और शल्य को भी प्रणाम करते है और विजय श्री का आशिर्वाद लेते हुए लौट आते हैं।

रथ पर आरूढ़ होकर युधिष्टिर दोनो पक्षों के योद्धाओं को सम्बोधित करते हुए एक बार फिर से अपना पक्ष चुनने का अंतिम अवसर देते है तब दुर्योधन का सौतेला भाई युयुत्सु अपना रथ लेकर पांडव सेना की तरफ जा खड़ा होता है।

युयुत्सु के आने पर युधिष्टिर युयुत्सु का स्वागत करते है और अपनी ओर से युद्ध करने का आमंत्रण देते है।
तब दोनो सेनाओं के सेनापति युद्धकी घोषणा करते हुए अपने शंख को बजाते है  और युद्ध शुरू होता है।
कौरव सेना में भीम आगे आगे गर्जना करते हुए चल रहे हैं, और कौरव की ओर से भीष्म आगे है। दोनो सेना एक दूसरे से लताओं की तरह लिपट सी गयी है,चारो तरफ चीत्कार मची हुई है, भीम की गर्जना सुन कर शत्रु सेना के जानवरों के मल मूत्र निकलने लगते है।

तभी दुर्योधन, दुर्मुख दुःसह, शल, दुशाशन, दुर्मुर्षण, विविशन्ति, चित्रसेन, विकर्ण, पुरुमित्र, जय, भोज, और सोमदत्त का पुत्र विशेश्रवा आगे आकर अग्नि और भयंकर विषधरो के समान बाणों की बर्षा करके युद्ध क्षेत्र को आच्छादित कर देते है।
दूसरी तरफ अभिमन्यु , नकुल, सहदेव, और धृष्टद्युम्न अपने भयंकर बाणों से शत्रुओ की सेना का दमन करते हुए आगे बढ़ रहे है!
अभिमन्यु को देख कर लग रहा है कि उसके बाणों पर साक्षात यमराज अपना कालदण्ड लेकर बैठे हैं! पूरे युद्ध क्षेत्र में उसके जैसा धनुधारी दिखाई नही दे रहा है, एक साथ विद्युत गति से सैकङो बाणों को शत्रुओ पर  धनुष से प्रक्षेपित कर रहे और उन्हें काल के घाट उतार रहे।

क्रमशः

अनूप राय
10/8/ 2018

हेल्थ

#जेनरिक_बनाम_ब्रांडेड
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दवाएं हमारे अनमोल जीवन को बचाने में अहम भूमिका निभाती हैं। लेकिन, जब इन दवाओं में घालमेल होने लगे, कालाबाजारी का साया मंडराने लगे तो फिर जिंदगी पर ग्रहण लग जाता है! अफसोस है कि तमाम कवायदों के बावजूद भी गरीब को सस्ती से सस्ती दवा उपलब्ध कराने की सरकारी पहल भी धरातल पर खरी नहीं उतर पाई थी ! दवा में 'ब्रांडिंग' के नाम पर देश की गरीब जनता को लूटने का खेल जारी है...

बीमारी से ज्यादा आम आदमी 'महंगी दवाओं' के बोझ से दब रहा है। प्राइवेट दवा कपंनियों की तादाद बढ़ती जा रही है। ब्रांडिंग के खेल में जेनरिक दवाओं के महत्व को दबाया जा रहा है। जीवनदाता सफेदपोश डॉक्टरों का 'कमिशन' कई गुना बढ़ गया है। प्राइवेट दवा कंपनियों के मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव की घुसपैठ सरकारी अस्पतालों के अंदर खाने तक हो गई है और लूट का कारोबार चरम पर है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि मरीज को सस्ती दवा कैसे मिले?

जिस दिन इस देश में डॉक्टर दवाओं की बढ़ती कीमतों पर सवाल उठाना शुरू कर देंगे और दवा कंपनियों से अपना 'कट' लेना छोड़ देंगे, दवा खुद-ब-खुद सस्ती हो जाएगी। देश को 'ब्रांड' की नहीं दवा की जरूरत है। लेकिन निजी दवा कंपनियां, दवा में ब्रांडिंग के नाम पर देश को लूट रही हैं।

एक-दो दवा कंपनियों को छोड़ दिया जाए तो किसी के पास अपना रिसर्च प्रोडक्ट तक नहीं है। देश में 95 प्रतिशत बीमारियों का इलाज जेनरिक (पेटेंट फ्री) दवाओं से हो रहा है। फिर भी दवाएं महंगी हैं!

ब्रांड के नाम पर लूट का खेल! दरअसल, यह पूरा खेल ही घालमेल का है। प्राइवेट दवा कंपनियां जेनरिक और एथिकल (ब्रैंडेड) दोनों तरह की दवाएं बनाती हैं। दोनों की कंपोजिशन समान होती है और इन्हें बनाने में कोई फर्क नहीं होता है। यहां तक कि दोनों की गुणवत्ता और परफॉर्मेंस भी बराबर होती है। फर्क सिर्फ इतना है कि 'जेनरिक' दवाओं की मार्केटिंग और ब्रांडिंग पर दवा कंपनियां पैसा खर्च नहीं करती हैं और इन्हें अपनी लागत मूल्य के बाद कुछ प्रोफिट के साथ बेच देती हैं, जबकि, ब्रांडेड दवाओं के लिए जमकर मार्केटिंग की जाती है। दवा कंपनियों के एमआर डॉक्टरों को इन दवाओं को ज्यादा से ज्यादा मरीजों को प्रेस्क्राइब करने के लिए 10 से 40 फीसदी तक कमीशन और तरह-तरह के गिफ्टों से नवाजते हैं।

इसके चलते ही इन दवाओं की कीमत काफी बढ़ जाती है। आरटीआई कार्यकर्ता विनय के मुताबिक, बाजार में 80 फीसदी लोग जो खुद से दवा खरीद कर खाते हैं वो 'जेनरिक' दवा ही तो है। साल 2008 में कांग्रेसी सरकार ने जेनरिक को बढ़ावा देने के लिए जन औषधालय तो खोल दिेए लेकिन उसके मंत्रियो के भ्रष्टाचार और अदूरदर्शिता ने इस प्रोजेक्ट का सत्यानाश कर दिया  और 6 साल बाद 2014 तक एक पत्ता तक नहीं मिला गरीबों को।

आज डॉक्टर एक पर्टिकुलर ब्रांड लिखता है, केमिस्ट पर्टिकुलर ब्रांड बेचता है, मरीज पर्टिकुलर ब्रांड खाता है और एक पर्टिकुलर दवा कंपनी को इसका मुनाफा मिलता है।

गरीबी अपने आप में बीमारियों का समुच्चय है। अगर आकंड़ों को देखें तो करीब 3 से 4 फीसदी लोग दवा महंगी होने की वजह से गरीबी रेखा से नहीं उबर पा रहे हैं। मतलब साफ है प्रतिवर्ष चार से पांच करोड़ लोग सिर्फ इसलिए गरीबी रेखा से नहीं निकल पा रहे हैं क्योंकि देश में स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है और दवा की कीमतें आसमान छू रही हैं?

क्या टाइम फ्रेम में बांधकर बीमारियों को देश में पटका जाता है?

जानकार अंतरराष्ट्रीय साजिश के तहत भी बीमारियों को लाए जाने की आशंका व्यक्त करते हैं। कई बार एक टाइम फ्रेम में बांधकर बीमारियों को देश में पटका जाता है। यह भी दवाओं को बेचने और बिकवाने का ही खेल है। बीमारी से ज्यादा प्रोपोगेंडा होता है। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि बीमारी नहीं है। बीमारी से ज्यादा माहौल है, जिसे हम स्वाइन फ्लू के वक्त देख चुके हैं। स्वाइन फ्लू के वक्त इस तरह का माहौल बना की 'मिनिमम किट निर्धारित हो गई'। यह किट खूब बिकी भी, लेकिन यहां इस बात पर गौर करना जरूरी है कि किन इलाकों में यह किट सबसे ज्यादा बिकी? यह किट उन्हीं इलाकों में बिकी जहां लोगों की 'बाइंग कैपिसिटी' ज्यादा थी। इस तरह भी दवाओं को बेचने और बिकवाने का 'हिडन खेल' चलता है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में अभी तक कुल मिलाकर 12-13 दवाएं ही ईजाद हुई हैं। देश में 35 हजार करोड़ का हेल्थ बजट पास होता है। लेकिन, उसका आउटपुट क्या है? बीमारियां की संख्या लगातर बढ़ रही है। पोलियो और गिनी वर्म डिजीज को छोड़ दें तो हम किस बीमारी को देश से भगाने में सफल हुए हैं? भारत में पांच सरकारी दवा कंपनियां हैं और इनका सालाना टर्नओवर 600 करोड़ से भी कम है। जबकि इस देश का घरेलू दवा बाजार की बात करें तो वह 70 हजार करोड़ से भी ज्यादा का हो गया है। ऐसे में सरकार की भागीदारी 600 करोड़ से भी कम है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि दवा के क्षेत्र में सरकार का दखल कितना कम है?

सरकार, दवा को छोड़कर देश में सरकारी अस्पताल बना रही है, डॉक्टरों को बहाल कर रही है लेकिन सरकारी दवा की दुकानों को खोलने की दिशा में किसी भी तरह का प्रयास नहीं देखा जा रहा है। ऐसे में यह सवाल उचित ही है कि जब इस देश के गली-गली में सरकारी शराब की दुकान हो सकती है तो सरकारी दवा की क्यों नहीं?

कई बार तो ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं की कीमतों में नब्बे प्रतिशत तक का फर्क होता है। जैसे यदि ब्रांडेड दवाई की 14 गोलियों का एक पत्ता 786 रुपये का है, तो एक गोली की कीमत करीब 55 रुपये हुई। इसी सॉल्ट की जेनेरिक दवा की 10 गोलियों का पत्ता सिर्फ 59 रुपये में ही उपलब्ध है, यानी इसकी एक गोली करीब 6 रुपये में ही पड़ेगी। खास बात यह है कि किडनी, यूरिन, बर्न, दिल संबंधी रोग, न्यूरोलोजी, डायबिटीज जैसी बीमारियों में तो ब्रांडेड व जेनेरिक दवा की कीमत में बहुत ही ज्यादा अंतर देखने को मिलता है।

दवा कम्पनियां ब्रांडेड दवा से बड़ा मुनाफा कमाती हैं। दवाओं की कंपनियां अपने मेडिकल रिप्रजेंटेटिव्ज के जरिए डॉक्टरों को अपनी ब्रांडेड दवा लिखने के लिए खासे लाभ देती हैं। इसी आधार पर डॉक्टरों के नजदीकी मेडिकल स्टोर को दवा की आपूर्ति होती है। यही वजह है कि ब्रांडेड दवाओं का कारोबार दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है। यही वजह है कि डॉक्टर जेनेरिक दवा लिखते ही नहीं हैं। जानकारी होने पर कोई व्यक्ति अगर केमिस्ट की दुकान से जेनेरिक दवा मांग भी ले तो दवा विक्रेता इनकी उपलब्धता से इंकार कर देते हैं।

देश के ज्यादातर बड़े शहरों में एक्सक्लुसिव जेनेरिक मेडिकल स्टोर होते हैं, लेकिन इनका व्यापक प्रचार नहीं होने से लोगों को इनका फायदा नहीं मिलता आजकल हर प्रकार की जानकारी इंटरनेट के जरिये आसानी से हासिल की जा सकती है। ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं की कीमत में अंतर का पता लगाने के लिए एक मोबाइल एप 'समाधान और हैल्थकार्ट' भी बाजार में उपलब्ध है। दरकार है कि लोग जेनेरिक दवाओं के बारे में जानें और खासतौर पर गरीबों को इस ओर जागरूक करें ताकि वे दवा कंपनियों के मकडज़ाल में न फंसें।

लाभ!

जैनरिक दवाईयां ब्राण्डेड दवाईयों की तुलना में औसतन पाँच गुना सस्ती होती है। जैनरिक दवाईयों की उपलब्धता आम व्यक्ति को स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करने में बहुत बड़ा योगदान प्रदान कर सकती है तथा इससे ब्राण्डेड कम्पनियों के एकाधिकार को चुनौती मिलेगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जैनरिक दवाईयों के लिखे जाने पर केवल धनी देशों में चिकित्सा व्यय पर 70 प्रतिशत तक कमी आ जायेगी तथा गरीब देशों के चिकित्सा व्यय में यह कमी और भी ज्यादा होगी।

जेनेरिक दवाएं उत्पादक से सीधे रिटेलर तक पहुंचती हैं। इन दवाओं के प्रचार-प्रसार पर कंपनियों को कुछ खर्च नहीं करना पड़ता। एक ही कंपनी की पेटेंट और जेनेरिक दवाओं के मूल्य में काफी अंतर होता है। चूंकि जेनेरिक दवाओं के मूल्य निर्धारण पर सरकारी अंकुश होता है, अत: वे सस्ती होती हैं, जबकि पेटेंट दवाओं की कीमत कंपनियां खुद तय करती हैं, इसलिए वे महंगी होती हैं।

उदाहरण के लिए यदि चिकित्सक ने रक्त कैंसर के किसी रोगी के लिए ‘ग्लाईवैक‘ ब्राण्ड की दवा लिखी है तो महीने भर के कोर्स की कीमत 1,14,400 रूपये होगी, जबकि उसी दवा के दूसरे ब्राण्ड ‘वीनेट‘ की महीने भर के कोर्स की कीमत अपेक्षाकृत काफी कम 11,400 रूपये होगी। सिप्ला इस दवा के समकक्ष जैनरिक दवा ‘इमीटिब‘ 8,000 रूपये में और ग्लेनमार्क केवल 5,720 रूपये में मुहैया करवाती है।

इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए मोदी जी ने देश के हर कोने में "प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र" खोलने के  लिए बजट में एक प्रस्ताव दिया! आपको जान कर खुशी होगी कि हर देश के हर जिलों और तहसीलों में इस केंद्र का उदघाटन हो चुका है और वहाँ सस्ती दवाइयां मिल रही हैं। अगले कुछ वर्षों में ये दुकानें हर गांव गांव में होंगी, ऐसी सरकार की परिकल्पना है जो निश्चित ही मूर्त रूप लेगी।

एक उदाहरण बताता हूँ! मैं अपनी माता जी के लिए पेंटाप्राजोल डी एस आर कैप्सूल 100 रुपये 10 गोली किसी ब्रांडेड कम्पनी की खरीदता था! इसी कम्पोजिशन की दवा इस केंद्र पर मात्र 18 रूपये की 10 गोली है।

लगभग साढ़े पांच गुना महंगी है ब्रांडेड दवाई !

दोनो का काम एक जैसा !

नियम और भी बन रहे हैं। चिकित्सक फ्रैटर्निटी द्वारा इन नियमों का compliance एक चुनौती है। उम्मीद है, हम ऐसी चेतना जागृत कर पाएंगे जहाँ, लोग केवल इसलिए अपने बच्चों को डॉक्टर नहीं बनाना चाहेंगे कि वे दो चार सालों में पैसे के पेड़ बन कर नोटों की पत्तियां झाड़ने लगें। उम्मीद है, उम्मीद पर दुनिया कायम है। तमाम उम्मीदों में एक यह भी कि इस देश के डॉक्टर्स समझेंगे कि उनसे समाज की अपेक्षाएँ क्या हैं?

अनूप राय
23/07/18

(थोड़े सम्पादन के साथ)

प्रेम

हे प्रिये ! इस अद्भूतं प्रेम को कैसे लिखूँ? हम तो साहित्य के विद्यार्थी रहे ही नही! जब तक पढ़े अंको , रासायनिक सूत्रों और भौतिकी के नियमो में उलझते ही रह गए अतः इन्ही के उपयोग से इस प्रेम का वर्णन करने की कोशिश करता हूँ!

बीते कुछ दिनों से हम दोनो के प्रेम रूपी बीजगणितीय द्विपद समीकरण में उलझी त्रुटियां सम्पादित नही हो रही है! यदि हम दोनो को ही  ऐसी गुणन संख्या संख्या नही मिल रही जो आगे बढ़ते हुए हल होकर एक निश्चित मान को प्राप्त हो!

हमारा तुम्हारा प्रेम आर्कमिडीज के सिद्धांत जैसा है  जिसमें  मैं तुम्हारे ह्रदय के प्रेमनद रूपी  द्रव में डूबा हूँ! जिसके ऊपर तुम्हारे मनमोहक अप्रतिम सौंदर्य और आँखों के आकर्षण रूपी उपरिमुखी बल लगा है जो मेरे द्वारा हटाये गये द्रव तुम्हारे अंदर मेरे लिए पाये गए असीम प्रेम के भार के बराबर  है।

और पास्कल के नियम के अनुसार हम दोनों के आपसी सामंजस्य  संतुलन में प्रेम  का दबाव चारों तरफ बराबर  है।

हमारा प्रेम नाभिकीय संलयन की तरह है जब हम और तुम
दो अधिक हल्के नाभिक, घर वालो के भयानक ताप वाले विरोध रूपी अत्यधिक उच्च ताप पर परस्पर संयोग करके एक उच्च भार वाले प्रेम रूपी नाभिक का निर्माण करते हैं । जो अनवरत चलती रहेगी अनंत काल तक और सूर्य रूपी प्रेम को ऊष्मा और प्रकाश से संसार को ज्ञान देती रहेगी।

मेरे दिन की व्यस्तता लघुत्तम समपवर्त्य जैसी है ,
मेरे दैनिक कर्तव्यों और खेती  का समय भाजककी तरह पूरे दिन रूपी भाज्य, समय को बड़े भागफल से विभाजित करता है !
और फिर वो शेषफल भाजक का रूप धारण कर लेता है ,
बस यही प्रक्रिया अंत तक चलती है !
जब तक शेषफल रूपी समय शून्य ना हो जाये,
अब बताओ ऐसे में  का समय कहाँ से लायें|

 
हमारा तुम्हारा प्रेम गुणोत्तर श्रेणी की तरह है जो एक समान गुणन में आगे बढ़ते हुए अंत मे अनन्त हो जाता है

हमारा तुम्हारा प्रेम त्रिकोणमिति की ऊँचाई और दूरी की तरह है जिसमे हमारे और तुम्हारे प्रेम का जितना विस्तार अपने अपने छोरो पर होता है तो बीच के कर्ण की दूरी हमदोनो के प्रेम के वर्ग के योगफल के बराबर  हो जाती है!

हमारा तुम्हारा प्रेम शून्य है हर मान से परे! जिसे कोई भी किसी तरह अपमानित करे या काटने या भाग देने की कोशिश करें अंत मे वो खुद शून्य हो जाएगा!

अनूप राय

टाइगर्स_ओवर_सरगोधा

 #टाइगर्स_ओवर_सरगोधा 1965 में भारतीय वायुसेना के पास अर्ली वॉर्निंग राडार सिस्टम नहीं थे। ये उस समय की स्टे्ट ऑफ आर्ट टेक्नोलॉजी थी लेकिन हम...